आपका क्या होगा जनाबे आली

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रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

“मैं बिहार से आया हूँ। आप का प्रचार करने। सर किराये पर कमरा लेने गया तो पूछा किस लिए चाहिए। मैंने सही बता दिया कि अरविंद केजरीवाल का प्रचार करने आया हूँ।

सर उसने हाथ जोड़ा और कहा कि हमारी आपकी विचारधारा एक नहीं है। हम मोदी के साथ हैं। आप कमरा कहीं और ढूँढ लीजिये।”

वाराणसी के महमूरगंज में आप का दफ्तर खुला है। जो लड़का यह बात कह रहा था उसके भाव में न तो ग़ुस्सा था न हताशा। सोमवार को भाजपा दफ्तर से निकलकर आप के दफ्तर चला आया। आम आदमी पार्टी के नौजवान कार्यकर्ता एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। लड़ाई यही होती है। जब आपको पता है कि जीतना मुश्किल है तभी परीक्षा होती है कि आप लड़ते हैं या मैदान छोड़कर भाग जाते हैं। इस लिहाज से अगर आप मेरी तरह चुनावी पर्यटन पर निकले हैं, तो आपको बनारस में झाड़ू और बैनर लिए दो चार लड़के मिल जायेंगे। तेज गर्मी में खुले आसमान के नीचे खड़े लोकतंत्र को समृद्ध करते हुए।

जगह जगह पर आप के कार्यकर्ता झुंड में दिख जाते हैं। कहीं बहस में जीतते हुए तो कहीं हारते हुए। कोई गिटार बजाते जा रहा है तो कोई टोपी बाँटते। भरी धूप में अकेले एक लड़की झाड़ू हाथ में उठाये खड़ी नजर आयी। ये मामूली साहस की बात नहीं है। शायद इन सबके प्रयास का नतीजा है कि लोग भले वोट न दें मगर वे आम आदमी पार्टी की टोपी पहनकर घूमते दिख जायेंगे। इनमें बनारसी भी हैं और बाहरी भी। बाहर से बीजेपी के लिए भी कार्यकर्ता नेता और व्यापारी आये हैं मगर बीजेपी ने बहुत मेहनत से लोगों के कान में यह बात डाल दी है कि आप के लिए जो वोट माँग रहे हैं वो बाहरी हैं। चुनाव में हमदर्दी की उम्मीद किसी को नहीं होनी चाहिए। इसे तोड़ने के लिए अरविंद केजरीवाल लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं। लोगों वोट दे या न दें मगर बनारस की जनता को पता है कि केजरीवाल कौन है। इनकी कमजोरी क्या है और खूबी क्या है।

तो हाँ मैं दफ़्तर की बात कर रहा था। यहाँ आते ही आपको सुविधाओं और साधनों की तलाश में पोस्टर लगे मिलते हैं। चंदा से लेकर गद्दा तक माँगे जा रहे हैं। कोई हरियाणा से आया है तो कोई गोरखपुर से। सब इस नयी राजनीति में इंटर्नशिप कर रहे हैं। सुबह से लेकर शाम तक मेहनत कर रहे हैं। कोई अपने पैसे से बिस्किट ला रहा है तो कोई लस्सी। पूरे शहर में आप के ये कार्यकर्ता पैदल चलते दिख जायेंगे। 

आम आदमी पार्टी का दफ्तर जुनून वालों से भरा है। जुनून वाले बीजेपी के भी हैं मगर वहाँ इस यकीन से भी हैं कि सरकार बन रही है। जीत रहे हैं। आप को कार्यकर्ताओं के पास ऐसा़ विश्वास नहीं है फिर भी लड़ रहे हैं। लोकतंत्र में लड़ना पहली शर्त है।

आप ने ऐसे कई लड़के लड़कियों को लड़ना सीखा दिया है। मैं इन्हें राजनीति का नया मानव संसाधन कहता हूँ। आप इसे राजनीतिक संसाधन भी कह सकते हैं। मोदी ने भी अपनी पार्टी के भीतर और बाहर नया मानव संसाधन तैयार कर दिया है। बीजेपी को भी इसी का लाभ मिल रहा है। बनारस में यह मत पूछिए कि अरविंद जीतेंगे या नहीं बल्कि यह देखिये कि उनकी टीम कैसे लड़ रही है।

(देश मंथन, 07 मई 2014)

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