डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
प्रधानमंत्री पद के लिए नेता पद स्वीकार करते समय नरेंद्र मोदी ने संसद के केंद्रीय कक्ष में जो भाषण दिया, उसने मोदी की छवि में चार चाँद लगा दिए हैं।
भारत के किसी भी प्रधानमंत्री के पद-स्वीकार के अवसर पर ऐसा समाँ बँधा हो, मुझे याद नहीं पड़ता। यह समाँ ऐसा था कि उस सभा में बैठे हुए लोगों की ही नहीं, देश के करोड़ों दर्शकों की भी आँखें भर आयीं। क्या आज तक किसी प्रधानमंत्री ने संसद-प्रवेश के समय संसद की सीढ़ियों पर मत्था टेका है? नरेंद्र भाई ने संसद को मंदिर का दर्जा दे दिया। संसद राजधर्म का मंदिर है। मोदी से अपेक्षा की जायेगी कि वे संसद की राय का पूरा सम्मान करेंगे। उन्होंने जिस संस्था की सीढ़ियों पर अपना मत्था टेका है, उसकी राय को हमेशा अपने माथे पर धारण करेंगे। वे राजधर्म का पालन करेंगे, तभी संसद पर उनका मत्था टेकना सार्थक सिद्ध होगा।
जो दूसरी घटना, जिसने सबका मर्मस्पर्श किया, वह थी, मोदी का भावुक होना। मोदी की आँखों में आँसू? उस मोदी की आंखों में आँसू, जिसे ‘मौत का सौदागर’ कहा गया, जिसे ‘पत्थर दिल’ कहा गया, जिसे ‘अहंकारी’ कहा गया, जिसे हिटलर कहा गया, वह मोदी कैसे पिघल गया? आज तक तो कोई प्रधानमंत्री इस तरह नहीं पिघला। मोदी इस बात पर रो पड़े कि आडवाणीजी ने उनकी ‘कृपा’ का जिक्र कर दिया। भाजपा और स्वयं आडवाणीजी पर कृपा!! यदि मोदी सचमुच अहंकारी होते या अपनी माँ या पिता के कारण प्रधानमंत्री बने होते तो वे आडवाणीजी की टिप्पणी पर आभार व्यक्त कर देते या चुप रह जाते लेकिन उन्होंने भाजपा को अपनी मां बताया और आडवाणीजी के चरण छुए।
इस घटना ने दो बातें सिद्ध कीं। एक तो मोदी को सहज मनुष्य की तरह पेश किया और दूसरा देश को यह आश्वस्ति दी कि भाजपा पहले है, मोदी बाद में। भाजपा ऊपर है और मोदी नीचे है। इस घटना के कारण नरेंद्र भाई के प्रति उनकी पार्टी में जो ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा का भाव कुछ लोगों में रहा है, वह भी घटेगा। यह सब जानते हैं कि भाजपा की इस अपूर्व विजय के नायक नरेंद्र मोदी ही हैं। मोदी ने अपने बर्ताव से यह सिद्ध किया है कि पेड़ में जब फल लगते हैं, तो वह अपने आप झुक जाता है।
मोदी ने अपने भाषण में गरीब नागरिकों को जिस तरह महामंडित किया है और स्वयं को गरीब मतदाताओं के साथ जैसे तदाकार किया है, उससे ऐसा लगता है कि वे इस आरोप को सत्य सिद्ध नहीं होने देंगे कि वे बड़ी-बड़ी कंपनियों और धन्ना-सेठों के प्रतिनिधि हैं। चुनाव-अभियान में देश के 100 करोड़ गरीबों की उपेक्षा सभी नेताओं ने की है। उसकी भरपाई शायद मोदी के इस बयान से हो जाए। मोदी ने कोई विभाजनकारी बात संकेत रुप में भी नहीं कही। उन्होंने अपना दायित्व देश के 125 करोड़ लोगों के प्रति प्रकट किया। उन्होंने प्रकारांतर से अल्पसंख्यकों को स्वास्ति-भाव प्रदान किया है। उन्होंने देश के आम आदमी को सक्रिय होने का आह्वान किया है। उन्होंने सरकार की सफलता का दारोमदार जनता के सहयोग पर डाला है। जनता के सहयोग का महत्व वह व्यक्ति नहीं जानेगा तो कौन जानेगा, जो बचपन में चाय बेचता था और जिसकी माँ लोगों के घरों में बर्तन मांजकर अपने बच्चों को पालती थी। भारत के मार्क्सवादियों को मोदी को सलाम करना चाहिए, क्योंकि मोदी से बढ़कर सर्वहारा नेता कौन है, जो भारत का प्रधानमंत्री बना है?
लेकिन यहाँ एक परेशानी की बात! चाँद में एक दाग। यदि मोदी ने राष्ट्रपति को अपना प्रस्ताव पत्र अंग्रेजी में दिया है तो यह फिसलन की शुरुआत है। अंग्रेजी की गुलामी, सोनिया गांधी की गुलामी से ज्यादा खतरनाक है। मोदी को जिस भाषा ने प्रधानमंत्री बनाया है, उसी भाषा में उन्हें शासन चलाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह मोदी भी नौकरशाहों के हाथ की कठपुतली बन जायेगे। मैं नहीं चाहता हूँ कि ऐसा हो।
(देश मंथन, 22 मई 2014)