हरिशंकर राय, सह-प्राध्यापक : रवीश कुमार की पीड़ा जिसे वे अपने ब्लॉग पर ऑनलाइन गुंडागर्दी कहते हैं के लिए मुझे उनके प्रति सहानुभूति है। ट्विटर व फेसबुक सार्वजनिक मंच है और हमें सार्वजनिक व्यवहार के सभी तौर तरीके को वहाँ भी लागू करना चाहिए। असहमति के लिए गाली-गलौच या धमकाने का तौर तरीका निकृष्टतम व […]
हरिशंकर राय, सह-प्राध्यापक :
रवीश कुमार की पीड़ा जिसे वे अपने ब्लॉग पर ऑनलाइन गुंडागर्दी कहते हैं के लिए मुझे उनके प्रति सहानुभूति है। ट्विटर व फेसबुक सार्वजनिक मंच है और हमें सार्वजनिक व्यवहार के सभी तौर तरीके को वहाँ भी लागू करना चाहिए। असहमति के लिए गाली-गलौच या धमकाने का तौर तरीका निकृष्टतम व अस्वीकार्य है।
हालाँकि मैं रवीश की तरह इसे राजनीतिक संस्कृति की देन नहीं मानता। यह मंच स्वच्छन्द रूप में विकसित हुआ है जिस पर समाज के हर वर्ग व क्षेत्रों के संस्कृतियों का प्रभाव है। पूरे समाज में गाली व हिंसा का इस्तेमाल व स्वीकार्यता खतरनाक ढंग से बढ़ रही है।
रवीश कुमार के लाखों प्रशंसकों में से मैं भी एक हूँ परन्तु यह भी सच है कि जन सरोकारों की पत्रकारिता में तो वे बेजोड़ है पर उससे इतर रवीश की राजनीतिक पत्रकारिता व रिपोर्टिंग में मुझे भी भाजपा व संघ के खिलाफ घोर दुराग्रह दिखता है जो सत्ता पक्ष के प्रति स्वाभाविक व सजग कठोरता से भिन्न है और मेरे जैसे सभी लोग जो ऐसा समझते हैं उन्हें रवीश कुमार की आलोचना का पूरा अधिकार है और यह अधिकार उतना ही विस्तृत व सशक्त है जितना रवीश कुमार को असहमति वाले विचारधारा व दल के खिलाफ उपलब्ध है।
लेकिन रवीश गाली-गलौज व हिंसा के द्वारा किसी का विरोध नहीं करते उसी तरह उन्हें भी हक है कि उन्हें गाली-गलौज न दिया जाये। एक प्रोफेशनल के रूप में उनकी दक्षता का भी भरपूर सम्मान होना चाहिए। हर विचारधारा मानवता व समाज की समृद्धि के लक्ष्य से ही पोषित होती है, इसलिए उसकी कमियों को उजागर करना, उसकी आलोचना व उसका विरोध जरूर हो सकता है परन्तु उससे दुश्मनी गलत है।
रवीश कुमार जी गुस्सा थूक कर वापस फेसबुक पर आइये हम आपकी जनसरोकारी गतिविधियों की तारीफ व आपकी पक्षपाती बातों का विरोध जो निस्संदेह तथ्यात्मक व स्वीकार्य परिप्रेक्ष में होगा, करते रहेंगे।
गाली-गलौज के खिलाफ आपकी लड़ाई में हम आप के साथ हैं।
(देश मंथन, 19 सितंबर 2015)