जिधर देखो, सब क्लीन ही क्लीन है!

0
262

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार: 

न से नेता! जिसे कुछ नहीं होता! इसलिए राममूर्ति वर्मा को भी कुछ नहीं होगा! वह जानते हैं कि नेताओं का अकसर कुछ नहीं बिगड़ता। बाल भी बाँका नहीं होता!

लालू प्रसाद यादव और जितेन्द्र तोमर जैसे अपवादों को छोड़ दीजिए। लालू जाने कैसे कानून के फन्दे से निकल नहीं पाये और तोमर अगर केजरीवाल के मन्त्री न होते तो शायद इस तरह कानून के फन्दे में नहीं फँसते! राममूर्ति वर्मा उत्तर प्रदेश के मन्त्री हैं। उत्तर प्रदेश में तो अपराधियों को ही कानून का कोई डर नहीं! तो फिर मन्त्री जी क्यों डरें? कानून तो उनका चाकर है!

निर्लज्ज मुस्कान के मायने!

पत्रकार जगेन्द्र सिंह लगातार मन्त्री के खिलाफ लिख रहे थे। एक दिन उन्हें जला कर मार डाला गया। सीधा आरोप मन्त्री, उनके गुरगों और पुलिस पर है। दिल दहला देनेवाली इस घटना पर भी उत्तर प्रदेश सरकार की बेशर्मी से शायद शर्म को भी शर्म आ जाये। पहले तो सरकार ने कोई नोटिस ही नहीं लिया। जैसे कुछ हुआ ही न हो। जब जनता का गुस्सा भड़का तो बड़ी हील-हुज्जत के बाद मन्त्री के खिलाफ मामला दर्ज हो गया। अब जाँच हो रही है। लेकिन जाँच का नतीजा क्या होगा, वह सरकार के बड़े कर्ता-धर्ता शिव गोपाल यादव की निर्लज्ज मुस्कान ने बता दिया और डीजीपी के इस बयान ने कि मन्त्री जी की लोकेशन देखी जायेगी! 

मतलब? जाँच चलेगी। अपनी रफ़्तार से चलेगी। देखा जायेगा। मन्त्री जी मन्त्री बने रहेंगे! ठाठ करते रहेंगे! अगर तब तक मीडिया में, और जनता में बात ठंडी पड़ गयी, तो धीरे-से मन्त्री जी को क्लीन चिट मिल जायेगी! मामला खत्म! वैसे इसके आसार तो बिलकुल नहीं लगते, लेकिन अगर राजनीति ने कोई उलटी करवट ले ली और बेहद मजबूरी में मामले को अदालत का मुँह देखना भी पड़ गया, तो भी क्या फर्क पड़ता है? अदालत में मामला बरसों चलेगा, गवाह तोड़े जायेंगे, सबूत इधर-उधर किये जायेंगे ताकि मामला साबित ही नहीं हो पाये! तो आज नहीं, कुछ बरस बाद सही, क्लीन चिट तो मिल ही जायेगी! नेताओं के मामलों में तो यही होता है! लम्बा इतिहास है!

ले क्लीन चिट, दे क्लीन चिट!

एक पत्रकार की इस तरह हत्या और एक सरकार का उस हत्या के आरोपी मन्त्री को पूरी शानो-शौकत के साथ मन्त्री बनाये रखने का मतलब क्या है? बहुत गहरा है। बरसों से इस पर चर्चा हो रही है। टोपी, सदरी पहना कर अपराधियों को जिस तरह तमाम राजनीतिक पार्टियाँ अपने शो-केस में सजाती रही हैं, उसके नतीजे इसके सिवा और क्या हो सकते हैं? इसीलिए राजनीति में आज या तो खुर्राट अपराधी भरे पड़े हैं या फिर बहुत-से ऐसे राजनेता, जो माफियाओं के जरिए काले धन्धों, जमीन कब्जे, अवैध खनन जैसी तमाम नयी कलाओं में पारंगत हैं! जिन पर आज कहीं कोई सवाल नहीं उठता क्योंकि वे हर पार्टी में हैं! क्यों हर पार्टी में हैं? इसलिए हैं कि वह अपने बाहुबल और धनबल से चुनाव जिता सकते हैं! और फिर वही क्यों? जब पार्टी के मुखियाओं और बड़े नेताओं पर भी बड़े-बड़े गम्भीर आरोप गाहे-बगाहे लगते रहें, तो दूसरी, तीसरी, चौथी कतार के नेता भी बेखटके वही सब तो करेंगे! और फिर कौन किसके खिलाफ कार्रवाई करेगा? आज मेरी सरकार, कल तेरी सरकार! तू मेरी पीठ सहला, मैं तेरी पीठ सहलाता हूँ! बस हो गया काम! इसलिए नेता बड़ा हो या छोटा, किसी को क्या डर? ले क्लीन चिट, दे क्लीन चिट! बरसों से इस क्लीन चिट का खेल यत्र तत्र सर्वत्र हम देखते रहे, और चुप रहे, तो नतीजा यही होना था, जो एक पत्रकार की हत्या के रूप में उत्तर प्रदेश में हुआ।

ऐसे मिलती है क्लीन चिट!

यह क्लीन चिट कैसे मिलती है? कुछ छोटे-बड़े नमूने देख लीजिए। बात कुछ समय पहले की, इसी उत्तर प्रदेश की है। वरुण गाँधी के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। घटना जनता के बीच खुल्लमखुल्ला हुयी थी। साम्प्रदायिक घृणा फैलाने वाला भाषण देने का आरोप लगा था। हजारों लोगों ने भाषण सुना था। टीवी पर पूरे देश ने देखा था। उसकी सीडी थी। सैकड़ों गवाह थे। सारे गवाह पलट गये। सीडी लापता हो गयी। मामला साबित नहीं हुआ। क्लीन चिट मिल गयी! एक और मामला जम्मू-कश्मीर का है। एक सेक्स स्कैंडल में कुछ राजनेताओं के फँसे होने का मामला उछला। कई सीडी पकड़ी गयीं। फोरेन्सिक प्रयोगशाला में पहुँची तो पता चला कि किसी सीडी में तो कुछ है नहीं। सीडी रास्ते में बदल गयीं। असली सीडी कहाँ गयीं, किसी को पता नहीं!

बोफोर्स से व्यापम तक, सर्वव्यापी क्लीन चिट

अब एक बहुत बड़ा मामला लीजिए। बोफोर्स दलाली का। कैसे जाँच हुई, कैसे विन चड्ढा और क्वात्रोची हाथ से फिसल गये या फिसल जाने दिये गये, कैसे सबूत आखिर तक नहीं मिले और करोड़ों रुपये फूँक चुकने के बाद कैसे केस बन्द करना पड़ा, सबको पता है। अभी-अभी जयललिता को क्लीन चिट मिल ही चुकी है। बरसों पहले उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। तब लग रहा था कि सबूत इतने पक्के हैं कि वह बच नहीं पायेंगी। लेकिन हाइकोर्ट से बच गयीं। सुनते हैं कि हिसाब-किताब में कोई गलती हो गयी थी! और सरकारी वकील को तो अपनी बहस का मौका ही नहीं मिला! तरह-तरह की तरकीबें हैं क्लीन चिट मिलने की! मुलायम सिंह यादव और मायावती के खिलाफ मामले भी बड़े जोर-शोर से उछले थे। सब में क्लीन चिट मिल गयी। अभी ममता बनर्जी के चेले-चपाटे क्लीन चिट की लाइन में हैं, क्योंकि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को फिलहाल ममता की मदद की जरूरत है! इसके पहले येदियुरप्पा राजनीति से बाहर हो कर सम्मानपूर्वक अन्दर लौट चुके हैं! पीवी नरसिंहराव के यहाँ सूटकेस पहुँचने की चर्चाओं से लेकर जेएमएम सांसद घूसकांड (घूस देनेवाले कौन थे), लखूभाई पाठक केस, सेंट किट्स केस, जैन हवाला कांड तक तमाम मामले उछले, लेकिन कहीं कुछ साबित नहीं हो पाया। गुजरात में फर्ज़ी मुठभेड़ों के जितने मामले थे, सबमें क्लीन चिट मिलनी ही थी, मिल गयी! अभी मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाला हुआ, उसकी जाँच के दौरान ही मामले से जुड़े 41 लोगों की संदिग्ध मौत हो चुकी है। जाहिर है कि यह मौतें क्लीन चिट के लिए ही हो रही है! 

क्लीन चिट आज की राजनीति का परम सत्य है! सब तरफ सब क्लीन ही क्लीन है! अब यह अलग बात है कि देश के मौजूदा सांसदों में से करीब 21% के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, साम्प्रदायिक हिंसा, बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध दर्ज हैं। विधान सभाओं का हाल भी यही है। वैसे याद दिला दें कि प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी चुनाव सभाओं में वादा किया था कि 2015 तक संसद को अपराधियों से मुक्त कर देंगे। साल बीतने में अभी साढ़े छह महीने बाकी हैं। देखते हैं कि क्या होता है!

केजरीवाल भी उसी दलदल में

आपको उम्मीद हो तो हो, मुझे तो कोई आसार नहीं दिखता कि नरेन्द्र मोदी 2019 तक भी संसद को अपराधियों से मुक्त कर पायेंगे या करना भी चाहेंगे! जनता में जब तक इच्छा शक्ति और संकल्प नहीं होगा, तब तक कुछ नहीं हो सकता। वरना राजनीति को साफ करने आये अरविन्द केजरीवाल भी क्लीन चिट के दलदल में न फँस गये होते! जितेन्द्र तोमर के खिलाफ मामला चुनाव से पहले उछला था। जाँच में उनके बेदाग साबित होने तक केजरीवाल उन्हें मन्त्री न बनाते तो इतनी फजीहत से बच जाते! पिछले चुनाव के पहले तोमर समेत आम आदमी पार्टी के कई टिकटार्थियों पर पार्टी के भीतर ही गम्भीर सवाल उठे थे। लेकिन ईमानदार राजनीति का दावा करनेवाली पार्टी ने ज्यादात¬¬र आपत्तियों को खारिज कर दिया। चुनावी जीत का लालच किसी को भी डिगा सकता है! 

पत्रकार जगेन्द्र की हत्या के अर्थ बड़े गहरे हैं! तरह- तरह के उद्देश्यों को लेकर मीडिया के ‘धन्धे’ में उतरे लोग, ऊपर से बाजार का दबाव, मुनाफे की मारामारी, पेड न्यूज, कारपोरेट की बढ़ती घुसपैठ और मालिकों-पत्रकारों की राजनीतिक गलबहियों ने मीडिया की काफी धार वैसे ही कुन्द कर रखी है। और अगर ऐसी ही राजनीति चलती रही तो कौन पत्रकार कुछ लिखने का साहस कर पायेगा? पानी अब नाक तक आ गया है। अगर राजनीति की सफाई के लिए हम अब भी न चेते तो आगे अँधेरा ही अँधेरा है!

(देश मंथन 13 जून 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें