भारतीय क्रिकेट के ‘अन्ना’ शशांक के हाथों में कमान

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

स्वच्छ छवि के शशांक मनोहर दुबारा बीसीसीआई के मुखिया बन गये। पवार-ठाकुर गुट ने हाथ मिलाया। भारतीय क्रिकेट की छवि को श्रीनि के आपातकाल की याद दिलाने वाले कार्यकाल के दौरान जो गहरे दाग लगे थे, इससे व्यथित भारतीय क्रिकट प्रेमियों के लिए यह जबरदस्त खुशखबरी है। 2013 के आईपीएल फिक्सिंग कांड के समय जब बोर्ड के अन्य सभी बाहुबली मौन धारण किए बैठे थे तब यह क्रिकेट का ‘अन्ना’ अकेले दहाड़ा था – ‘श्रीनिवासन गद्दी छोड़ो’।

टाइम्स आफ इंडिया में उनका इस पर लेख भी प्रकाशित हुआ था। वैसे पेशे से वकील नागपुर के मनोहर का जब पहले दौर का कार्यकाल समाप्त हुआ था तब उन्होंने बीसीसीआई की कार्य शैली पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए घोषणा की थी कि भविष्य में वह बोर्ड में कभी वापसी नहीं करेंगे। बीते शुक्रवार को अपने पारिवारिक मित्र और घाघ राजनेता शरद पवार के साथ श्रीनिवासन से हुई मुलाकात पर खिन्नता व्यक्त करते हुए शशांक ने कहा था कि श्रीनि के साथ उन्हें किसी भी तरह का समझौता मान्य नहीं होगा। उनके इस बयान ने सारे समीकरण बदल दिए, राजीव शुक्ला की दावेदारी इसी के साथ कहीं अंधेरे में गुम हो गयी। बोर्ड में चल रही विकट परिस्थितियों के मद्देनजर मनोहर फिर से गद्दी सभांलने पर राजी हो गये। चार अक्तूबर को सर्वसम्मति से उनके नाम पर मुहर लग गयी और लाख कोशिशों के बावजूद श्रीनिवासन युग का पूर्ण अवसान हो गया। चेन्नई के इस महाबली की आईसीसी से भी विदाई हो जाएगी। उसके स्थान पर किसी और भारतीय प्रतिनिधि का आईसीसी के सर्वोच्च आसन पर विराजमान होना अब लगभग तय है।

जहाँ तक मेरी निजी पसंदगी की सवाल है तो मैं शशांक का मुरीद रहा हूँ और जो श्रीनि व उसके ‘ अघोषित दत्तक पुत्र’ बीते चार बरस तक बोर्ड को बंधक बनाए हुए थे, उससे तो ठाकुर की सचिव पद पर बोर्ड के पिछले चुनाव में मिली एक वोट से जीत के बाद ही निजात मिल गयी थी। अब बची खुची साफ सफाई मनोहर के सदर निर्वाचित होने के बाद हो जाएगी। चलिए ‘देर आयद दुरुस्त आयद’, किंग मेकर अरुण जेटली को अंतत: सद्बुद्धि तो आयी। 

(देश मंथन, 05 अक्तूबर 2015)

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