उड़ता पंजाब और उल्टा दाँव

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संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

गुजरात का फार्मूला देश में नहीं चल रहा है। ना विकास का ना चुनाव जीतने का। भाजपा दावा चाहे जो करे। भक्त चाहे जो दिखाएं-बताएं सच यह है कि हिन्दुत्व ब्रिगेड की चालें बुरी तरह मार खा रही हैं।

भाजपा अपनी चालों से अपने समर्थकों को अगर एकजुट कर पा रही है तो विरोधी भी जनता को जागरूक करने के लिए उसकी चालों का खुलासा करने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। बिहार चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद अब पंजाब और उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं। भाजपा और उसके समर्थकों ने कोशिशें शुरू कर दी हैं और जवाब भी मिल रहे हैं।
पहलाज निहलानी के आरोप को मानें तो पंजाब चुनाव जीतने के लिए आम आदमी पार्टी ने पैसे दे कर फिल्म बनवाई और पार्टी के निर्देश पर या वैसे ही भक्त फॉर्म में आ गये और उसी क्रम में केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के प्रमुख पहलाज निहलानी ने एक घिसा-पिटा जाना समझा खुलासा किया कि मैं प्रधानमंत्री का चमचा हूँ। यह इतनी वाहियात चाल थी कि अमूमन ऐसे मौकों पर चुप रहने वाली भाजपा की ओर से अरुण जेटली को कहना पड़ा कि प्रधानमंत्री को चमचों की जरूरत नहीं है।
जरूरत है कि नहीं, के विवाद में गये बगैर यह तो साफ हो ही गया है कि उड़ता पंजाब के मामले में सेंसर बोर्ड का दाँव असर तो नहीं कर पाया उल्टा भी पड़ा। और यह दादरी में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की समर्थकों की कोशिश और उसे भुनाने की चालों के बीच असहिष्णुता के विरोध में पुरस्कार लौटाने से जो माहौल बना उसमें गो माता किसी काम नहीं आईं।
हिन्दुत्व ब्रिगेड यूपी चुनाव के मद्देनजर सांप्रदायिक तनाव फैलाने और इससे भाजपा को लाभ पहुँचाने की पूरी कोशिश में है। मामला इतना आसान नहीं है और देखना है जवाबी कार्रवाई क्या होती है और आखिरकार ऊंट किस करवट बैठता है। पर इस कोशिश में जो नुकसान होगा, वह निश्चित रूप से अफसोसनाक होगा। कैराना ताजा मामला है और राज्यसभा के चुनावों में कोई हारा तो भाजपा ही। भले पैसे किसी और के गये। लोकतांत्रिक राजनीति अपनी कीमत तो लेगी।
(देश मंथन, 13 जून 2016)

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