आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
दिल्ली में जल्दी ही नर्सरी स्कूल दाखिले की प्रक्रिया शुरू होने वाली है।
जिन अभिभावकों के स्कूल एडमीशन योग्य बालक-बालिका हैं, उन्हे नर्सरी में एडमीशन ब्रह्मांड की सबसे विकट समस्या दिख रही है। एक अति ही संपन्न पेरेंट ने मुझे बताया कि पूरी दुनिया में स्कूली सिस्टम सबसे अच्छा फिनलैंड में है और वह फिनलैंड में ही बसने का प्लान कर रहा है।
मैंने उसे समझाया कि बेट्टा फिनलैंड वाले हों या अमेरिका वाले, आखिर में सबको माल बेचने इंडिया में ही आना है। मोबाइल, कार, बर्गर, पिज्जा बेचने के लिए पूरी दुनिया वालों को इंडिया ही दिख रहा है। इन्हे बेचने से बड़ा कारोबार देश बेचने का है, पर उसे करने के लिए भी देश को समझना जरूरी है। सो बेहतर है कि बालक को इंडिया में ही पढ़ाया जाये। यहाँ के रंग-ढंग कायदे से देख-सीख ले।
मेरी घनघोर असहमति उन लोगों से है कि इंडिया का स्कूली सिस्टम ठीक काम नहीं कर रहा है। नर्सरी के स्तर से ही सही चीजें पढ़ायी जा रही हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चों के सामने उनका सही रूप पेश करें।
एक टीचर मुझे मिला था एक नर्सरी स्कूल में, बिलकुल सही बातें बताता था बच्चों को। एक नर्सरी कविता है-जोनी जोनी यस पापा, ईटिंग शुगर नो पापा, टेलिंग लाइज, नो पापा, ओपन योर माउथ, हा हा हा। इस का भावार्थ वह टीचर यूँ करता था कि सब कुछ खाकर, फिर ना खाने का झूठ बोलकर हा हा हा हँसना चाहिए। ऐसा बंदा लाइफ में तरक्की करता है। इंडिया में सिर्फ खाने वाले को करप्ट कहते हैं। खाकर फुल बेशर्मी से हँसने वाले को कहते हैं- भई जो भी हो, मर्द बंदा है। हिम्मती है। खाकर चारा, हा हा हा, खाकर टेलीकाम हा हा हा।
एक और नर्सरी कविता है- बाबा ब्लैक शीप, हैव यू एनी वूल, यस सर यस सर, थ्री बैग्स फुल, वन फार दि मास्टर, वन फार दि डेम(मालकिन), एंड वन फार दि लिटिल बाय हू लिव्स डाउन दि लेन। यानी आम आदमी को शीप यानी भेड़ की तरह बरताव करना चाहिए, जो कुछ भी कमाये- बनाये, सब का सब दूसरों को देना चाहिए। अपने लिए सिर्फ ये कविता रखनी चाहिए।
इंडिया में बन सकते हों टेलिंग लाइज वाले मर्द बनिये वरना तो शीप बन ही जायेंगे।
इससे अच्छी प्राथमिक शिक्षा और क्या होगी जी।
(देश मंथन, 16 सितंबर 2015)