डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेह-कारगिल में जो कुछ कहा, उसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने भारत-पाक मैत्री के विरुद्ध शंखनाद कर दिया है। यह हो सकता है कि उनके बयान पर पाकिस्तान की ओर से तीव्र प्रतिक्रिया हो।
लेकिन पाकिस्तान के नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे मोदी के शब्दों पर न जायें, उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें। मोदी ने कहा हैं कि हमारा पड़ोसी युद्ध लड़ने की ताकत खो चुका है। अब वह दबी-छुपी लड़ाई पर उतारु हो गया है याने वह आतंकवादियों के जरिए बेकसूरों की हत्या कर रहा है। युद्ध में जितने लोग मारे जाते हैं, उससे ज्यादा लोग कायरों की गोलियों से मारे जाते हैं।
1999 के बाद लेह-कारगिल जाने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं। वहाँ के निवासियों और फौज के जवानों की हौसला-अफजई करना उनका कर्तव्य है। उन्होंने जो कुछ कहा, उसे इसी कर्तव्य का निर्वाह समझना चाहिए। इसका यह अर्थ निकालना उचित नहीं है कि वे पाकिस्तानी फौज को चुनौती दे रहे हैं। पाकिस्तान की फौज अपने आप में काफी मजबूत है। असलियत तो यह है कि पाकिस्तान में सिर्फ वही मजबूत है और सबसे मजबूत है। मोदी का मकसद सिर्फ यह बताना था कि वे आतंकवाद के बेहद खिलाफ हैं और पूरी दुनिया उसकी भर्त्सना करती है। यह सबको पता है कि आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तानी फौज ने आजकल पूरा युद्ध ही छेड़ रखा है। इतना बड़ा आतंकवाद-विरोधी अभियान आज तक दुनिया के किसी देश में नहीं छेड़ा गया है। वजीरिस्तान के लाखों लोगों को अपने घर खाली करके भागना पड़ा है, करोड़ों रुपये रोज खर्च हो रहे हैं, दर्जनों लोग मारे जा रहे हैं और आतंकवादी अपनी जान बचाने के लिए पड़ोसी देशों में घुसकर छिप रहे हैं। संदेह नहीं कि पाकिस्तानी फौज को भारत-विरोधी आतंकवादियों का भी सफाया करना चाहिए। यही बात प्रधानमंत्री मोदी ने कही है। दूसरे शब्दों में मोदी ने पाकिस्तानी फौज को चुनौती नहीं दी है बल्कि उसे उसका कर्तव्य-बोध करवाया है।
यदि पाकिस्तान की फौज और नेता मोदी के बयान को इस नजरिए से देखेंगे तो दोनों देशों के संबंध सहज बनाने में मदद मिलेगी। वरना, इस बयान को लेकर सारा मामला ही गड़बड़ा सकता है। पिछले दो-ढाई माह में दोनों देशों के बीच जो सहज-संबंधों की भूमिका तैयार हुई है, उसे चौपट होते देर नहीं लगेगी। यों भी पाकिस्तान की नवाज सरकार और फौज काफी मुसीबत में फंसी हुई है। आतंकवादियों के खिलाफ जबर्दस्त युद्ध तो चल ही रहा है, इमरान खान और ताहिरुल कादिरी के 14 अगस्त के प्रदर्शन ने सरकार की नाक में दम कर रखा है। ये सभी तत्व मोदी के बयान को तोड़-मरोड़ दें तो आश्चर्य नहीं होगा। दोनों विदेश सचिवों की भेंट और सितंबर में दोनों प्रधानमंत्रियों की भेंट भी खटाई में पड़ सकती है। स्थिति नाजुक है। दोनों तरफ से संयम और सावधानी की जरुरत है।
(देश मंथन, 14 अगस्त 2014)