पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर। यही जीवन का शाश्वत सत्य है। खेल दुनिया भी उसी का एक अंग है। कल की सी बात लगती है जब मैंने मजबूत कद काठी के एक युवक को अपने डेब्यू मुकाबले में एक सौ पचास किलोमीटर की गति से गेंदबाजी करते देखा और तभी विश्वास हो गया था कि यह लंबी रेस का घोड़ा है, बड़ी दूर तक जाएगा और वर्षों हम इसके बारे में पढ़ते, सुनते और देखते रहेंगे।
जी हाँ, बात हो रही है तेज गेंदबाज जहीर खान ‘जाक’ की। सन 2000 की बात है। नैरोबी में चैंपियंस ट्राफी का मुकाबला था। अमर उजाला से हिंदुस्तान में जुड़ने के बीच का वह समय था। हमारी खेल डेस्क की टीम को लखनऊ हिंदुस्तान में ज्वाइन करना था। मैं बनारस में था और शायद कोई त्योहार का दिन रहा होगा। अनुज राधे के कमरे में हम टीवी पर मैच देख रहे थे। दो खिलाड़ियों का प्रथम प्रवेशी मुकाबला था और उनका पाला पड़ गया था महाबली आस्ट्रेलिया से। युवराज तो गदगद कर देने वाली 84 रनों की पारी से अपने चयन का औचित्य सिद्ध कर चुके थे। जहीर भी पारी की अंतिम दो गेंदों को छक्के के लिए भेज कर यह तो जता चुके थे कि बल्ले से भी वह उपयोगी रहेंगे पर उनका असली काम गेंदबाजी का था और क्या बात है! युवी जहाँ मैन आफ द मैच घोषित हुए वहीं टीम के मैन आफ द मैच जहीर हो गये जब उन्होंने सनसनाती स्विंगिंग यार्कर से कप्तान स्टीव वॉ के स्टम्प छितरा दिये थे और यही विकेट टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
इसके बाद से इस बांये हत्थे का शायद ही कोई मुझसे मैच छूटा हो। समय के साथ जाक की गेंदों की धार पैनी होती चली गयी। फर्क अनुभव के साथ यह आया कि पहले यह मुंबईकर दिल से गेंद डालता था बाद में दिमाग से डालने लगा। याद कीजिए 2003 का विश्वकप फाइनल। पहली ही गेंद ने मैथ्यू हैडन को हड़का कर रख दिया था पसली की ऊंचाई तक उठी थी वह मगर यही गेंद एकमात्र बन कर रह गयी और उसके बाद तो हैडन ने पहले ओवर में ही 16-17 रन कूटते हुए टीम की जीत की पटकथा लिख दी। मगर अनुभवी जाक ने हिसाब चुकता किया सबसे ज्यादा विकेट लेकर और 2011 विश्व कप में भारत को विजेता बनाने में अपना अविस्मरणीय अंशदान किया। जहीर के आंकड़ें आप मुख्य धारा के मीडिया में पढ़ेंगे। मुझे तो यहाँ यही बताना है कि कपिल के बाद भारत को यदि कोई दूसरा संपूर्ण गेंदबाज मिला तो वह जहीर खान ही रहे हैं।
मैंने अपने करियर में आबिद अली और करसन घावरी से लगायत भुवनेश्वर कुमार तक की गेंदबाजी देखी है। दो राय नहीं कि जवागल श्रीनाथ देश के तीव्रतम गेंदबाज थे। परंतु उनके पास बल्लेबाज को छोड़ने वाली गेंदें नहीं थीं। यह बात दीगर है कि भयानक तेजी लिए अंदर कटती अपनी स्टाक गेंदों के चतुराई से इस्तेमाल के बल पर टीम की संपदा बने। मगर जहीर के तरकश में न सिर्फ दोनों स्विंग बल्कि मारक यार्कर और स्लोवर वन के अलावा रीवर्स स्विंग का संपूर्ण खजाना था। वूस्टरशायर की ओर से काउंटी क्रिकेट में खेलना उनके व टीम दोनों के लिए वरदान सिद्ध हुआ। वहाँ जाक ने भिन्न परिस्थितियों में किस तरह की वैरायटी इस्तेमाल करनी चाहिए, पूरी शिद्दत से सीखा।
सच तो यह है कि चोटों ने यदि जहीर का करियर बाधित न किया होता तो उनकी सफलता का आंकड़ा कहीं और भी समृद्ध रहता। 2013 में वह विशेष फिटनेस ट्रेनिंग के लिए पेरिस गये थे युवराज के साथ। लेकिन उम्र और चोटों ने उनका साथ नहीं दिया। उन्होंने सचिन सहित अपने तमाम साथियों से सलाह मशवरे के बाद संन्यास की घोषणा कर दी।
अपने शानदार करियर के दूसरे हाफ में जहीर टीम के युवा गेंदबाजों के कोच की भी सफल भूमिका में नजर आते थे। सौरभ दा उनको इसीलिए मिड आफ या मिड आन में ही तैनात किया करते थे ताकि जाक साथी गेंदबाजों को सही टिप्स दे सकें। जरा पूछ कर तो देखिये इशांत शर्मा जैसों से जो गेदबाजी के दौरान हमेशा जाक के तलबगार रहे। हर गेंद पर वह इशांत को बताते रहा करते थे कि क्या करना है और क्या नहीं। यही कारण है कि जहीर के प्रति टीम इंडिया के सभी गेंदबाजों के मन में श्रद्धा और सम्मान का भाव साफ नजर आता है। टीम इंडिया को बतौर गुरु जहीर की सख्त जरूरत है। टीम के कार्यकारी कोच भारती अरुण को जहीर का सहायक नियुक्त किया जा सकता है। फिर टीम मे जो दो रफ्तार के सौदागर उमेश यादव और वरुण एरोन के रूप में हैं, उनको तराशने के साथ ही उनकी गेंदबाजी में और भी निखार लाने के लिए जहीर से बढ़ कर क्या कोई और आदर्श गुरु नजर आता है देश में आपको ?
(देश मंथन, 16 अक्तूबर 2015)