राणा यशवंत, प्रबंध संपादक, इंडिया न्यूज :
सुबह आमतौर पर घर से फोन पर मीटिन्ग करता हूँ। मीटिन्ग के दौरान ही न्यूजरुम में शोर शराबा-सा लगा। पूछा क्या हुआ। पता चला महेंद्र चावला को कुछ लोगों ने पानीपत में गोली मार दी।
महेंद्र चावला आसाराम औऱ उनके बेटे नारायण साईं के खिलाफ चल रहे बलात्कार के मुकदमें में गवाह हैं।
उन पर हमले की खबर से मैं सकते में आ गया और पूरा मामला समझने में सेकेंड भर की देरी नहीं लगी। पिछले डेढ़ साल में दर्जनों बार उनसे बातचीत हुई होगी। हाल के दिनों में कभी बात नहीं हो पाई। लेकिन मुझे लग रहा था कि महेंद्र चावला डरे हुए रहते हैं। किसी भी बात पर अब परहेज करने लगे थे। एक बार मुझे कहने लगे सर पता नहीं कब तक हूँ। मैंने कहा क्यों ऐसा क्यों कह रहे हैं। बोले सर आप नहीं जानते उन लोगों को।
महेंद्र में मैंने कभी डर नहीं देखा था अगर पिछले चार-पाँच महीनों को छोड़ दूँ तो। मुजफ्फरनगर में आसाराम के पूर्व सेवादार और बलात्कार मामले के गवाह अखिल गुप्ता को इस साल जनवरी में जब गोली मारी गयी, उसके बाद से महेंद्र ज्यादा डरे से लगने लगे। इतना भयभीत मैंने उन्हें तब भी नहीं देखा था जब आसाराम के साथ काफी लंबे समय तक काम कर चुके वैद्य अमृत प्रजापति को राजकोट में कुछ लोगों ने गोली मार दी। अमृत प्रजापति ने गोली मारने वाले लोगों के नाम और फोन नंबर भी पुलिस को दिये थे। तब उनकी पत्नी ने खुल कर कहा था कि हत्यारे आसाराम के लोग हैं। उस वक्त महेंद्र चावला बेखौफ यही बात कह रहे थे और कई टीवी चैनलों पर पहले ही की तरह बैठ भी रहे थे। मुझसे कहते थे – सर इन बाप-बेटे के साथ नौ साल साल रहा हूँ, जब देखा नहीं गया तब वहाँ से निकल आया। लेकिन अखिल की हत्या के बाद से उन्होंने अपने को पानीपत में सीमित कर लिया था।
आसाराम और नारायण साईं के खिलाफ जितने भी गवाह हैं उनकी जान पर हर वक्त बनी रहती है। राहुल सचान पर इसी साल फरवरी में जोधपुर कोर्ट में चाकू से हमला हुआ। हमला इतना जबरदस्त था कि राहुल का फेफड़ा फट गया। मैं उनकी हिम्मत की दाद देता हूँ कि वे आज भी इंडिया न्यूज पर बैठे और उसी तेवर के साथ दोनों बाप-बेटों की बखिया उधेड़ते रहे। सूरत मामले की पीड़ित दोनों महिलाओं के पतियों पर भी हमले हो चुके हैं। ऐसे में अगर सुब्रम्णयम स्वामी जैसा नेता आसाराम की तरफदारी में खम ठोकता है तो दाल में बहुत कुछ काला-सा दिखता है। सलाखों से निकलना मुमकिन नहीं तो गवाह और सबूत मिटा दो। सियासत और शासन के जितने अपने प्यादे हैं उनको लामबंद कर दो। पाप से कमाई गयी जायदाद के बूते हर उस इंसान को हमेशा के लिये खामोश कर दो जो रिहाई की राह रोके खड़ा है। कई सरकारों की सोची समझी चुप्पी भी समझ में आ रही है। गवाहों के काफी रिरियाने-गिरगिराने के बाद एक दो खुफिया खाकीवालों की तैनाती समझ में आ रही है। महेंद्र का डर समझ में आ रहा है और जिन्दा लोगों के सिर पर नाचती मौत भी समझ में आ रही है। लेकिन यह भी सच है कि सबके पाप का घड़ा भरता है। शिशुपाल मरता है। आसाराम और उनके हमदर्द इसको ठीक से समझ लें तो अच्छा होगा।
(देश मंथन, 14 मई 2015)