डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकारी कार्यक्रमों में आजकल बड़ा मजेदार नजारा देखने को मिलता है। वह चाहे जहाँ जाये, चाहे हरियाणा, महाराष्ट्र या झारखंड वहाँ के मुख्यमंत्रियों को तो शामिल होना ही पड़ता है।
वह सरकारी कार्यक्रम होता है, पार्टी कार्यक्रम नहीं। लेकिन आजकल अपने देश में कुछ अजूबा ही हो रहा है। प्रधानमंत्री के साथ मंच पर बैठने वाले या बोलने वाले मुख्यमंत्रियों को उनके प्रदेश के ही लोग उखाड़ देते हैं। उनके भाषणों में लोग इतना शोर मचाते हैं कि वे बोल ही नहीं पाते। वे बहुत अपमानित महसूस करते हैं। कभी-कभी इसका कारण वे स्वयं भी होते हैं।
सरकारी कार्यक्रम में औपचारिक और संक्षिप्त भाषण देने की बजाय वे राजनीतिक चर्चा करने लगते हैं। उसमें भी वे केंद्र सरकार या भाजपा की दबे-छिपे या खुले में आलोचना करने लगते हैं। उनकी आलोचना या शिकायत सही भी हो सकती है लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि क्या उसके लिए वह मौका सही है? क्या उन्हें पता नहीं कि जो श्रोता नरेंद्र मोदी को सुनने आते हैं, वे प्रायः कांग्रेस-विरोधी या भाजपा-समर्थक ही होंगे?
वे अगर गैर-भाजपाई मुख्यमंत्रियों को तंग नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? क्या इन मुख्यमंत्रियों को जन-भावना का अंदाज नहीं होता? जिस जनता ने एक प्रांतीय नेता को इतने प्रचंड बहुमत से अखिल भारतीय नेता बनाया है, उसके सामने विरोधी पार्टी के मुख्यमंत्रियों को लोग क्यों टिकने देंगे? यह ठीक है कि प्रधानमंत्री की ओर से शोर मचाने वालों को शांत किया जाना चाहिए। वे करते भी हैं लेकिन उनकी कौन सुनता है? क्या आपको पता नहीं कि चुनाव-अभियान के दौरान भाजपा नेताओं को भी भीड़ मंच से खदेड़ देती थी?
नरेंद्र मोदी से कहीं अधिक उत्तम वक्ता और पुराने भाजपा नेताओं को भी जब जनता सुनने को तैयार नहीं होती थी तो अब कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को वे क्या गिनेंगी? इसीलिए मुख्यमंत्रियों की इस शिकायत में दम नहीं दिखता कि उनके भाषणों के दौरान सारा हंगामा भाजपा की ओर से प्रायोजित होता है।
चाहे जो हो, इस स्थिति पर काबू पाया जाना चाहिए। कांग्रेस का यह फैसला कि उसके मुख्यमंत्री मोदी की सभाओं में नहीं जाया करेंगे, उचित नहीं है। इससे लोकतांत्रिक परंपराएँ भंग होनी शुरू हो जायेंगी। पक्ष और विपक्ष, लोकतांत्रिक रथ के दो पहिए हैं। उनमें समन्वय और सद्भाव जरुरी है। इस मामले में प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी है। उन्हें चाहिए कि वे गैर-भाजपाई मुख्यमंत्रियों की मान-रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहें।
(देश मंथन, 23 अगस्त 2014)