डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने काम-काज की शुरुआत में जिस मुस्तैदी और मौलिकता का परिचय दिया है, उससे बहुत आशाएँ बंध रही हैं। दक्षेस-राष्ट्रों का सम्मेलन, काले धन के लिए जाँच दल, रेल दुर्धटना पर रेल मंत्री को दौड़ाना, हेरात के हमले पर सीधी बात करना आदि वे कदम हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मोदी सरकार कई बड़े चमत्कारी काम कर सकती हैं।
आज मालूम पड़ा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने सभी मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे अपने परिजन और रिश्तेदारों को निजी सहायकों के पद पर न रखें। यह निर्देश असाधारण महत्व का है।
सोनिया – मनमोहन प्रतिष्ठान के विनाश का मूल कारण भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में चोरी-छिपे काम का बड़ा महत्व होता है। पारदर्शिता भ्रष्टाचार की दुश्मन है। सांसद और मंत्रिगण अपने रिश्तेदारों को निजी सहायकों के पद पर इसीलिए जमा देते हैं कि उनके भ्रष्टाचार और दुराचरण पर पर्दा पड़ा रहे। पिछली सरकार मे डेढ़ दो सौ सांसद और मंत्री ऐसे थे, जो अपने रिश्तेदारों को इन सरकारी पदों पर डटाए हुए थे या उनके नाम पर वेतन बटोर लेते थे। ऐसी नियुक्ति के विरूद्ध कोई कानून नहीं है लेकिन पिछले साल अक्टूबर में राज्यसभा की मर्यादा समिति ने एक प्रस्ताव पारित करके रिश्तेदारों को इन पदों से दूर रखने की सिफारिश की थी। लेकिन सिफारिश कौन मानता है? राज-काज तो डंडे से ही चलता है। जो लोग डंडे से राज चलाने बैठते हैं, अब मोदी ने उन पर ही डंडा चला दिया है। अब देखें किसकी हिम्मत है कि अपने सगे-संबंधियों के दम पर वह भ्रष्टाचार करता है। मोदी की हिम्मत है कि उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में किसी भी नेता के सगे-संबंधी को घुसने नहीं दिया है।
भ्रष्टाचार सिर्फ पैसों के लेन-देन से ही नहीं होता। मर्यादा के उल्लंघन से भी होता है। मंत्री का निजी सचिव भारत सरकार के सचिव के मुकाबले बहुत छोटा कर्मचारी होता है लेकिन यदि वह मंत्री का भाई है तो वह किसी की भी नहीं सुनता। सर्वत्र उसकी तूती बोलती है। इसी का परिणाम है कि मनमोहन मंत्रिमंडल के सम्मानीय सदस्य अपने पद से हाथ धो बैठे। मोदी सरकार का यह आग्रह भी सराहनीय है कि सरकारी ठेके आदि भी अपने रिश्तेदारों को न दिए जायें। मनमोहन के एक अन्य मंत्री इस कारण भी अपदस्थ हो चुके हैं। आशा है, मोदी के निर्देशों का नए मंत्री अक्षरश: पालन करेंगे, वरना खबरपालिका इतनी सतर्क है कि वह पूरी सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर देगी। यदि सांसदों को दी जाने वाली खर्च राशि पर कड़ी निगरानी रखी जा सके तो नयी सरकार की चमक बढ़ जायेगी।
मोदी ने अपने शपथ-समारोह से अपनी माँ और भाइयों को भी दूर रखा, इसे मैं अति मानवीय गुण मानता हूँ। ऐसी अनाशक्ति तो साधु महात्मा लोग भी नहीं रख पाते। इसलिए मोदी के निर्देश कोर निर्देश नहीं है, कोरे उपदेश नहीं हैं। वे ठोस हिदायत हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठा पहला कदम है।
(देश मंथन, 30 मई 2014)