संदीप त्रिपाठी :
नवजोत सिंह सिद्धू अब क्या करेंगे? पूर्व क्रिकेटर, कमेंटेटर, कॉमेडी शो जज और भाजपा नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू, जो पंजाब में भाजपा विधायक और संसदीय सचिव थीं, उन्होंने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। हालाँकि अभी इन दोनों ने भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है लेकिन इनके आम आदमी पार्टी में जाने के कयास खूब लग रहे हैं। सवाल यह है कि अब सिद्धू क्या करेंगे?
अकाली दल से गठबंधन के विरोधी
सिद्धू लंबे समय से पंजाब में अकाली दल और भाजपा गठबंधन के विरोधी के रूप में जाने जाते रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कहा जाता है कि अकाली दल की नाराजगी पर सिद्धू का टिकट कटा और उनकी जगह अरुण जेटली को अमृतसर से टिकट दिया गया। यह अकाली दल के मुकाबले भाजपा के भीतर सिद्धू की हार थी। सिद्धू दंपति नाराज हुए लेकिन उसने कोई बागी कदम नहीं उठाया। श्रीमती सिद्धू हालाँकि ने एक-दो बार अपनी नाराजगी सार्वजनिक की लेकिन सिद्धू खामोश रहे।
सिद्धू अकाली दल से नाराज हैं तो इसकी जायज वजह है। पंजाब में नशे का मुद्दा बहुत जोरों पर है। अभी आम आदमी पार्टी के जुड़े एक निर्देशक ने इसी मुद्दे पर उड़ता पंजाब नामक फिल्म बनायी जो बहुत विवादित हुई। सिद्धू अंदरखाने अकाली दल के कुछ प्रमुख नेताओं को नशे के कारोबार के लिए निशाने पर रखते हैं। पंजाब कांग्रेस अरसे से इस मुद्दे पर अकाली दल के खिलाफ आंदोलनरत रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह से पहले जब प्रताप सिंह बाजवा पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो लगभग हर दिन वहाँ के अखबारों में नशे को ले कर प्रताप सिंह बाजवा के बयान सुर्खियाँ बनते रहे। यह बात वर्ष 2013 की है, यानी लोकसभा चुनाव से पहले की।
सिद्धू मानते थे कि नशे का मुद्दा बहुत बड़ा है और अकाली दल के कुछ प्रमुख नेताओं के नाम इस मामले में आने से भाजपा के लिए अकाली दल से गठबंधन तोड़ना श्रेयस्कर होगा। लोकसभा चुनाव में इसका असर भी देखा गया जब पूरे देश के चुनाव परिणामों के मुकाबले पंजाब के चुनाव परिणाम भाजपा की दृष्टि से कमजोर रहे। लोकसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद सिद्धू चुप रहे। कुछ महीनों पहले भाजपा आलाकमान ने सिद्धू से मुलाकात की, कुछ महत्वपूर्ण संकेत मिले और तीन महीने पहले सिद्धू को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। यह माना जा रहा था कि पंजाब चुनाव में भाजपा की कमान सिद्धू के हाथों हो सकती है। लेकिन अचानक सिद्धू का इस्तीफा आ गया।
तो क्या पार्टी में बने रहेंगे
तो सिद्धू का अगला कदम क्या होगा? यद्यपि सिद्धू दंपति ने भाजपा से इस्तीफा नहीं दिया है लेकिन आप नेताओं ने जोर-शोर से उनका स्वागत करना शुरू कर दिया है। इस बार भाजपा भी सिद्धू के इस कदम से नाराज है और उन्हें मनाने के मूड में नहीं है। कुछ भाजपा नेताओं ने तो यहाँ तक कह दिया है कि राज्यसभा से इस्तीफा दिया है तो सिद्धू पार्टी से भी इस्तीफा दें। श्रीमती सिद्धू ने स्पष्ट किया है कि वे लोग फिलहाल भाजपा में बने हुए हैं और वे पंजाब के लिए काम करते रहेंगे। उन्होंने संकेत दिया कि उनके लिए आप एक विकल्प हो सकती है।
सिद्धू बोलने के मामले में फायरब्रांड माने जाते हैं और भाजपा के विभिन् मुद्दों पर उनकी तकरीरें जबर्दस्त होती रही हैं। अकाली दल के मामले पर भाजपा से सिद्धू की नाराजगी दो साल रही लेकिन उन्होंने भाजपा के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोला। इस दौरान भी वे विभिन्न मुद्दों पर भाजपा की सैद्धांतिक लाइन पर बने रहे। तो क्या माना जाये कि सिद्धू ने राज्यसभा से इस्तीफा भले दिया हो लेकिन वे पार्टी में बने रहेंगे। यह कहना मुश्किल है क्योंकि इस बार भाजपा के कुछ नेता उन पर हमलावर हो उठे हैं। सिद्धू की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया आयेगी। इस क्रिया-प्रतिक्रिया को यदि भाजपा नेतृत्व रोक नहीं सका तो सिद्धू का जाना तय है।
आम आदमी पार्टी में जाने का विकल्प
तब सिद्धू के पास आम आदमी पार्टी में शामिल होने का विकल्प होगा जैसा कि संकेत उनकी पत्नी दे चुकी हैं। लेकिन यह सिद्धू के लिए मुश्किल बात होगी। दरअसल सैद्धांतिक तौर पर वे भाजपा के साथ जितने अडिग हो कर अब तक बयान देते आये, आप में जाने के बाद उन्हें उन्हीं मुद्दों पर अपने सिद्धांतों से पलटी मारनी होगी क्योंकि आप की राजनीति अब मुद्दों की न रह कर मोदी के विरोध की हो गयी है। आप में जाने की स्थिति में भाजपा उन्हें तमाम मुद्दों पर अच्छी तरह घेरेगी। आप में जाने पर सिद्धू एक स्वार्थी नेता के रूप में पेश किये जायेंगे क्योंकि लोकसभा का टिकट कटने के बाद उत्पन्न नाराजगी राज्यसभा के लिए मनोनीत किये जाने पर खत्म मानी जा रही थी। आप में जाना सिद्धू की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के रूप में पेश की जायेगी क्योंकि राज्यसभा के लिए मनोनीत किये जाते समय यह बात भी खबरों में आयी थी कि उन्हें पार्टी की ओर से पंजाब चुनाव की कमान मिल सकती है। और सिद्धू ने राज्यसभा सांसदी स्वीकार कर ली। लेकिन शायद अब उन्हें संकेत मिल रहा हो कि कमान शायद न मिले, इसलिए वे बागी हो गये, यानी स्पष्ट होगा कि सिद्धू ने निजी स्वार्थ के लिए राजनीति की न कि पंजाब की जनता के लिए। सांसदी स्वीकार करना और फिर तीन माह में इस्तीफा देने को भाजपा पीछ में छुरा घोंपने की तरह पेश करेगी और सिद्धू की साख को मटियामेट करने की कोशिश करेगी। तब सिद्धू को परेशानी होगी। इसलिए फिलहाल तो सिद्धू की डगर कठिन ही है।
(देश मंथन 21 जुलाई 2016)