मुल्ला मुलायम और सलीम योगेंद्र यादव में फर्क क्या?

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विकास मिश्रा, आजतक :

योगेंद्र यादव आम आदमी पार्टी के नेता हैं, बोलते हैं तो जुबां से मिसरी झरती है।

(इन दिनों सोशल मीडिया पर योगेंद्र यादव की ये तस्वीरें खूब फैल रही हैं।)

पढ़े-लिखे हैं, जब तक नेता नहीं बने थे तब तक अच्छे चुनाव विश्लेषक माने जाते थे। लेकिन पिछले दिनों की उनकी कुछ हरकतों से मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ। आप सभी जानते हैं कि योगेंद्र यादव गुड़गाँव से चुनाव लड़ रहे हैं। आजतक पर एक शो राजतिलक में वे आये और चैनल पर इल्जाम लगा दिया – आपका चैनल तो मोदी का विज्ञापन करता है। इसे कहते हैं कि बैठूँ तेरी गोद में उखाड़ूँ तेरी दाढ़ी। 

इन बेगैरतों को इतनी कवरेज दी गयी कि चैनल को तमाम लोग ‘आपतक’ कहने लगे। बहरहाल यादव जी इतने पर ही नहीं रुके। प्रोड्यूसरों पर चीखते रहे कि हमारे स्तर का गेस्ट दूसरी पार्टी से नहीं लाये। ये अलग बात है कि कई सवालों पर उन्हें कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। इसके बाद वे अपने स्तर को लेकर चीख पुकार मचाते रहे और साबित करते रहे कि उनका स्तर दो कौड़ी का भी नहीं रह गया है। अभी सियासत में आये जुम्मा-जुम्मा डेढ़ साल भी नहीं हुए और अहंकार इतना? डर है कि कहीं भस्मासुर न बन जायें। 

यही नहीं, इस पढ़े लिखे बुद्धिजीवी ने रंग बदलने में गिरगिट को भी मात कर दिया। यादव जी गये मुस्लिम बहुल इलाके में चुनाव प्रचार करने। बोले – मेरा नाम सलीम है। खुद को वर्णसंकर साबित करके न जाने इन्हें क्या फायदा मिलेगा, लेकिन उनके इस बयान को लेकर विरोधी पार्टियों के समर्थक ऐसी-ऐसी बातें कर रहे हैं, जिनका जिक्र करना भी उचित नहीं है। मैं योगेंद्र यादव और इनकी पार्टी का विरोधी और समर्थक दोनों नहीं हूँ, लेकिन एक बात इन्हें भी जाननी चाहिए। राजनीतिक शुचिता, अलग विचार, अलग नजरिया का दावा करके ये जनता के बीच गये हैं। फर्क भी दिखना चाहिए। बाकी दलों के नेताओं की तरह अगर ये भी दोगलापन करेंगे तो ये उनसे कहीं बड़े अपराधी कहलायेंगे। फिर मुल्ला मुलायम और सलीम योगेंद्र यादव में फर्क क्या रहेगा?

(देश मंथन, 02 अप्रैल 2014)

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