अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :
बीजेपी के शीर्ष नेताओं में से एक और पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी अरुण जेटली अमृतसर में अपने पहले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से कांटे की टक्कर में उलझे हुए हैं।
राजनीति के इन दो महारथियों की टक्कर पर सबकी नजरें लगी हैं और इस चुनाव में बनारस, लखनऊ, अमेठी की ही तरह अमृतसर सीट पर लड़ाई भी बेहद दिलचस्प हो गयी है।
वैसे अमृतसर सीट पारंपरिक रूप से कांग्रेस के पाले में रही है। लेकिन 2004 से बीजेपी के नवजोत सिंह सिद्धू लगातार यहाँ से जीतते आ रहे हैं। पर राज्य में बीजेपी की सहयोगी पार्टी अकाली दल से उनकी पटरी नहीं बैठ पा रही है। लिहाजा इस बार बीजेपी ने सिद्धू के बजाये अरुण जेटली को चुनाव मैदान में उतारा है। अकालियों से नाराज सिद्धू अपने चुनाव क्षेत्र में प्रचार भी नहीं कर रहे हैं। जबकि जेटली से उनके बेहद अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं। हालाँकि अमृतसर से ही बीजेपी की विधायक उनकी पत्नी नवजोत कौर जरूर जेटली के लिए वोट माँग रही हैं।
वैसे जेटली को चुनाव लड़ने के लिए कई सीटों का सुझाव दिया गया था जिनमें जम्मू, नयी दिल्ली और जयपुर जैसी सीटें शामिल हैं। मगर अकाली दल के मुखिया सरदार प्रकाश सिंह बादल के व्यक्तिगत अनुरोध के चलते जेटली ने अमृतसर से चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनकी जड़ें पंजाब में ही हैं और इसीलिए वो खुद को बाहरी उम्मीदवार बताने वाले कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हैं। जेटली के लिए अमृतसर सीट पर जीत तय मानी जा रही थी लेकिन तभी कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को यहाँ से चुनाव मैदान में उतार दिया।
खुद कैप्टन अमृतसर से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे। वो ज्यादा वक्त अपने क्षेत्र पटियाला में देना चाहते थे। जहाँ से उनकी पत्नी लोक सभा का चुनाव लड़ रही हैं। लेकिन कांग्रेस की रणनीति जेटली को अमृतसर में ही घेरने के रही इसलिए खुद सोनिया गांधी के कहने पर कैप्टन वहाँ से चुनाव लड़ने को तैयार हुए हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुकाबले में उतरने से अमृतसर की लड़ाई कांटे की हो गयी क्योंकि वो जेटली के साथ-साथ अपने परंपरागत विरोधी अकाली दल पर भी निशाना साध रहे हैं।
इसीलिए अमृतसर का चुनाव जेटली के साथ ही अकाली दल की प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है। इस लोक सभा सीट की नौ विधानसभा सीटों में से छह बीजेपी-अकाली गठबंधन के पास है। ग्रामीण इलाकों पर अकाली दल की जबर्दस्त पकड़ है। वहाँ की चार विधानसभा सीटों में से तीन अकाली दल के पास है। जबकि शहर की छह में से दो बीजेपी और एक अकाली दल के पास है। अकाली दल का समर्थन मिलने से ग्रामीण इलाकों में जेटली को बढ़त मिलने की संभावना है। जबकि शहरी इलाकों में इस बढ़त को बनाये रखना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती है। शहरों में अकाली दल के प्रति नाराजगी साफ दिखायी दे रही है क्योंकि लोग बुनियादी सुविधाएँ न मिलने और टैक्स बढ़ाये जाने से नाराज हैं।
जबकि जेटली की ही तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह भी बाहरी होने के आरोपों को झेल रहे हैं। शहरों में अकाली दल के प्रति गुस्से का फायदा चाहे उन्हें मिल रहा है लेकिन महँगाई और भ्रष्टाचार को लेकर यूपीए सरकार के प्रति नाराजगी भी उन्हें भारी पड़ रही है। कैप्टन पर ये भी आरोप लगता है कि राजा-महाराजा वाली उनकी पृष्ठभूमि उन्हें आम लोगों से घुलने-मिलने से दूर रखती है। उम्मीदवार घोषित होने के बाद से कैप्टन ज़्यादा वक्त अमृतसर में नहीं गुजारा है जबकि जेटली ने बाहरी उम्मीदवार का ठप्पा मिटाने के लिए अमृतसर में ही घर भी खरीद लिया है और वो यहाँ खूँटा गाड़ कर बैठ गये हैं।
बीजेपी नरेंद्र मोदी के करिश्मे का फायदा भी अमृतसर के शहरी इलाकों में उठाना चाह रही है। अभी तक मोदी ने पंजाब में सिर्फ एक ही चुनावी रैली की है। 24 अप्रैल को वो अमृतसर में जेटली के समर्थन में रैली करेंगे। बीजेपी को भरोसा है कि उसके बाद शहरी इलाकों में मतदाता जेटली के समर्थन में जुटेंगे। संभावित एनडीए सरकार में जेटली को बड़ी जिम्मेदारी मिलने की बात कह कर भी अकाली दल और बीजेपी के नेता उनके पक्ष में वोट मांग रहे हैं। बीजेपी में जेटली का बड़ा कद उनके पक्ष में जा रहा है। जबकि गुजरात में सिख किसानों के विस्थापन का मुद्दा उठा कर कैप्टन अमरिंदर इस लोक सभा सीट के पैंसठ फीसदी सिख मतदाताओं को अपने पाले में लाने में जुटे हैं।
इस तरह अमृतसर सीट पर दो सरकारों के विरोध का रुझान दिख रहा है। केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और राज्य की अकाली दल-बीजेपी सरकार के कामकाज के खिलाफ। यही रुझान जेटली और कैप्टन दोनों की चुनौतियाँ बढ़ा रहा है क्योंकि इसके चलते मतदाताओं का मूड भांपने में दिक्कत हो रही है। आम आदमी पार्टी ने जाने-माने स्थानीय नेत्र चिकित्सक डॉक्टर दलजीत सिंह को मैदान में खड़ा कर दिया है जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के वोटों में सेंध लगा रहे हैं। इसीलिए अमृतसर में दो दिग्गजों की ये लड़ाई बेहद दिलचस्प हो गयी है।
(देश मंथन, 16 अप्रैल 2014)