चंद्र प्रकाश, टीवी पत्रकार :
पिछले साल नवमी पर मेरे घर 10 बच्चियाँ खाने के लिए आयी थीं। उन्हें मेरे घर पर काम करने वाली मेड लेकर आयी थी। बच्चियों ने बड़े चाव से खाना खाया। जाते वक्त हमने उन्हें पैसे की जगह कॉपी और स्टेशनरी का एक सेट दिया, जो उनके काम आ सके, तो पता चला कि 1-2 बच्चियों को छोड़ कर कोई स्कूल नहीं जाती।
इस साल नवमी पर उनमें से 7 बच्चियाँ ही आयीं, 3 नहीं। हम लोगों ने पूछा तो पता चला कि उनके घर वाले ‘किरचिन’ बन गये हैं। हमने कहा कि क्या फर्क पड़ता है, खाने के लिए तो आ ही सकती हैं। मेड ने बताया कि अगर वो नवमी पर किसी के घर खाने जायेंगी तो ‘स्कीम’ का पैसा बंद हो जायेगा। जहाँ पर वे रहती हैं, वहाँ स्कीम चलती है। घर से हनुमान, दुर्गा जैसे भगवानों की फोटो हटानी पड़ती है। दिवाली, होली मनाना बंद करना होता है।
जो स्कीम वाले किसी ‘मसीह बाबा’ की फोटो देते हैं, उनकी पूजा करनी होती है। ऐसा करने पर घर के हर सदस्य के हिसाब से 300 रुपये मिलते हैं। घर में छह लोग हैं तो 1800 रुपये। हम लोगों को उम्मीद जगी कि शायद अब वे तीनों लड़कियाँ स्कूल जाती होंगी। पूछने पर पता चला… अब वे आसपास के दूसरे ‘किरचिन’ घरों में बच्चे और कुत्ते खिलाने का काम पा गयी हैं।
यह कहानी आगरा की नहीं, नोएडा के एक नये बस रहे सेक्टर की है। यहाँ से 5-10 मिनट की दूरी पर देश के कई बड़े हिंदी-अंग्रेजी न्यूज चैनलों, अखबारों और पत्रिकाओं के दफ्तर हैं। आगरा में बांग्लादेशी शरणार्थियों की एक बस्ती में हुए धर्मांतरण की खबर तो सबको पता चल गयी, लेकिन नोएडा की लेबर बस्तियों में धर्मांतरण की बात मीडिया से कैसे छिपी रह जाती है?
यहाँ तक कि जब आगरा या अलीगढ़ में धर्मांतरण की खबर आयी तो लगभग सारे समाचार चैनलों की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी थी कि उन्होंने ‘धर्मांतरण’ शब्द पहली दफा सुना है। हिंदू संगठनों के कुछ छुटभैये नेताओं को टीवी पर चेहरा दिखाने का मौका मिल गया और चैनलों को एक ऐसी खबर मिल गयी जिसके इंतजार में वे पिछले छह महीने से थे।
मीडिया और खास तौर पर टीवी चैनलों से यह शिकायत पहली नज़र में बिल्कुल ठीक लगती है कि उन्हें कभी ईसाई मिशनरियों और मुस्लिम संगठनों के धर्मांतरण अभियान क्यों नहीं दिखाई देते? अगर स्ट्राइक रेट के हिसाब से देखा जाये तो देश में हिंदुत्ववादी सरकार के बावजूद ईसाई मिशनरियाँ ज्यादा धर्मांतरण करवा रही हैं। सिर्फ आदिवासी और दूर-दराज के इलाकों में ही नहीं, दिल्ली-एनसीआर जैसे महानगरों में भी।
लोग मिशनरियों के चक्कर में फँस कर धर्म बदल रहे हैं। वे यह शिकायत तो कतई नहीं कर सकते कि हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था की वजह से उन्हें जलालत उठानी पड़ती है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि ये लोग ईसा मसीह के जीवन और उनके संदेशों से प्रभावित होकर धर्म बदल रहे हैं।
इन सारे लोगों के धर्मांतरण की सिर्फ और सिर्फ दो वजहें हैं। एक, उनको दिया गया पैसे का लालच और दूसरा, धर्म के नाम पर धोखा। इन दोनों ही वजहों से किया या कराया गया धर्मांतरण गैर-कानूनी है। क्या मीडिया को अपनी निष्पक्षता का दिखावा करने के लिए ही सही, कभी इस धोखाधड़ी की बात भी नहीं करनी चाहिए?
(देश मंथन, 13 दिसंबर 2014)