सुनिश्चित हो ओस न फले और न ही दिल तोड़े

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

क्रिकेट बोर्ड को अब खेल के साथ मजाक करने से बाज आ जाना चाहिए। अकूत संपदा की मालिक बीसीसीआई ने जिस बैट-बल्ले से यह मुकाम हासिल किया, उसे अब इस खेल को ही सर्वोच्च वरीयता देनी होगी।

इसके लिए जरूरी यह है कि क्रिकेट की जीत हो। कहने का तात्पर्य यह कि बेहतर खेल की जीत हो। टॉस और भाग्य किसी भी कीमत पर आड़े नहीं आने चाहिए। इसके लिए फटाफट क्रिकेट के दोनों फार्मेट में यह सुनिश्चित करना होगा कि पिच दोनों टीमें के साथ समान आचरण करे। यह तभी संभव है जब खेल में टॉस और ओस की कोई भूमिका न हो। 

पिछली 31 मार्च को टी-विश्वकप के सेमीफाइनल में टॉस और ओस के चलते 192 का स्कोर खड़ा करने के बावजूद टीम इंडिया बाहर हो गयी। अपने पिछले कालम में मैंने यह मुद्दा उठाया था और इस पर सुनील गावस्कर ने भी मुहर लगा दी कि मुकाबले दिन या अपराह्न में हों, देर शाम नहीं। ओस में नहायी गेंद ग्रिप नहीं होती और यह समस्या दशकों पुरानी है, लेकिन प्राइम टाइम झपटने यानी अधिकतम टीआरपी पाने की लालची ख्वाहिश खेल का कबाड़ा करती रही है, इस तथ्य से भली भांति अवगत रहने के बावजूद बोर्ड ब्राडकास्टर के इशारों पर नाचता रहा है। यह सब अब बंद होना चाहिए। टी-20 के मैच आप चार या साढ़े चार बजे से शुरू करते हैं तो किसी भी कीमत पर वे ओस पड़ने के पहले समाप्त होने ही हैं। कमर्शियल ब्रेक का मैं समर्थक हूँ ओवरों के बीच में। विश्वास कीजिए कि तब भी विज्ञापनों में कोई कमीं नहीं आनी हैं। भारत की विदेशी सिरीज में मैच भोर या सुबह होते हैं फिर भी चपक कर रेवेन्यू मिलती है। 

कोहली के हिमालयी-हरक्युलिस मेहनत की ओस के चलते विफलता ने करोड़ों देशवासियों का दिल तोड़ा है। अब तो बोर्ड चेते। देखिए, इस मामले में तारीफ करनी होगी पाकिस्तान की जहाँ मध्याह्न में मुकाबले होते हैं और शाम ढलने के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। भारत भी यदि दिन में साढ़े बारह से रखता है एक दिनी तो साढ़े आठ बजे से आगे मैच नहीं खिंचेगा। बोर्ड अध्यक्ष शशांक मनोहर और सचिव अनुराग ठाकुर जी सुन रहे हैं न।!!

(देश मंथन, 03 अप्रैल 2016)

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