आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सिंधु सोने जैसी चाँदी को ले आयी हैं। चाँदी के भावों में तेजी का रुख है, इन दिनों, सोने की रफ्तार ढीली पड़ी हुई है। सिंधु-साक्षी की सफलताओं से बेटों का मार्केट रेट गिर गया है, नवजोत सिंह सिद्धू के भावों की तरह। पर, पर, पर बेटियों की सफलताओं को बेटों को कूटनेवाले प्लीज समझें -किसी बेटे गोपीचंद ने कोचिंग दी है सिंधु को। समन्वय से रिजल्ट आते हैं, अतिरेकी तर्कों से सिर्फ मारधाड़ बढ़ती है।
देश की बेटियों-सिंधु, साक्षी मलिक ने ओलंपिक में पदक हासिल करके देश का नाम ऊँचा किया, पर इसके लिए उसने कितनी कड़ी तपस्या, मेहनत की। सबको उसकी मेहनत से सबक लेने चाहिए। मैंने यह बात कल कई बच्चों को समझाने की कोशिश की।
एक बच्चे ने पलट कर ऐसी बात कही, जिसे खारिज करना मुश्किल था। बच्चा बोला-सर आप तो साक्षी, सिंधु की सफलता का क्रेडिट उसकी मेहनत को दे रहे हैं। पर देखना कुछ दिनों बाद कोई कोल्ड ड्रिंक, कोई चिप्स, कोई च्यवनप्राश उनकी सफलता का क्रेडिट ले रहा हो।
देश की एक और बेटी-अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की ख्याति अब ग्लोबल है। एक अमेरिकन सीरियल में काम करने के चलते वह अमेरिका में भी स्टार हैं। नये दौर की लड़कियों के लिए एक रोल माडल हैं। पर अभी एक इश्तिहार में वह अपनी गतिशीलता का क्रेडिट हेमपुष्पा ब्रांड के एक आइटम को देती दिखीं।
हेमपुष्पा की वकालत भूतपूर्व स्टार रवीना टंडन भी करती हैं, पर रवीना टंडन का हेमपुष्पा को क्रेडिट दिया जाना समझ में आता है, रवीना टंडन पर कुछ खास काम नहीं है। टीवी पर वह हेमपुष्पा की बदौलत चमकती हैं, तो रवीना टंडन की सफलता का राज तो हेमपुष्पा हो सकता है। पर प्रियंका चोपड़ा को स्पष्ट करना चाहिए कि उनकी गतिशीलता, सफलता के लिए कितना क्रेडिट हेमपुष्पा को दें, और कितना उनकी अपनी काबिलियत को। नयी जनरेशन कनफ्यूज्ड हो सकती है कि सारी सफलता अगर हेमपुष्पा की बोतल में ही बंद है, तो काहे को इतनी पढ़ी लिखाई, मेहनत-मशक्कत का हल्ला जोते रहते हैं बुजुर्गवार। अब जरूरी है कि टीवी की प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए कुछ प्रामाणिक बातें भी टीवी आया करें। एक दौर में खबरें यह काम कर दिया करती थीं। पर अब टीवी से यह उम्मीद ज्यादती ही है कि खबरें भी हों, और प्रामाणिक भी हों।
अभी एक टीवी चैनल पर प्राइम टाइम पर चुड़ैल की तलाश आधुनिक यंत्रों से चल रही थी। अब चुड़ैल प्रामाणिक हों, भूत प्रामाणिक हों, ऐसी उम्मीद तो बेकार है। अब इश्तिहारों से ही उम्मीद रह गयी है कि वो कुछ प्रामाणिक से दिखें। मतलब पूरे नहीं, तो पचास -पच्चीस परसेंट प्रामाणिक ये इश्तिहार दिख लिया करें। जैसे हेमपुष्पा के एड के डिस्क्लेमर आ जाये कि प्रियंका चोपड़ा की सफलता का दस-बीस परसेंट क्रेडिट खुद प्रियंका की मेहनत, गतिशीलता को भी है। पर बाकी सफलता उनकी हेमपुष्पित ही है।
ऐसे डिस्क्लेमर रहें तो देखने वाले को तसल्ली रहे कि टीवी शत प्रतिशत ही प्राइम टाइम की चुड़ैल नहीं हो गया, दस-बीस परसेंट सच्चा-मुच्चापन बचा है उसमें।
खैर देश की बेटियों ने जमकर काम किया है, कोल्ड ड्रिंक, च्यवनप्राश से भी कमायें। कमाई का सारा ठेका देश के बेटों के पास ही नहीं है।
(देश मंथन 20 अगस्त 2016)