कैसे बने दलितों के मसीहा

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राकेश उपाध्याय, पत्रकार:

यदि राजनीतिक दल अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। इसलिए हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने महान देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी है। -डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा में दिए गये भाषण का हिस्सा…

…दो साल 11 महीने सत्रह दिन बाद संविधान सभा की ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमैन के तौर पर डॉ. भीमराव अंबेडकर जब अपना आखिरी भाषण दे रहे थे, उनकी आँखों में भारत की एकता और स्वतंत्रता के भविष्य को लेकर गंभीर चिंतन-मंथन का दौर चल रहा था……संविधान सभा में बोलते हुए तब डॉक्टर अंबेडकर ने साफ लफ्जों में भारत के राजनीतिक दलों को देश की एकता-अखंडता के लिए आगाह किया था…….अंबेडकर ने कहा था।

26 जनवरी, 1950 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा। लेकिन उसकी स्वतंत्रता का भविष्य क्या है? क्या वह अपनी स्वतंत्रता बनाये रखेगा या उसे फिर खो देगा? मेरे मन में आने वाला यह पहला विचार है। 

26 जनवरी, 1950 को भारत एक प्रजातांत्रिक देश बन जाएगा कि उस दिन से भारत में जनता की जनता द्वारा और जनता के लिए बनी एक सरकार होगी।… क्या भारत अपने प्रजातांत्रिक संविधान को बनाए रखेगा या उसे फिर से खो देगा? मेरे मन में आने वाला यह दूसरा विचार है और यह भी पहले विचार जितना ही चिंताजनक है।

दुनिया के तमाम देशों और भारत के प्राचीन राजनीतिक जीवन के अध्ययन के बाद जो सवाल डॉक्टर अंबेडकर के दिलो-दिमाग में उठे, उसे उन्होंने संविधान सभा के जरिए पूरे देश के जेहन का सवाल बना दिया…….डॉक्टर.अंबेडकर ने अपनी चिंता को जायज बताते हुए कुछ सवाल उठाए और साफ नसीहतें दी कि

यह बात नहीं है कि भारत कभी एक स्वतंत्र देश नहीं था।.. यह तथ्य मुझे और भी व्यथित करता है कि न केवल भारत ने पहले एक बार स्वतंत्रता खोयी है, बल्कि अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण भारत बार-बार आजादी खोता रहा है।

सिंध पर राजा दाहिर पर मोहम्मद बिन कासिम के हमले के वक्त सैन्य अधिकारियों ने रिश्वत लेकर देश के साथ विश्वासघात किया।

पृथ्वीराज चौहान से लड़ने के लिए मुहम्मद गोरी को जयचंद ने ही आमंत्रित किया।

आजादी के लिए जब शिवाजी लड़ रहे थे तो अनेक राज मुगल दरबार के साथ खड़े थे।

1857 में जब देश ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ रहा था तो कई राजा ब्रिटिश हुकूमत के साथ खड़े थे।

क्या भविष्य में भी यह इतिहास दोहराएगा? मुझे यही सवाल चिंता से भर देता है।

संविधान सभा में डॉक्टर अंबेडकर ने सदियों की आजादी के संघर्ष के इतिहास और भारत की नाकामी की वजहों पर सीधी चेतावनी दी कि और साफ कहा कि 

यह तय है कि यदि राजनीतिक दल अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। इसलिए हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने महान देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी है।

क्रमशः……

‪(देश मंथन, 15 अप्रैल 2016)

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