संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
आज के समाज में जब लड़कियाँ नौकरी कर रही हैं, बड़े शहरों में परिवार से दूर अकेले रह रही हैं, किराए पर मकान लेने की समस्या है, शादी देर से हो रही है आदि कई कारण है जिनके आलोक में लिव-इन एक जरूरत है। लिव इन वालों के यौन संबंध के मामले में भी मेरी राय वही है – जरूरत है।
इसे ना कानून बना कर रोका जा सकता है। ना आत्महत्याओं पर टीआरपी बटोरने से या बेटी की हत्या के मामले को दबा देने से। समझदारी और संयम ज्यादा कारगर होगा। कोशिश ये होनी चाहिए कि विवाह पूर्व सेक्स के नुकसान के बारे में बच्चों को बताया जाए और उन्हें इतना जागरूक किया जाए कि वे सही गलत समझ कर निर्णय करें। लड़कियों के मामले में गर्भनिरोधकों (उससे पहले शारीरिक संबंध से गर्भ रहने के खतरे) के बारे में भी बताया जाना चाहिए।
हमारे यहाँ सेक्स ऐसा विषय है जिसपर दो लोगों की राय परस्पर विरोधी तो होती ही है महिलाओं को बराबर मानने और न मानने से भी जुड़ी हुई है। एक मित्र की (संपादित) राय, “जिस दिन दुनिया में सेक्सी भोजन, स्नाबन की तरह स्वीरकृत होगा उस दिन दुनिया में अश्ली”ल पोस्टुर नहीं लगेंगे। अश्लीील किताबें नहीं छपेंगी। अश्लीहल मंदिर नहीं बनेंगे। क्यों कि जैसे-जैसे वह स्वीअकृति होता जाएगा। अश्ली ल पोस्टंरों को बनाने की कोई जरूरत नहीं रहेगी। अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाये, कहा जाए कि भोजन छिप कर करना, कोई देख न ले। अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्टरर सड़कों पर लगने लगेंगे फौरन। क्यों कि आदमी तब पोस्टमरों से भी तृप्तिस पाने की कोशिश करेगा। पोस्टफर से तृप्तिि तभी पायी जाती है। जब जिंदगी तृप्तिप देना बंद कर देती है। और जिंदगी में तृप्तिे पाने का द्वार बंद हो जाता है। वह जो इतनी अश्लीरलता और कामुकता और सेक्सुअलिटी है, वह सारी की सारी वर्जना का अंतिम परिणाम है। मैं युवकों से कहना चाहूँगा कि तुम जिस दुनिया को बनाने में संलग्न हो, उसमें सेक्सक को वर्जित मत करना। अन्यिथा आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा। मेरी यह बात देखने में बड़ी उलटी लगेगी।”
एक अन्य मित्र की (संपादित) राय, “पुरुष सदैव से भोग विलास का समर्थक रहा है जबकि औरतों के संदर्भ में ऐसा नहीं रहा है। उदाहरण देखिए कि पूरी दुनिया में सदियों से लगते औरतों के बाजार के ग्राहक ऐय्याश मर्द ही रहे हैं, कभी पुरुषों का सजता ऐसा बाजार देखा है जिसमें खरीदार महिलाएँ हों? कभी देखा है कि महिलाएँ बैंकाक या लास वेगास ऐय्याशी के लिए जा रही हों? नहीं देखा होगा, सेक्स की आजादी कह कर मर्दों के ऐसे ही बाजार बनाने की कोशिश है जहाँ महिला अपनी पसंद से मर्द चुन सके और ऐय्याशी कर सके, अन्यथा मर्दों के लिए सेक्स पर कहाँ रोक है? रोक होती तो सदियों से औरतों का बाजार लगता? अनुमान के अनुसार केवल भारत से बैंकाक ऐय्याशी करने 2.5 करोड़ लोग प्रतिवर्ष जाते हैं, तो कैसी छूट चाहिए?”
दोनों मित्रों की राय के मद्देनजर कहा जा सकता है कि हम आप इनके बीच में कहीं हैं। आप कुछ भी कीजिए तारीफ करने वाले मिलेंगे तो निन्दा करने वाले भी। सही कहने वाले भी होंगे, गलत कहने वाले भी। इसलिए लोग क्या कहेंगे से मुक्त होकर अपने मन की कीजिए, वो कीजिए जो खुद को ठीक लगे। लोग जो भी कहें जान नहीं ले सकते और लोगों के कहने से डर कर जान देने की जरूरत नहीं है। वैसे इनकी राय में बुनियादी फर्क यही है कि मुक्त सेक्स की बात करने वाले महिलाओं को बराबर मान रहे हैं और दूसरे वाले महिलाओं को दबा कर, पर्दे में रखने के कारण जो नहीं हो पाया उसे उनका गुण या पुरुषों का अवगुण बता रहे हैं। मुझे लगता है कि महिलाओं को दबाकर रखने का समय गया। उन्हें उनके मन का करने की आजादी मिलनी चाहिए। अक्ल और क्षमता में वे कम नहीं हैं। भावनात्मक रूप से थोड़ी कमजोर हैं उसे दुरुस्त किए जाने की जरूरत है।
(देश मंथन, 08 अप्रैल 2016)