‘नौलखा’ सूट : सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया

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राजीव रंजन झा :

वैसे तो नरेंद्र मोदी बड़े शानदार संचारक हैं, खूब जानते-समझते हैं कि किस मौके पर क्या कहना है, कैसे कहना और क्या नहीं कहना है, लेकिन ओबामा की भारत यात्रा के दौरान वे एक भारी चूक कर गये। एक सूट पहन लिया, जिसके बारे में कहा गया कि वह नौलखा सूट है।

कुछ लोगों ने 10 लाख रुपये के आसपास कीमत बतायी। एक बंद गला सूट, जिस पर सुनहरी धारियाँ बनी थीं। खुर्दबीनी निगाहों ने फौरन जूम-इन करके दिखा दिया कि उफ, ये धारियाँ नहीं हैं बल्कि खुद नरेंद्र दामोदरदास मोदी का नाम लिखा है अनगिनत बार। 

मोदी की चूक यह थी कि खुद को गरीब का बेटा और चाय वाला बता-बता कर उन्होंने जो छवि अर्जित की थी, उसे इस सूट ने तार-तार कर दिया। मौके की ताक में बैठे विरोधियों ने इसे जम कर भुनाया और उन्हें इसमें सफलता भी मिली। जनता में दो संदेश चले गये। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद नरेंद्र मोदी आत्ममुग्ध हो गये हैं। उन्हें अपने नाम से इतना मोह हो गया है कि वे हजारों बार अपना नाम लिखा हुआ सूट पहनने लगे हैं। और वह सूट भी कैसा? नौलखा! 

हालाँकि इस सूट की मूल कीमत विवादित रही। अब भी स्पष्ट नहीं है। अपुष्ट चर्चाओं में इसकी कीमत कुछ हजार रुपये से लेकर तीन लाख रुपये तक बतायी जा रही है। देश के जिस बड़े अखबार ने इस सूट की कीमत करीब 10 लाख रुपये बतायी थी, उसने बाद में धीरे से अपनी खबर बदल ली। अपनी वेबसाइट पर दी हुई खबर में उसने चुपके से बस इतना बदल दिया कि एक डिजाइनर के हवाले से जो जानकारी दी गयी थी, वह गलत थी। कहा गया कि मूल खबर में इस सूट के डिजाइनर का जो नाम बताया गया था, वह ठीक नहीं था। यह भी कहा गया कि खबर में सूट की जो संभावित कीमत बतायी गयी थी, वह किसी अन्य डिजाइनर ने अनाम रहने की शर्त पर बतायी थी। अपनी वेबसाइट पर खबर को संशोधित करते हुए अखबार ने गलतियों के लिए खेद जता दिया।

मगर जब तक खेद जताने का यह काम हुआ, तब तक मोदी की छवि को नुकसान पहुँच चुका था। उसी समय दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार भी जोरों पर था। यह मुद्दा चुनाव प्रचार में भी उछला और राजनीतिक पंडित अब कहते हैं कि ‘नौलखा’ सूट के इस किस्से ने भी भाजपा की संभावनाओं को नुकसान पहुँचाया। यह सवाल पूछा जा सकता है कि किसी को इतना भारी नुकसान पहुँचाने की भरपाई क्या बाद में धीरे से खेद जता कर हो जाती है?

लेकिन विरोधियों ने तो वही किया, जो इतना शानदार मौका मिलने पर उन्हें करना था! आप लॉलीपॉप गेंद डालें और चाहें कि सामने वाला बल्लेबाज उस पर छक्का न मारे, यह तो कोई बात नहीं हुई! 

अव्वल तो जनता की भावनाओं को समझने और उन्हें अपने मन-मुताबिक मोड़ देने में माहिर नरेंद्र मोदी को चुनावी मौसम में यह ‘भूल’ करनी ही नहीं चाहिए थी। कीमत चाहे नौलखा हो या नहीं हो, पर अपने नाम का यूँ प्रदर्शन करना जनता को रास नहीं आयेगा, यह बात मोदी जैसा व्यक्ति कैसे नहीं समझ पाया? और एक बार अगर पहन भी लिया, तो उसके बाद विरोधियों के हमले शुरू होने पर न तो उनका सरकारी तंत्र ठीक से उत्तर देता नजर आया, न ही पार्टी अपना पक्ष ठीक से रख पायी। 

जब राहुल गांधी ने दिल्ली की एक चुनावी रैली में कहा कि मोदी ने 10 लाख रुपये का सूट पहना तो अरुण जेटली ने जवाब में बस इतना कहा कि यह कोई मुद्दा नहीं है और ऐसी बातों से देश की राजनीति को एक नये निचले स्तर पर ला दिया गया है। जो बात फेसबुक और ट्विटर जैसे सामाजिक माध्यमों पर इतनी तेजी से फैल रही हो, उसे कोई मुद्दा नहीं मानना और तथ्यात्मक जवाब देने की जरूरत नहीं समझना रणनीतिक भूल थी। इसमें अहंकार भी झलकता है। 

आखिर सरकार को, प्रधानमंत्री कार्यालय को या भाजपा को एक औपचारिक बयान जारी करके यह स्पष्ट करने में क्या परेशानी थी कि सूट किसने उपहार में दिया, डिजाइनर कौन था, किसने सिला और लागत कितनी थी? सामान्य रूप से यह कोई नहीं पूछने जाता कि प्रधानमंत्री को कितने उपहार मिले और किन-किन लोगों ने दिये। लेकिन जब विरोधियों ने इसे मुद्दा बना कर चुनावी संग्राम में उछाल दिया था और जनता के बीच वह बात पैठ जमा रही थी, तो ऐसे समय में इस सवाल से कन्नी काटने पर नुकसान तो होना ही था। 

अब दिलचस्प यह है कि ‘नौलखा’ सूट ‘करोड़ी’ सूट बन गया है। गुजरात के सूरत में इसकी नीलामी चल रही है और बोली लगभग सवा करोड़ रुपये पर पहुँच चुकी है। इस सूट को लेकर जितना बवाल मचा, उसके बाद इस सूट को नीलामी में ऐसी कीमत मिलना अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। 

इस नीलामी के बाद कुछ प्रगतिशील किस्म के नामी पत्रकार कहने लगे हैं कि ऐसा करके प्रधानमंत्री इस सूट से लगे दाग से मुक्त होना चाहते हैं। ऐसे एक पत्रकार ने अपने ब्लॉग में लिखा कि “सबक सीखने में तत्परता के मामले में प्रधानमंत्री की दाद देनी होगी। उन्होंने इस सूट से छुटकारा पाने में हफ्ता भर नहीं लगाया।” 

लेकिन यहीं पर साफ दिख जाता है कि हमारे नामी पत्रकारों में अब होमवर्क की कमी झलकने लगी है। साथ ही ऊपर लिखी यह बात फिर से साबित होती है कि इस प्रकरण में न तो सरकारी प्रचार मशीनरी अपनी बात लोगों तक पहुँचा सकी, न ही भाजपा। सुधी पत्रकारों को यह मालूम होना चाहिए था कि मोदी उन्हें मिले उपहारों को पहले भी नीलाम करा कर उससे मिली रकम किसी अच्छे उद्देश्य के लिए दान करते रहे हैं। 

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें जो उपहार मिले थे, उन्होंने उन सारे सामानों की भी नीलामी करा दी थी और इससे हासिल करीब 78 करोड़ रुपये की राशि उन्होंने राज्य में कन्या शिक्षा की परियोजना के लिए दे दी थी। इस समय भी उन्होंने ‘दाग से छुटकारा’ पाने के लिए केवल यह सूट नीलाम नहीं कराया है, बल्कि उन्हें उपहार में मिले सैंकड़ों सामानों की लंबी सूची है। प्रधानमंत्री को मिले 455 उपहारों की नीलामी हो रही है। इन सारे सामानों की नीलामी से मिली राशि गंगा के सफाई अभियान के लिए दे दी जाने वाली है। यही नहीं, साथ में गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को मिले 361 उपहार भी नीलामी की इस प्रक्रिया में रखे गये हैं।

अगर भाजपा ने नौलखा सूट विवाद को अहंकारी ढंग से नकारने के बदले तथ्यात्मक ढंग से अपनी बातों को जनता के सामने रखा होता, तो वह लोगों में एक नकारात्मक धारणा बनने से रोक सकती थी। मगर शायद सत्ता के ऊँचे आसन ने उसे अब पहले जैसा चौकस नहीं रहने दिया है। तभी तो वह लोगों के सामने यह तुलना भी ढंग से नहीं रख पा रही कि जहाँ नरेंद्र मोदी का इतिहास उपहारों को नीलाम करके उसकी राशि दान कर देने का है, वहीं कांग्रेस के निवर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह उन्हें अपने कार्यकाल में मिले 101 उपहार पद छोड़ने पर अपने साथ ले गये। इन उपहारों में बोस के स्पीकर से लेकर सोने के पानी चढ़ी घड़ी और कालीन जैसी चीजें शामिल हैं। डॉ. सिंह ने ऐसा करके कोई नियम नहीं तोड़ा। ताज्जुब बस इतना है कि इस तुलना के जरिये अपने राजनीतिक नुकसान की भरपाई करने का मौका भाजपा ने कैसे छोड़ा!

लेकिन खबरों की रिपोर्टिंग से कहीं ज्यादा टिप्पणीकार की भूमिका में चले गये वरिष्ठ पत्रकारों को ये सब बातें क्यों नहीं मालूम होतीं? या फिर वे जानते-बूझते अपनी टिप्पणियों और खबरों को खास रंगत देने के लिए कुछ बातों पर ज्यादा जोर डालते हैं और कुछ बातों को दबा ले जाते हैं? रही बात सरकार और भाजपा के प्रचार-तंत्र की, तो उन्हें अपने आलस या बेपरवाही का खामियाजा पहले ही भुगतना पड़ा है। आगे भी पता नहीं वे कितना सबक लेंगे! अभी वे थोड़ा-सा सतर्क हुए हैं। उन्होंने नौलखा सूट पर जवाब देना और हमले करना भी शुरू किया है, पर सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया!

(देश मंथन, 19 फरवरी 2015)

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