पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
चापलूसी की इंतहा है। संसद में गला फाड़ने से कुछ नहीं होगा। देश अब जान चुका है कि हर घोटाले और भ्रष्टाचार के पीछे कौन सा राजनीतिक दल और उसका आला कमान है। इसलिए तर्क मत गढ़िए। एजेंसियों को अपना काम करने दीजिए।
बोफोर्स से लेकर हेलीकाप्टर खरीद तक जितने भी देश में स्कैंडल हुए, चाहे वे टूजी हो या कोयला खान आवंटन अथवा राष्ट्रकुल खेल, नेशनल हेराल्ड आदि आदि, सभी में सिर्फ कांग्रेस का ही नाम जुड़ा रहा। अब यह लुका छिपी बात नहीं रह गयी कि देश को आजाद कराने का श्रेय अकेले लेने वाला यह दल भ्रष्टाचार का दूसरा नाम बन चुका है। उसका नेतृत्व वर्ग एक परिवार विशेष ही है और जो स्वयँ को देश पर राज करने का एकलौता अधिकारी मानता है। दल के अन्य नेतागणों की भूमिका जमींदार के कर्मचारियों या कारिंदों भर की ही रह गयी और जो देश को अपनी रियाया समझ कर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज करने के नाम पर अपना स्वयँ का ही विकास करता रहा।
वर्तमान सरकार को यह बताने की जरूरत है कि सत्ता में आने बाद दो वर्षों तक अगस्ता हेलीकाप्टर खरीद में 360 करोड़ की घूस के मामले में उसने अब तक क्या जाँच उसकी सीबीआई और ईडी ने की है? यदि सुस्त रही जाँच तो क्यों? क्या कहीं कोई आरोपियों को बचा रहा है? यदि विपक्ष सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की बात कर रहा है तो क्या गलत है? हालाँकि सुप्रीम कोर्ट की बात करके कांग्रेस ने प्रकारांतर में यह स्वीकार कर लिया कि सीबीआई निष्पक्ष नहीं है फिर भी सरकार को आगे आ कर तीन या छह महीने में जाँच खत्म कर दोषियों को कठघरे में लाने की जरूरत है और चाहे कोई कितना ही बड़ा क्यों न हो, उसके चेहरे पर पड़ी नकाब नोच फेकने का यही समय है। जाँच के नाम पर लीपापोती होती रही है आज तक।
वर्तमान सरकार को साबित करना है कि उसके काम काज का तरीका क्यों भिन्न है। उसे जनता को यह भरोसा दिलाना होगा कि इस घूसकांड का हश्र बोफोर्स जैसा नहीं होगा। मुख्य दलाल मिशेल को कांग्रेस पहले ही दिन से ढाल बना चुकी है।
मिलान अपीली कोर्ट का फैसला आने के अगले ही दिन सेक्युलर अखबार द हिंदू ने दुबई में रह रहे मिशेल का इंटरव्यू प्रकाशित किया था, जिसमें उसने कहा कि वह सोनिया और राहुल गाँधी से कभी नहीं मिला। मिशेल का ताजा बयान यह कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पेशकश की है कि सोनिया का नाम लो तो तुमको अभयदान। यह सब इंगित करता है कांग्रेस की घबराहट को। इतालवी कोर्ट के फैसले में राजनेताओं के नाम आ चुके हैं। मजा यह दागियों में तत्कालीन रक्षा मंत्री एंटोनी का नाम नहीं है।
दो राय नहीं कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इतना शातिर दिमाग है कि उसने दो संवेदनशील पदों पर चाहे वह प्रधान मंत्री हो या रक्षा मंत्री, वैसों को बैठाया जिनकी ईमानदारी संदेह से परे रही है और उनकी आड़ में बिना जवाबदेही दस बरस तक घर से राज किया। अपना तो यह मानना है कि दुनिया छोड़ने के पहले इस ईमानदार युगल ने अपने कार्यकाल के अनुभव पूरी सत्यता के साथ यदि पुस्तक या अन्य माध्यमों से सार्वजनिक नहीं किये तो उन्हें देश की सबसे भ्रष्टतम सरकार के कलंकित प्रधान और रक्षा मंत्री के रूप में ही याद किया जाएगा।
(देश मंथन, 07 मई 2016)