संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन
दिल्ली के तुर्कमान गेट रोड रेज मामले में इस बात पर आश्चर्य जताया जा रहा है कि जब लोग मारपीट कर रहे थे तो किसी ने बचाने की कोशिश क्यों नहीं की। पुलिस ने भी ध्यान नहीं दिया।
आमतौर पर कहा जाता है कि दिल्ली में लोग रुकते नहीं हैं, ध्यान नहीं देते हैं आदि। मैं अपने दो उदाहरणों से यह बताने की कोशिश करूंगा कि रुकना और बचाने की कोशिश करना अक्लमंदी नहीं है – जब लोग बीमा होने के बाद भी जरा सी खरोंच या डेंट के लिए अपना समय खराब करते हैं (जो लाल बत्ती पर रुकने के लिए नहीं होता है) तो ऐसे लोगों को समझाया नहीं जा सकता है और झगड़ा रोकने की कोशिश करना अपना समय खराब करना है। इसमें किसी निर्दोष की जान चली जाती है यह बहुत अफसोसनाक है फिर भी।
बहुत पुरानी बात है, रात 12 बजे के करीब मैं स्कूटर से आईटीओ पुल पर था। मेरे बगल में एक स्कूटर सवार अपने दो बच्चों के साथ चल रहे थे। एक तेज रफ्तार कार ने हम लोगों को ओवरटेक किया और बस उन्होंने स्पीड बढ़ा दी। आगे जब मैं लाल बत्ती पर पहुँचा तो स्कूटर वाले भाई साब कार वाले से गुत्थम-गुत्था थे। दोनों बच्चे रो रहे थे। कार वाला अकेला था। मैंने स्कूटर रोक कर दोनों को अलग करने की कोशिश की लेकिन जो भाई साब बच्चों के साथ थे उन्हें कार वाले का तेजी से निकल जाना इतना बुरा लगा था कि वे गालियाँ दिये जा रहे थे और कार वाले को जान से मारने की धमकी भी। अपने बच्चे बिलख रहे थे, इससे बिल्कुल बेखबर, निश्चिंत। जानते हैं क्यों – साहब ने पी रखी थी।
इसके कोई 10 साल बाद रात 12 के आस-पास ही, मैं कार में था और लक्ष्मी नगर में देखा कि एक अधेड़ महिला किसी कार को धक्का लगा रही थीं। पास पहुँचा तो एक सज्जन स्टीयरिंग पर और एक महिला (शायद उनकी पत्नी) बंद कार को धक्का लगाकर स्टार्ट करने की कोशिश कर रहे थे। मैंने उतर कर अपने ड्राइवर के साथ मिल कर धक्का लगाया। कार स्टार्ट नहीं हुयी। उन्हीं दिनों सड़क पर कार खराब होने पर सहायता मुहैया कराने की सेवा नयी-नयी शुरू हुयी थी और मुझे बहुत अच्छी लगी थी इसलिए मैं उसका ग्राहक था। मैंने कार वाले सज्जन से पूछा कि क्या उन्होंने यह सेवा नहीं ली है। उन्होंने ना कहा तो मैंने सेवा के बारे में बताया और वो तुरंत तैयार हो गये। कहा कि अभी गाड़ी ठीक हो जाये तो वो ग्राहक बन जायेंगे। मैंने नंबर मिलाया तो उधर से कहा गया कि वो सदस्यों की ही गाड़ी ठीक करते हैं और चूंकि गाड़ी मेरी नहीं थी, इसलिए मेरे फोन करने का कोई मतलब नहीं था। मैंने उससे कहा कि – एक ग्राहक सामने है और आप मना कर रहे हो। नयी सेवा शुरू की है। लोग जानते नहीं हैं। मैंने इन्हें बताया (मुफ्त में तुम्हारा प्रचार किया) वह ग्राहक बनने को तैयार हैं और आप हो कि मना कर रहे हो। खैर, समझाने पर वह सहायता के लिए टीम भेजने को तैयार हो गया और खराबी के बारे में पूछने लगा। मैंने फोन उस सज्जन को दिया और थोड़ी देर में उन्होंने कहा कि आपसे बात करना चाहता है। दूसरी तरफ वाले ने कहा कि आप भी किसकी सिफारिश कर रहे हैं। इन्होंने पी रखी है। मैं टीम नहीं भेज रहा। ये पैसे देने में आना-कानी करेंगे। रात का समय है आदि। पी रखी है – ये मुझे अभी तक समझ में नहीं आया था लेकिन फोन पर सुनने के बाद लगा कि बात सही है। तो मैंने उनकी पत्नी से कहा कि ऐसी हालत में मैं कुछ नहीं कर सकता वो मना कर रहा है। महिला ने कहा कि मैं बात करती हूँ (वो ठीक थीं और ड्राइविंग लाइसेंस भी था)। उनसे बात करने के बाद गाड़ी ठीक करने वाली टीम आ गयी पर मेरी समझ में ये नहीं आया कि जब उनके पास लाइसेंस था तो स्टीयरिंग पर वो क्यों नहीं थीं। धक्का लगाने का वीरता पूर्ण कार्य क्यों कर रही थीं। जानते हैं क्यों? जब किसी ने पी रखी हो तो उसे कौन समझाएँ। मुझे लगता है दिल्ली में रोड रेज का एक कारण पीकर चलना भी है। मुझे नहीं पता तुर्कमान गेट मामले में स्थिति क्या थी पर बिना बात के झगड़ा और मरने-मारने की बात लोग तभी करते हैं जब अच्छी चढ़ी हुयी होती है।
(देश मंथन, 09 अप्रैल 2015)