सिडनी बंधकः कठिन बीमारी का इलाज नश्तर से ही होता है

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

जिन दिनों मैंने ‘शक्ति’ फिल्म देखी थी, मैं बहुत दुविधा में था। पुलिस अधिकारी पिता दिलीप कुमार के इकलौते बेटे अमिताभ बच्चन को बचपन में कुछ अपराधी किडनैप कर लेते हैं। फिर दिलीप कुमार से फोन पर सौदेबाजी करते हैं। दिलीप कुमार अपने बेटे के बदले भी उन अपराधियों को छोड़ने को तैयार नहीं होते, जिनके लिए ये सारा ड्रामा रचा गया होता है।

खैर, कहानी फिल्मी थी। पिता-पुत्र के बीच उपजी गलतफहमी पर आधारित थी। पर मुझे मन ही मन लग रहा था कि दिलीप कुमार ने अपने बेटे के बदले उन आतंकवादियों को क्यों नहीं छोड़ दिया? फिर बड़ा हुआ। पत्रकारिता की नौकरी करने लगा। फिल्म की याद पीछे छूट गयी।

बचपन की यादें मिट जाती हैं पर बड़े होने पर यादें जिंदा रहती हैं। उनमें से कुछ यादें दुखद होती हैं। ऐसी ही एक याद है 24 दिसंबर वर्ष 1999 की है। ये याद इंडियन एयरलाइंस के उस विमान अपहरण से जुड़ी हुई है, जिसके बदले भारत सरकार को कँधार जाकर कई आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था।

तब मैं जी न्यूज में रिपोर्टर हुआ करता था। देर शाम अपनी किसी रिपोर्ट को तैयार कर सीढ़ियों से उतर रहा था कि खबर मिली कि काठमांडो से दिल्ली के लिए उड़े इंडियन एयरलाइंस के विमान (आईसी 814) को हाईजैक कर लिया गया है।

खबर टीवी स्क्रीन पर चमकी और पूरा दफ्तर एकदम अलर्ट मोड पर चला गया। हर मिनट खबर अपना रूप बदल रही थी और देश भर के रिपोर्टर, नोएडा का पूरा ऑफिस पूरी तरह इस खबर पर लग गया। विमान आसमान में था और ये पता नहीं चल पा रहा था कि आगे क्या होगा? क्योंकि विमान में ढेर सारे लोग दिल्ली के थे इसलिए पूरी दिल्ली में सनसनी मच गयी थी।

मुझे उस शाम जल्दी घर लौटना था, लेकिन जैसे ही खबर चली उसके बाद सब कुछ ठहर सा गया। जो लोग खबरों के संसार से जुड़े हैं, वो जानते होंगे कि ऐसी खबरों के बाद न्यूज़ रूम का क्या हाल होता है। उसमें भी ये खबर सबसे पहले ज़ी न्यूज के पास आयी थी।

सतीश के सिंह तब दिल्ली में ब्यूरो चीफ हुआ करते थे और उन्हें ही किसी ने फोन पर इस अपरहरण की जानकारी दी थी। हालांकि तब इतने सारे चैनल नहीं हुआ करते थे। 24 घंटे वाले चैनल के नाम पर जी न्यूज, एनडीटीवी और स्टार न्यूज ही हुआ करते थे।

खैर, हम सारे रिपोर्टर एक कमरे में इकट्ठा हो गए और अब अगला कदम क्या हो, इसपर चर्चा शुरू हो गयी। सभी फोन और वायरलेस पर लगे हुए थे। जिसकी जो समझ में आ रहा था अपनी तरफ से पता करने की कोशिश कर रहा था। तब तक खबर आयी कि विमान अमृतसर में उतर गया है।

फटाफट रिपोर्टर को अमृतसर के लिए रवाना किया गया। रिपोर्टर अभी दो किलोमीटर भी नहीं पहुँचा होगा कि खबर आयी कि विमान वहां से उड़ गया। हालांकि हमारे पास खबर आयी थी कि पंजाब पुलिस ने विमान को रोकने के लिए एक टैंकर को विमान के आगे अड़ाने की कोशिश की थी, लेकिन क्या करना है इसका निर्देश दिल्ली से वहाँ समय पर नहीं पहुँचा और विमान अपहर्ताओं को लगा कि वो वहां फंस जाएंगे तो उन्होंन विमान में ईंधन लिए बिना उसे वहाँ से उड़ा लिया।

विमान उड़ गया? हम सारे रिपोर्टर एकदम हक्का-बक्का रह गए। पहली बार उस दिन मेरा मन किया कि दुनिया भर की खबरें दिखाने वाले चैनल को ऐसे मौकों पर अपने न्यूज रूम को भी लाइव दिखाना चाहिए।

पूरे दफ्तर को मानो लकवा मार गया। हर जुबाँ पर एक ही सवाल, विमान बिना यात्रियों को उतारे उड़ गया? उसे उड़ने कैसे दिया गया? दो मिनट लगे सबको इस सदमा से उबरने में। अब अगली खबर पर सबकी निगाहें फिर लगीं।

कुछ ही देर में खबर आई कि विमान लाहौर में उतार लिया गया है। थोड़ी राहत मिली की चलो विमान सुरक्षित तो उतरा। खबर पर खबर चल रही थी और ऐसा लग रहा था कि रात में ही लाहौर के लिए निकलना पड़ेगा।

हमने फटाफट ब्यूरो की मीटिंग की, सभी रिपोर्टर को जरुरी निर्देश दे दिए गए। कह दिया गया कि कल का दिन बहुत कठिन है। कुछ रिपोर्टर तो रात में दफ्तर में ही रोक लिए गए। तब तक खबर आ गई कि विमान को लाहौर में नहीं रुकने दिया गया। विमान फिर उड़ा और पहुँच गया दुबई।

तब तक काफी रात हो चुकी थी। अब लगा कि विमान रात में दुबई में ही रुका रहेगा। जो कुछ होगा दुबई में ही होगा। मुझे तुरंत दुबई पहुंचना था। लग रहा था कि सारा ड्रामा अब दुबई में ही होगा। हम दुबई के लिए उड़ चुके थे।

कुछ ही देर में पता चला कि दुबई में एक यात्री की हत्या कर दी गयी है। कुछ यात्रियों को भी छोड़ा गया है। लेकिन बाकी यात्रियों समेत विमान वहाँ से भी उड़ गया कँधार के लिए। अब रिपोर्टिंग प्लान में तुरंत बदलाव आया, लेकिन तब तक मन बहुत उदास हो चुका था।

काठमांडो से हनीमून मना कर लौट रहे एक व्यक्ति की बेवजह हत्या? पहली बार आतंकवादियों से जितनी तकलीफ नहीं हुई, सरकार से हो रही थी। मुझे बार-बार कश्मीर में एक मंत्री की बेटी का अपहरण कांड याद आ रहा था। कैसे हमने उसे छुड़ाने के लिए आतंकवादियों के साथ सौदा किया था।

रुबैया अपहरण कांड आपको याद होगा। उस अपहरण कांड को पढ़ कर मुझे हमेशा फिल्म शक्ति की याद आती। लगता कि दिलीप कुमार ने सचमुच उस वक्त अपने कलेजे पर कितना पत्थर रखा होगा, जब उन्होंने अपहरणकर्ताओं से बेटे के बदले किसी तरह के समझौते से इंकार कर दिया होगा।
वो कहानी फिल्मी थी। यहां हकीकत थी।

कल दिन भर दफ्तर में व्यस्त रहा। खबर थी कि सिडनी के एक कॉफी हाउस में आतंकवादियों ने वहां कॉफी पी रहे कुछ लोगों को बंधक बना कर अपनी माँगें रखी हैं। मैं सारा दिन बस यही देखना चाहता था कि सिडनी पुलिस आखिर करती क्या है। मैं कुछ ही दिन पहले सिडनी गया था, और मैंने वहाँ की पुलिस की मुस्तैदी देखी थी।

देर शाम होते-होते खबर आ ही गई कि पुलिस ने सबको घेर लिया है। फिर तो पूरा ड्रामा सामने आ ही गया। दिन भर कवायद चली कि कैसे लोगों को सुरक्षित निकाला जाए और आतंकवादियों के आगे घुटने भी न टेके जाएं। वैसे ही जैसे दिलीप कुमार ने बिना घुटने टेके अपने बेटे को फिल्म शक्ति में बचा ही लिया था।

कुल 55 मिनट में सब कुछ नियंत्रण में आ गया। हालांकि काफी गोलियां चलीं। एक या दो भी निर्दोष मारे गए। सब हुआ, लेकिन आतंकवादियों को मौका नहीं मिला भागने का।

सारी रात परेशान रहा। यही सोचता रहा कि अगर हम कँधार में आतंकवादियों के बदले सौदेबाजी नहीं करते तो क्या सचमुच हमारी सरकार से जनता उतनी ही नफरत करती जितनी फिल्म शक्ति में दिलीप कुमार से अमिताभ बच्चन करते थे।

या फिर यह संदेश भी जाता कि आतंक के आगे नहीं झुकने का मतलब ये नहीं होता है कि सरकार अपनी जनता से भी उतना ही प्यार करती है, जितना फिल्म में दिलीप कुमार अपने बेटे अमिताभ बच्चन से करते थे।

मेरी यादों में 24 दिसंबर वर्ष 1999 की घटना बतौर पत्रकार इसलिए दुखद नहीं कि आतंकवादियों ने किसी की हत्या कर दी थी। वो मेरी उदासी का सबब है। लेकिन दुखद याद इसलिए है कि सचमुच हमें घुटने नहीं टेकने चाहिए थे।

जनता देर-सबेर जान ही लेती है कि पिता अगर अपने बेटे के बदले अपराधी नहीं छोड़ रहे, तो कुछ तो मजबूरी होगी। बेशक मरते हुए ही सही, अमिताभ बच्चन ने पिता की बाँहों में उनके स्नेह की गर्मी को महसूस कर लिया था। मरता हुआ बेटा समझ गया था कि कई बार कठिन बीमारी का इलाज नश्तर से ही होता है। उसी नश्तर से, जिससे सिडनी में कल हुआ।

कल बहुत देर तक दफ्तर में मुहब्बत के उस नश्तर की धार को देखता रहा, जिसका इस्तेमाल दिलीप कुमार ने फिल्म शक्ति में किया था। जिसका इस्तेमाल रूस में चेचन विद्रोहियों के खिलाफ वहां की सरकार ने किया था। जिसका इस्तेमाल कल सिडनी पुलिस ने किया।

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