संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक नौजवान हर रात देर तक स्विमिंग पूल में तैरने का अभ्यास करता है। जब सारी दुनिया सो रही होती है, वो अंधेरे में अभ्यास कर रहा होता है।
सुनसान, अकेले पूल में वो बस तैरता रहता है।
जब पहली बार ये विज्ञापन मैंने टीवी पर देखा था, तब बहुत देर तक सोचता रहा कि आखिर यह आदमी इस अंधेरे में स्विमिंग पूल में क्यों कूद रहा है। पर तीस सेकेंड के इस विज्ञापन का संदेश बहुत गहरा है। वो नौजवान जब पूल से बाहर निकलता है, तब हम पहचानते हैं कि यह तो माइकल फेल्प्स है। अमेरिका का महान तैराक। संसार में सबसे अधिक अकेले स्वर्ण पदक पाने वाला वाला खिलाड़ी।
विज्ञापन संदेश देता है कि रात के अंधेरे में हम जो काम करते हैं, वही हमें एक दिन उजाले में लाता है।
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बस यहीं रुक जाइए। अब आप ये मत सोचिएगा कि संजय सिन्हा आपको माइकल फेल्प्स की कहानी सुनाने जा रहे हैं। मुझे पता है कि आप भी ओलंपिक के सारे खेल टीवी पर देख रहे हैं और माइकल के बारे में मुमकिन है कि आपको मुझसे अधिक पता होगा। आपको पता होगा उसने रियो में चल रहे ओलंपिक में कल फिर गोल्ड जीता है। आपको यह भी पता होगा कि उसने टीवी पर अपनी खुशी जताते हुए कहा कि इस बार गोल्ड पा कर उसका दिल इतनी तेजी से धड़कने लगा कि एक पल को महसूस हुआ कि वो छाती से बाहर ही आ जाएगा।
मुमकिन है आप यह भी जानते होंगे कि 2012 के ओलंपिक के बाद माइकल ने ओलंपिक खेलों से संन्यास ले लिया था। पर उनके भीतर की ऊर्जा और उनके अभ्यास ने उन्हें दो साल बाद ही दुबारा ओलंपिक में लौटा दिया। और कल जब उन्होंने गोल्ड जीता तो मैं बहुत देर तक उस विज्ञापन के बारे में सोचता रहा, जिसकी चर्चा मैंने की है।
अब आपको रुक कर मेरी कहानी पढ़ने से पहले यह सोचना है कि मैं आज कहना क्या चाहता हूँ।
मैं आज सिर्फ विज्ञापन की उस लाइन को आपके सामने लाना चाहता हूँ, जिसे आपने न जाने कितनी बार देखा होगा, सुना होगा।
वो लाइन है, “रात के अंधेरे में हम जो करते हैं, वही हमें दिन के उजाले में लाता है।”
जिन दिनों मैं कॉलेज में पढ़ता था और हॉस्टल में था, वहाँ एक लड़का था, आलोक।
जैसे मैंने तय किया था कि मुझे पत्रकार ही बनना है, वैसे ही आलोक ने तय किया था कि उसे भारतीय पुलिस सेवा में जाना है। उसे जुनून था कि वो आईपीएस अधिकारी ही बनेगा। हालाँकि पत्रकार बनना आसान था, आईपीएस बनने की तुलना में। पर वो उसका जुनून था। वो मुझसे अक्सर कहा करता था, “संजय, अगर मैं आईपीएस नहीं बना, तो मेरे लिए कुछ और बनने का मतलब नहीं।”
कॉलेज के बाकी लड़के उसे चिढ़ाने के लिए कप्तान साहब बुलाया करते थे। पर आलोक अपनी सोच से डिगा नहीं। हॉस्टल का नियम था कि इतने बजे सो जाना है, सारे बच्चे बत्ती बंद करके सो जाते, पर आलोक रजाई के भीतर टॉर्च जला कर किताब पढ़ता रहता।
मैं अपने कमरे में लेटा सोचता था कि आखिर जब सारे बच्चे सो रहे हैं, तो इसे रात के अंधेरे में इस तरह पढ़ाई करने की क्या जरूरत है?
मैंने उससे पूछा था। उसने तब यही कहा था कि हम रात के अंधेरे में जो करते हैं, वही हमें एक दिन उजाले में लाता है।
तब तो मैंने इस कहे का मर्म नहीं समझा था, पर धीरे-धीरे समझने लगा। सचमुच हम रात के अंधेरे में जो करते हैं…
हम रात के अंधेरे में क्या करते हैं?
मैं बहुत से बड़े लोगों को जानता हूँ, जो दिन के उजाले में चाहे जितने अच्छे काम करते आपको नजर आएं, पर रात के अंधेरे में उनके कर्म बदल जाते हैं। आपने न जाने कितनी बार ऐसा सुना होगा कि फलाँ अच्छा आदमी फलाँ बुराई में लिप्त पाया गया। जब ऐसी खबरें हमारे पास आती हैं, तो हम यही सोचते हैं कि यह तो इतना अच्छा आदमी था, फिर ऐसा क्या हुआ। दरअसल वो रात के अंधेरे में जो करता है, वही एक दिन सामने आता है। दिन का किया तो दुनिया देखती है। रात का किया बहुत दिनों बाद सामने आता है और स्थायी नतीजे लेकर आता है।
बताने की दरकार नहीं कि मेरा दोस्त आलोक दो बार की कोशिश में आईएएस में चुना गया और आईएएस छोड़ कर उसने आईपीएस बनना ही चुना। कभी उसकी कहानी आपको विस्तार से सुनाऊंगा पर आज तो बात माइकल फेल्प्स की।
माइकल फेल्प्स दुनिया में सबसे अधिक गोल्ड मेडल पाने वाले खिलाड़ी हैं। अमेरिका के इस खिलाड़ी की खासियत ही यही है कि इस बार के ओलंपिक में 19वाँ गोल्ड जीतने से पहले भी वो कई-कई रात अकेले अभ्यास करते नजर आते थे। उनका कहना है कि जब आप किसी प्रतिस्पर्धा में उतरते हैं, तो सिर्फ आपके सपनों से आपका काम नहीं चलता, आपको यह याद रखने की जरूरत होती है कि कहीं कोई और है, जो आपसे अधिक परिश्रम कर रहा है। और जो अधिक परिश्रम करेगा, वही जीतेगा।
माइकल का कहना है कि आप अपनी असीमित शक्तियों को पहचानिए। आप उन सपनों को देखने की आदत डालिए, जो आम आदमी के लिए मुमकिन नहीं होते। जितने बड़े सपने देखेंगे, उतनी अधिक आप मेहनत करेंगे। और अगर आप मेहनत करेंगे तो मेरा दावा है कि आपके सपने मुंगेरी लाल के सपने नहीं होंगे।
31 साल के इस खिलाड़ी का यह कहना कि आप अगर कोशिश करेंगे तो असंभव कुछ है ही नहीं, मुझे बहुत प्रेरणा देने वाली पंक्ति लगती है। इतिहास पढ़ते हुए नेपोलियन का कहा मुझे याद रहता था कि असंभव शब्द उसके शब्दकोष में नहीं।
दरअसल असंभव सचमुच कुछ भी नहीं होता। उनके लिए तो बिल्कुल नहीं, जो रात के अंधेरे में अपने उजले कामों को अंजाम देते हैं।
ध्यान रखिएगा, सचमुच जब कोई नहीं देख रहा होता, जब सूरज पूरी तरह ढल चुका होता है, तब आपका किया बहुत मायने रखता है। तब आप जो करते हैं, वही जीवन को स्वर्णिम बनाता है, वही आपको असली उजाले में लाता है।
मेरी आज की कहानी को आप पढ़िएगा, उसे आत्मसात कीजिएगा। अगर आपके बच्चे छोटे हों, तो उन्हें अपने पास बिठा कर संजय अंकल की कहानी सुनाइएगा, उनसे साझा कीजिएगा और बताइएगा कि उनका दोस्त आलोक इसी विद्या से आईपीएस बना था, उनका पसंदीदा खिलाड़ी माइकल फेल्प्स इसी विद्या से 31 साल की उम्र में रियो में चल रहे ओलंपिक में फिर खम ठोक कर गोल्ड ले आया है। उन्हें बताइएगा कि इस संसार में सब कुछ संभव है, बस वो चाहत, वो कोशिश होनी चाहिए।
कामयाबी उन्हें ही मिलती हैं, जो जिन्दगी के अंधेरे में उम्मीद नहीं छोड़ते।
(देश मंथन 11 अगस्त 2016)