पर्सनल्टी डेवलपमेंट सीरिज : महानता और सफलता

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

गुरुघन्टाल अकादमी के दो छात्रों ने इस प्रश्न पर विवाद छिड़ गया कि सफलता महानता के गुणों का पालन करने पर आती है या महानता सफलता आने पर खुद -ब-खुद आ जाती है।

किताबी नाम के छात्र ने कहा-शास्त्रों में वर्णित गुणों को खुद में ढाल ले बन्दा, तो सफलता खुद चलकर आती है।

महानता के लिए जरूरी गुण हैं-धीर, सत्य और नियम। इन पर चल कर कोई भी सफलता हासिल कर सकता है, फिर महान बन सकता है। 

हिसाबी नाम का छात्र बोला-धीर के चक्कर में तो बन्दा मर लेगा। टाइम किसके पास खोटी करने को। अब तो फुल स्पीड से झपट कर लेने का जमाना है। और गंभीर को पूछता कौन है। जब तक तुझे बास के बोर चुटकुलों पर भी फुल जोरदारी से हँसने का हुनर ना आयेगा, तू कभी भी सफलता के मार्ग प्रशस्त ना कर पायेगा।

किताबी ने इस पर कहा-पर ये सारी बातें किसी किताब में तो लिखी ना गयी हैं।

हिसाबी बोला-डीयर, सफलता, प्रेम, योग और अंतरंग भोग की बातें किसी किताब में दर्ज ना होतीं, ज्ञानी पुरुष इन्हे अपने तजुरबे से हासिल करते हैं और फिर इन्हे अपने तक ही रखते हैं। किताब छोड़, असली के हिसाब देख। एक ज्ञान-वर्धक कहानी सुन-अन्धेरनगरी में दो युवक रहते थे-एक था नियमालू, दूसरा था चालू। नियमालू नियम के हिसाब से चलता था। चालू जमाने की चाल के हिसाब से अपना चाल-चलन सैट करता था। नियमालू महानता के नियम कँठस्थ करके उन पर चलने की फुल कोशिश करता था।

चालू की समझ एकदम साफ थी, कौन चक्कर में इन गुणों को विकसित करने के, इधर से या उधर से, या किधर से भी सफल हो जाओ, तो सब फिर खुद ही आपको महान लगने जायेंगे।

नियमालू सत्य, धीर और नियम के पथ पर चला। उसने अपने साहित्याचार्य गुरु नोटानन्द के यहाँ नियम से विद्या, शास्त्र-अध्ययन शुरू किया। फिर उसने साहित्य का अध्ययन शुरू किया। नियमालू ने कथाओं, उपन्यासों का लेखन शुरू किया। इन कथाओं, उपन्यासों के चक्कर में उसके अन्य कार्य पिछड़ गये। घरवाले उसे इस बात के लिए लगातार डाँटते रहते थे कि वह किन बकवास कार्यो में उलझा हुआ है।

ऐसी डाँट के प्रत्युत्तर में घर वालों को जवाब देता था-वह धीरज, सत्य और नियम के रास्ते पर चल रहा है और इन रास्तों पर चल कर एक दिन सफल हो जायेगा और फिर उसे महान मान लिया जायेगा। महान साहित्यकार मान लिया जायेगा।

नियमालू के साहित्याचार्य नोटानन्द जमाने के हिसाब से चालू थे। नियमालू की अपने प्रति ऐसी विकट आस्था देखकर नियमालू हर्षित हुए। नोटानन्द नियमालू से लगातार उपन्यास, कहानियाँ लिखवाते थे और उन्हे अपने नाम से छपवा कर खुद प्रख्यात होते थे। और नियमालू से कहते थे-बेटा, तू धीरज धर, रायल्टी मुझे धरने दे। तेरे धीरज के बदले मैं तुझे बहुत सारे आशीर्वाद दूँगा, जिनके फलस्वरूप तू एक दिन बहुतै बड़ा साहित्यकार बनेगा। महान बनेगा।

नियमालू नियमपूर्वक, धीरतापूर्वक नोटानन्द की सेवा करने लगा और इन्तजार करने लगा कि एक दिन गुरु उसे महान साहित्यकार घोषित कर ही देंगे।

उधर चालू जमाने की चाल के हिसाब से चालू-चक्रमगिरी में लगा रहा। चालू ने हर उस काम में हाथ डाला, जिसमें झमाझम पैसा कमाने की धकाधक संभावनाएँ थीं। प्रापर्टी, तस्करी और पार्ट-टाइम पालिटिक्स के जरिये चालू ने बहुत रकम कमा डाली। धनार्जन में धीरज घातक है, नियम यम के द्वार हैं, ऐसे फंडे चालू ने विकसित किये। चालू का ज्ञान था कि अगर बन्दा अपनी असली इनकम घोषित कर दे, तो इनकम टैक्स वाले भले ही परेशान ना करें, पर अपहरणकर्ता, चन्दा-खेंचक परेशान कर मारेंगे। अगर बिजली का सही बिल बन्दा भरने लग जाये, तो बिजली विभाग के बन्दे खुद आकर तरकीब सिखायेंगे कि बिल की रकम ऐसे आधी कर लो, कुछ रकम तुम रख लो, कुछ हमें खाने दो।

ऐसे चालू का परम-चऊंचक जलवा देखकर तमाम प्रकाशकों ने उससे संपर्क करके कहा-तुम अपनी सफलता की गाथा लिख दो, हम लाखों किताबें बेच लेंगे। अपनी सफलता को सूत्रों को लिपिबद्ध कर दो, नौजवानों में सफलता संबंधी साहित्य की भारी माँग हो रखी है।

सो साहब, चालू ने विकास के स्व-विकसित फंडे बताये, किताब की लाखों में एडवाँस-बुकिंग हो गयी। उस किताब पर बोलने प्रख्यात साहित्याचार्य नोटानन्द आये। उन्होने इस कृति को कालजयी साहित्य घोषित कर दिया और चालू को महान साहित्यकार। यह देख-सुनकर नियमालू चकित रह गया। पर नियमालू का चकित भाव तब खत्म हो गया, जब उसने पाया कि गुरुजी एक चकाचक गाड़ी में बैठकर वापस घऱ जा रहे हैं। उसे पता लगा कि यह चमाचम गाड़ी चालू ने साहित्याचार्य नोटानन्द को गिफ्ट की है।

इस घटना के बाद महानता के बारे में नियमालू का दृष्टिकोण बदल गया और वह नया उचित और वाँछनीय दृष्टिकोण हासिल करने के लिए चालू का चेला बन गया।

इस कहानी से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं-

1 : महानता के गुणों से सफलता नहीं मिलती, बल्कि जो बन्दा सफल हो जाये, चाहे जैसे, उसे ही महान मान लिया जाता है। 

2 : नियम यम के द्वार हैं। 

3 : महान साहित्याचार्य रायल्टी नियमालू की खाते हैं, पर लायल्टी चालू के प्रति दिखाते हैं

(देश मंथन, 13 मई  2015)

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