आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मित्र सामने बैठे थे, लाखों की घड़ी पहने। मैं बिजी था, सिर्फ पैंतालीस मिनट तारीफ कर पाया महँगी घड़ी की।
वह बुरा मान गये। घनिष्ठ मित्र थे, सिर्फ बुरा माने, वरना मानहानि का दावा भी ठोंक सकते थे। बाद में चार-पांच मुलाकातों में मैंने उनके हालचाल नहीं लिये, सिर्फ घड़ी का हाल पूछा। तब जाकर दोस्ती की अच्छी घड़ी लौटी।
महँगी घड़ियों से जुड़ा अलिखित कानून है कि टाइम की ना पूछो, सिर्फ घड़ी की पूछो।
घड़ियों के मामले लाखों के हैं। एक बहुत महँगी माने लाखों की घड़ी के साथ एक ग्लोबल फिल्म स्टार कुत्ते के साथ दिखते हैं। इश्तिहार का संदेश है कि कुत्तों की सही केयर करने लिए जरुरी है कि लाखों की वह घड़ी पहनी जाये।
लाखों की एक और घड़ी बताती है कि चाँद पर जानेवाले यात्रियों ने वह वाली घड़ी पहनी थी, शायद आशय य़ह था कि वह तब ही टाइम पर पहुँच पाये थे चाँद पर। यह घड़ी दिल्ली और दूसरे शहर के सफाई कर्मचारियों को पहनायी जानी चाहिए। चाँद छोड़ भाई, तू लोकल कटरा नील की नाली की सफाई करने दो घंटे लेट ही सही, पर पहुँच तो ले। चाँदवाली घड़ी इस मामले में कुछ हेल्प नहीं कर सकती।
तो इत्ती महँगी घड़ी काहे को लें जी। समझे नहीं, घड़ी टाइम देखने का नहीं, हैसियत दिखाने का जरिया है। हैसियत नहीं है, तो नकली बना लें। लाखों की घड़ी ओमेगा की डुप्लीकेट 300 रुपये में लेकर आप अपनी हैसियत उसके मुकाबले ज्यादा चमका सकते हैं, जो हजारों की ओरिजनल टाइटन लेकर आया है।
ओरिजनल डुप्लीकेट के आगे पिट रहा है। ओरिजिनल अन्ना महाराष्ट्र के गाँव में कुछ-कुछ कहा करते हैं, चेले प्रधानमंत्री बनने की जुगत में हैं।
एक घड़ी हजारों की, उसका दावा है कि यह घड़ी शाक-प्रूफ है। शाक-प्रूफ के हजारों क्यों दें। भारतीय रेल के जनरल -डिब्बे में दो दिन यात्रा कर लें या दिल्ली की मेट्रो में सुबह-शाम यात्रा कर लें, पूरा का पूरा इंसान ही शाक-प्रूफ हो लेगा। अपने ही शरीर पर लग रहे झटकों के प्रति एकदम निसंग हो लेता है बंदा।
पैसे कम हैं अपने पास, सो चलो जनरल-डिब्बे में जाकर शाक-प्रूफ हुआ जाये।
(देश मंथन, 26 अप्रैल 2017)