अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :
भीड़ पचास हजार थी, एक लाख या तीन लाख? लोग स्थानीय थे या बाहरी? लोग आये थे या लाये गये थे? इन तमाम सवालों पर लोग अपनी-अपनी आस्था, विश्वास और विचारधारा के हिसाब से चाहे बहस करते रहें।
लेकिन भीड़ के मिजाज को समझना ज्यादा जरूरी है। बनारस की सड़कों पर गुरुवार को उमड़ा भगवा सैलाब देश के सबसे बड़े राज्य में बने एक अलग किस्म के चुनावी माहौल की ओर इशारा कर रहा है। इसे नजरअंदाज कर राज्य की चुनावी तस्वीर की समीक्षा करना बेमानी होगा।
इससे दो दिन पहले मुलायम सिंह यादव भी आजमगढ़ में पर्चा भरने पहुँचे थे। शहर में घुसने के बाद उनकी रैली तक पहुँचने में दो घंटे लग गये थे क्योंकि सड़कें गाड़ियों से भरी हुई थीं। उसी दिन बीजेपी के उम्मीदवार रमाकांत यादव भी पर्चा भर रहे थे। सड़कों पर जितनी संख्या मुलायम सिंह यादव के समर्थकों की थी करीब उतनी ही बीजेपी के समर्थकों की भी थी और सड़कों पर रेंगती गाड़ियाँ सपा और भाजपा के झंडों से पटी हुई थीं। स्थानीय आईटीआई कॉलेज में हुई मुलायम की सभा में मैदान भरा हुआ था। सभा खत्म होने के बाद शहर से निकलने में काफी वक्त लगा क्योंकि सभा में आये लोगों के छंटने का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा।
इसके उलट बनारस में मोदी का रोड शो खत्म होने के साथ ही सड़कों पर उमड़ी भीड़ छंटती चली गयी। चिलचिलाती धूप में सड़कों पर निकले और घंटों से मोदी का इंतज़ार कर रहे लोग उनके निकलते ही अपने-अपने ठिकानों की ओर निकल लिए और सड़कें खाली होती चली गयीं। ऐसा तभी होता है जब शहर के बाहर से बसों-ट्रैक्टरों में भीड़ न लायी जाये क्योंकि आस-पास से आयी भीड़ के वापस जाने पर सड़कों पर वैसी ही रेलमपेल होती है जैसी उनके शहर में घुसने के वक्त दिखती है।
मोदी के रोड शो में आये लोगों के उन्माद और मोदी के प्रति उनके आकर्षण को समझना बेहद जरूरी है। इस पूर्वांचल में बनारस, गोरखपुर, बांसगांव और आजमगढ़ को छोड़ बीजेपी बाकी 29 सीटों में सब दूर साफ है, वहाँ मोदी के प्रति इस तरह का उत्साह यहाँ बदली हवा का एहसास करा रहा है। ऐसा लग रहा है कि बनारस से मोदी को उतार पूर्वी उत्तर प्रदेश और सटी हुई बिहार की सीटों पर बीजेपी के पक्ष में माहौल खड़ा करने की पार्टी की रणनीति काम करती हुई दिखाई दे रही है। निश्चित तौर पर गुरुवार को हुए मोदी के रोड शो और टेलीविजन पर इसके लगातार प्रसारण ने इस माहौल को बनाने में और ज्यादा मदद की है।
ये वही इलाका है जहाँ उम्मीदवारों के चयन में बीजेपी ने सबसे ज्यादा गलतियाँ की हैं और उसे तगड़ा विरोध झेलना पड़ा है जबकि पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह इसी इलाके से आते हैं। यहाँ उस तरह का ध्रुवीकरण देखने को नहीं मिला है जैसा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिखा। हालाँकि मुलायम सिंह यादव के आजमगढ़ और नरेंद्र मोदी के बनारस से चुनाव मैदान में उतरने से कुछ-कुछ वैसा ही माहौल बनता दिख रहा है। मोदी ने पर्चा भरने के साथ ही गंगा मां का जिक्र किया तो वहीं मुलायम मुसलमानों के लिए उठाये गये कदमों का ही हवाला देते रहे।
बीजेपी इस इलाके में कमजोर है। जबकि यहाँ मजबूत हुए बिना उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में सीटें जीतने का उसका मंसूबा पूरा नहीं हो सकता। पार्टी को उम्मीद थी कि मोदी के करिश्मे का फायदा उसे पूर्वांचल में मिलेगा। लेकिन फिलहाल बनारस और गोरखपुर को छोड़ किसी सीट पर वो मजबूत स्थिति में नहीं दिखती। पास की चंदौली, भदोही, जौनपुर, मछलीशहर, आज़मगढ़, रॉबर्ट्सगंज, बलिया और घोसी सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार कांटे की टक्कर में उलझे हैं। इनमें से कुछ सीटों पर तो बीजेपी उम्मीदवार पहले तीन स्थानों पर भी नहीं दिखायी देते। जबकि सपा-बसपा फिलहाल मजबूत स्थिति बनाये हुए हैं और कांग्रेस मुकाबले से बाहर होती जा रही है।
बाकी उत्तर प्रदेश की ही तरह यहाँ भी जातिगत समीकरणों को साधे बिना चुनावी कामयाबी की कल्पना नहीं की जा सकती है। बीजेपी को उम्मीद है कि मोदी के नाम से जाति की दीवारें टूटेंगी। पार्टी के रणनीतिकार अमित शाह की कोशिश गैर यादव पिछड़े और अगड़े वोटों को पार्टी के पाले में लाने की है। बीजेपी जातिगत समीकरणों को दुरूस्त करने में पीछे नहीं है। अपना दल से समझौता इसी रणनीति के तहत किया गया है।
(देश मंथन, 26 अप्रैल 2014)