प्रियंका के प्रति मेरी सहानुभूति

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

प्रियंका वाड्रा ने शिकायत की है कि उनके भाई और मां के चुनाव क्षेत्र में कई लोग ऐसी पुस्तिकाएँ बंटवा रहे हैं, जो घोर आपत्तिजनक हैं। ये पुस्तिकाएँ वे रात के अंधरे में लोगों के घरों में डलवा रहे हैं।

प्रियंका का कहना है कि इन पुस्तकों में गंदी और झूठी बातें लिखी गयी हैं। उनकी मां-सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी का चरित्र हनन किया गया है। पुस्तकें बांटने वाले ये लोग डरपोक और कायर हैं। इन पुस्तकों का नाम है- ‘राहुल की रावण लीला’ और ‘सोनिया की बर्बरता और साजिश’ इन पुस्तकों के प्रकाशक के नाम की जगह ‘संस्कृति रक्षक संघ’ छपा हुआ है।

इन पुस्तकों को मैंने नहीं देखा है। मुझे अभी तक किसी ने नहीं भेजी है लेकिन मैं इन्हें पढ़े बिना ही प्रियंका की पीड़ा को समझ सकता हूँ। इसके दो कारण हैं। पहला तो तथाकथित ‘सोशल मीडिया’ है। इंटरनेट और एसएमएस के जरिये मेरे पास सोनिया गांधी और राहुल के बारे में इतनी अश्लीलें बातें भेजी गयी हैं कि मैं यही अफसोस करता रहा हूँ कि मैं लैपटॉप और मोबाइल फोन क्यों रखता हूँ? मैंने जितना अपने व्यक्तिगत अनुभव में पाया है, सोनियाजी को सदा शिष्ट और विनम्र पाया है और राहुल ने 2005 में काबुल के राजमहल में एक निजी शाकाहारी डिनर में भाग लिया था, जो बादशाह जाहिर शाह की पड़नातिन और शाहजादे मुस्तफा ने आयोजित किया था। हम सात-आठ लोग ही थे। वहाँ भी राहुल का व्यवहार अत्यंत संयत और मर्यादित था। लेकिन इंटरनेट पर राहुल को धुर्त्त, भ्रष्ट, झूठा, भौंदू और पता नहीं, क्या-क्या बताया गया है।

प्रियंका की पीड़ा को समझने का दूसरा कारण हमारे नेतागण भी है, जिन्हें सब जानते हैं लेकिन उनके नाम मैं यहाँ खोलूंगा नहीं। वे मुझसे अक्सर पूछते रहते हैं कि अफगान बादशाह जाहिर शाह की पड़नातिन का नाम क्या है? अब दिग्विजय-कांड के बाद यह प्रश्न और जोर से पूछा जा रहा है।

समझ में नहीं आता कि आपको इतने नीचे स्तर पर उतरने की जरूरत क्या है? कांग्रेस का तो यों ही बेड़ा गर्क है, आप अपना बेडा क्यों गर्क कर रहे हैँ? अपने आपको आप संस्कृति रक्षक कहते हैं, लेकिन इससे अधिक संस्कृति-भक्षण क्या हो सकता है? यदि आप में दम हैं तो आप खुले आम ये आरोप क्यों नहीं लगाते या सोनिया और राहुल को अदालत में क्यों नहीं घसीटते? आप संस्कृति-रक्षा के नाम पर जो कुछ कर रहे हैं, यह अपराध तो है ही, पाप भी है। भारतीय लोकतंत्र को कलंकित करना भी है।

(देश मंथन, 06 मई 2014)

 

 

 

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