पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
जून में बांग्लादेश दौरे पर खेले जाने वाले एकमात्र टेस्ट के लिए घोषित भारतीय टीम में हरभजन सिंह की वापसी को लेकर मीडिया में काफी सवाल उठाये जा रहे हैं।
बिशन सिंह बेदी जैसे महान स्पिनर ने भी इसे पीछे की ओर लौटना करार दिया। कहा जा रहा है कि उनके स्थान पर किसी युवा प्रतिभा को चुना जाना चाहिए था। कुछ इसे धोनी की टेस्ट से विदाई को जोड़ कर देख रहे हैं। कहा जा रहा है कि बीते दो सालों में भज्जी ने ऐसा कौन सा तीर मारा कि उनकी वापसी हो गयी ?
सही है कि भज्जी ने ऐसी कोई अचूक गेंदबाजी नहीं की पर हम यह क्यों भूल जाते हैं कि कुंबले और कपिल के बाद सबसे ज्यादा विकेट चटकाने वाला पंजाब का यह बेलौस आफ स्पिनर एक अलग क्लास का खिलाड़ी है। हाँ दिक्कत यह थी कि वह पूर्व टेस्ट कप्तान का भरोसा नहीं जीत सका था। यही उसके ढाई बरस के वनवास का कारण भी बना, इसे बेहिचक स्वीकार करना होगा।
श्रीनिवासन और धोनी के संयुक्त कार्यकाल में मौनी बाबा बना दिये गये चयन समिति के सदर संदीप पाटिल अपने कार्यकाल के दौरान पहली बार मीडिया से जम कर मुखातिब हुए। उन्होने भज्जी को लेकर जो यह तर्क दिया कि चूँकि बांग्लादेशी टीम में आधा दर्जन खब्बू बल्लेबाज हैं, इसलिए टीम में दो आफ स्पिनर को जगह दी गयी, अपनी जगह वाजिब तो है मगर वह असलियत छिपा गये। बीसीसीआई के निवर्तमान मुखिया के गृहनगर चेन्नई और उनकी फ्रेंचाइजी सुपर किंग्स टीम के सदस्य होने और कप्तान के विशेष कृपा पात्र की वजह से ही आश्विन की टेस्ट टीम में जगह बरकरार जरूर रही पर दक्षिण अफ्रीका से लगायत पिछली आस्ट्रेलिया सिरीज तक उन्होने ऐसा कौन सा उल्लेखनीय प्रदर्शन किया, कोई हमें बतायेगा भला? सच तो यह कि जिस आश्विन ने घर में विकेट का सैकड़ा पूरा करनें में सभी कीर्तिमान तोड़े थे वही विदेशी धरती पर सफलता के लिए भीख माँगता नजर आया था।
कागज पर देश के सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी टेस्ट लिहाज से किसी भी कीमत पर अपनी कागजी ख्याति से न्याय नहीं कर सके। एक शैली में राउन्ड द विकेट मिडिल – लेग स्टम्प पर गेंदें डाली जाती रहीं और बल्लेबाजों की गल्तियों का इन्तजार किया जाता रहा। यह तो अचानक उनको बोधित्व की प्राप्ति जैसा हुआ जब विश्व कप से ऐन पहले अन्तिम अभ्यास मैच में हमने उनको एक ऐसे क्लासिकल आफ स्पिनर के रूप में पाया जो गेंदों को आफ स्टम्प पर रखते हुए अटैक कर रहा था और फिर आश्विन ने मुड़ कर नहीं देखा। मगर टेस्ट मैच का जहाँ तक सवाल है तो शायद चयनकर्ताओं को उन पर अब भी भरोसा नहीं और इसीलिए उन्होंने टेस्टेड हार्स भज्जी पर दाँव खेल दिया।
भारतीय क्रिकेट में लाबीइंग कितनी अहम हो चुकी है बताने की जरूरत नहीं। मीडिया भी इस मुद्दे पर किस कदर बंटी हुई है कि भज्जी पर जिन्होंने सवाल उठाए मगर उन्होंने इस पर चर्चा नहीं की कि कलाई के स्पिनर कर्ण शर्मा को टेस्ट टीम में चुने जाने का औचित्य क्या था? आईपीएल में सन राइजर्स की ओर से खेल रहे कर्ण का इस बार कोई खास प्रदर्शन भी नहीं था फिर भी ऐसा क्या कि उनको धाकड़ प्रदर्शन कर रहे युवा हरियाणवी युजवेंद्र चहल पर वरीयता दी गयी ? मैं कोई आरोप नहीं लगा रहा हूँ पर एक सन्देह तो होता है कि रीति स्पोर्ट्स से जुडे होने का लाभ तो उन्हें नहीं मिला? कोई हमें यह भी बताए कि जिस आईपीएल में बढ़िया गेंदबाजी का पुरस्कार मिलने पर जिन लोगों ने भज्जी पर भृकुटि तानी वे बतायें कि कर्ण शर्मा ने कितने प्रथम श्रेणी के मैच खेले हैं और उनमें कितने सफल रहे हैं कि उन्हें मौका दिया गया खेल के इस पाँच दिनी संस्करण में।
कर्ण प्रतिभाशाली है। मेरठ वासी यह खिलाड़ी बरसों से डीएलडब्ल्यू में है और काशी में उसकी क्रिकेट परवान चढ़ रही है। पर बनारसी होने के नाते क्या मैं उसके चयन को सराहूँ ?
टीम बांग्लादेश में कैसा खेलेगी, यह तो भविष्य ही तय करेगा पर जो टीम चुनी गयी है टेस्ट के लिए वह एकाध अपवाद को छोड़ दिया जाए तो सन्तुलित दिखती है। पर हाँ एक दिनी के लिए विश्व कप टीम को बरकरार रखा जाना और चयनकर्ताओं द्वारा अपने साथी रोजर बिन्नी के चिरन्जीव स्टुअर्ट बिन्नी को एक बार फिर पर्यटन का मौका देना शायद ही किसी के गले उतरा होगा। चोटिल शमी के स्थान पर धवल को चुना गया जो आस्ट्रेलिया से बिना खेले लौटे थे। पर मध्य प्रदेश के कद्दावर तेज गेंदबाज ईश्वर पांडेय की चयनकर्ताओं को याद क्यों नहीं आयी।? यह करोड़ टके का सवाल है
(देश मंथन, 22 मई 2015)