क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
नमो अब अमेरिका यात्रा पर हैं. अब वहाँ नमो-नमो हो रहा है! नमो वाक़ई बड़े कुशल खिलाड़ी हैं. ख़बरें बनाना जानते हैं. ख़बरों में रहना जानते हैं. मौक़ा कोई हो, बात कोई हो, यह ‘नमो-ट्रिक’ देश पहली बार देख रहा है कि राग नमो-नमो कैसे हमेशा चलता रहे!
आलोचना करनेवाले मुँह बिसूरते रहें, विपक्ष वाले टुकुर-टुकुर तकते रहें, हाथ मलते रहें, लेकिन हर बार कुछ ऐसा हो जाय कि राग नमो की तान छिड़ जाय, यह राजनीति का नया ककहरा है. नमो जो करें, जो वह न करें, जो उन्होंने किया हो, जो उन्होंने न किया हो, हर चीज़ का श्रेय वह मज़े से लूट लेते हैं! मंगलयान से लेकर ‘मेक इन इंडिया’ तक, चीनी राष्ट्रपति की कसमसी हिंडोलों वाली भारत-यात्रा से लेकर मैडीसन स्क्वायर के मेगा शो तक नमो हर चीज़ को बड़े मज़े से ‘इवेंट’ और उत्सव बना देते हैं. वह ‘इवेंट पॉलिटिक्स’ के नये बाक्स आफ़िस फ़ार्मूले के साथ चतुर प्रतीकों के मसाले को बड़ी सफ़ाई से इस्तेमाल कर रहे हैं और देखने वाले बस देखते जा रहे हैं.
चुनाव-प्रचार जारी है!
दरअसल, मोदी को देख कर लगता ही नहीं कि उनका चुनाव-प्रचार कभी ख़त्म भी हुआ था या कभी ख़त्म भी होगा! वह तो अभी तक जारी है. नये-नये तरीक़ों से, नये-नये मौक़ों पर, नयी-नयी प्रतीकात्मकता के साथ! पिछले शिक्षक दिवस को ही लीजिए. इसके पहले शिक्षक दिवस को कब raagdesh-modi-and-pr-politicsऐसे मनाया गया. वही रस्मी सरकारी समारोह हुए, कुछ शिक्षकों का सम्मान हुआ, कुछ भाषण-वाषण और बस मन गया शिक्षक दिवस! अब लोग भले सवाल उठायें कि शिक्षक दिवस पर शिक्षकों के बजाय बच्चों से बात करने का क्या तुक, लेकिन सच यह है कि नमो ने शिक्षक दिवस को एक ऐसा ‘इवेंट’ बना दिया कि कई दिनों तक देश के मीडिया में उसकी कवरेज होती रही! देश भर के बच्चे भी जुड़ गये! स्कूलों में पूरा ताममझाम हुआ, बच्चों ने भाषण सुना, सवाल पूछे, जवाब पाये, देश के प्रधानमंत्री से सीधा संवाद किया! अब इस पर कोई चाहे जो कहे, सच यह है कि मोदी ने बड़ी चतुराई से अपनी एक नयी ‘कांस्टिट्युेन्सी’ तो बना ही ली! ये बच्चे अगर नमो-नमो कर रहे हैं, तो हैरानी क्या? फिर ऐसा कर नमो ने देश के लोगों से सीधा संवाद रखने के नये रास्ते खोल लिये. वरना अब तक की परम्परा में तो प्रधानमंत्री या तो स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र से मुख़ातिब होता था या किसी बड़े गम्भीर मसले पर राष्ट्र के नाम सन्देश ले कर उपस्थित होता था. तो शिक्षक दिवस पर प्रधानमंत्री ने जो दरवाज़ा खोला, उसकी अगली कड़ी का भी एलान हो चुका है. नमो अब विजयदशमी पर रेडियो से देश से संवाद करेंगे!
‘इवेंट’ बनेगा रेडियो भाषण भी!
तो अब यह रेडियो पर भाषण भी एक ‘इवेंट’ बनेगा! बड़े शहर, छोटे शहर, गली-नुक्कड़ तक और एफ़एमवाले गानों के दीवानों से लेकर दूरदराज़ के गाँव-जुहार तक चर्चा होगी. लोग मोदी को सुनेंगे तो गुनेंगे भी! और इससे एक दिन पहले यानी 2 अक्तूबर को मोदी शुरू करेंगे स्वच्छ भारत अभियान. ख़ुद झाड़ू लगायेंगे. सड़कों पर मंत्रियों के झाड़ू लगाने की तसवीरें तो अभी से टीवी चैनलों पर दिखने लगी हैं. बेचारे ‘आप’ वालों की झाड़ू भी नमो ने नहीं छोड़ी! और पहली बार ऐसा होगा कि 2 अक्तूबर को सरकारी कर्मचारी काम पर आयेंगे. आख़िर उन्हें ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत जो करनी है!
और अभी अपनी अमेरिका यात्रा के ठीक पहले ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की शुरुआत! टाइमिंग देखिए! देश के सारे जाने-माने उद्योगपति हाज़िर हों और एफ़डीआइ का एक नया मुहावरा बाज़ार में उतार दिया जाये– फ़र्स्ट डेवलप इंडिया! और मंच पर शेर का प्रतीक चिह्न! कहा गया कि यह ‘शेर का क़दम’ है! मतलब? इसे हल्के में मत लीजिएगा! और यहाँ से आप जा रहे हों अमेरिका. वहाँ भारतीय मूल के तमाम सीइओ और उद्योगपतियों को लुभाने कि वह आयें और जो बनाना हो, भारत में बनायें. तो नारों, मुहावरों और प्रतीकों को सोच-समझ कर, उनकी अपील को अच्छी तरह ठोक-बजा कर और जाँच-परख कर मैदान में उतारना, यह मोदी बड़ी कुशलता से कर रहे हैं, इसमें सन्देह नहीं.
बनी रहे नमो-नमो की तान!
अमेरिका यात्रा से मोदी क्या ला पायेंगे, यह अभी देखना है. लोग ज़्यादा उम्मीद नहीं कर रहे हैं क्योंकि जानकारों का मानना है कि भारत के मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए अमेरिका और वहाँ की कम्पनियाँ फ़िलहाल अभी कुछ इन्तज़ार ही करना चाहेंगी. लेकिन मोदी अमेरिका में और दुनिया भर में बसे भारतीयों में अपना ‘इंडेक्स’ काफ़ी बढ़ा कर लौटेंगे, इसमें सन्देह नहीं. टीवी वालों ने अभी से ही मोदी को ‘सुपर पीएम’ कहना शुरू कर दिया, यह मोदी के ‘परसेप्शन गेम’ का करिश्मा है! अभी कुछ दिन पहले तक मोदी सरकार के काम पर सवाल उठ रहे थे, उपचुनावों में बीजेपी की हार को लेकर विपक्ष बड़ा ख़ुश था कि मोदी का असर घट रहा है, महाराष्ट्र में इसी आकलन को लेकर शिव सेना बीजेपी से अलग हो गयी, चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा खट्टी रही, लेकिन मोदी हैं कि कभी इस बहाने, तो कभी उस बहाने नमो-नमो की तान बनाये ही रखते हैं.
साफ़ है कि मोदी ने भारतीय राजनीति में एक नये ट्रेंड की शुरुआत की है. यह ‘ढिंढोरा पीट, डंका बजा’ राजनीति है. संवाद, प्रचार, नारे, मुहावरे और प्रतीकों से ‘शत्रुओं’ के नाश और निज छवि की अट्टालिकाओं के निर्माण की राजनीति! इसके पहले, लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी की प्रचार सेना ने बड़ी कुशलता से ऐसी व्यूह रचना की, जिसमें यूपीए के परखच्चे उड़ गये. उसने लोगों को विश्वास करा दिया कि पूरे दस सालों तक देश में भ्रष्टाचार के अलावा कोई काम ही नहीं हुआ! उसके मुक़ाबले यूपीए का पूरा प्रचार बिलकुल लुंजपुंज था, ऐसा जो ख़ुद कांग्रेसियों को भी ‘कन्विन्स’ न कर पाये कि सरकार ने दस सालों में वाक़ई कुछ किया भी है या नहीं!
आइडिया युद्ध, मुहावरा युद्ध, प्रतीक युद्ध!
और अब चुनाव के बाद, सरकार बन जाने के बाद विपक्ष के तम्बुओं में अभी हरकत लौटी नहीं है और उधर मोदी और उनकी सेना दुगुनी आक्रामकता से जुटी हुई है हर दिन मोदी को महामानव बनाने के लिए! और मोदी के सितारे इसलिए भी चमक रहे हैं कि उनके तमाम विरोधी अभी तक वही पुरानी लाठियाँ भाँज रहे हैं. सरकार की आलोचना करो, खिल्ली उड़ा दो, और बहुत हुआ ़तो धरना-प्रदर्शन कर लो! हुज़ूर आप इतना भी समझ नहीं पा रहे हैं कि ये सब हथियार तब तक काम नहीं करेंगे, जब तक जनता मोदी की मोहिनी से मुदित होती रहेगी! और फिर यह काम भी तो आप पूरे दिल से नहीं कर पाते! वरना ऐसा क्या है कि मोदी सरकार के ‘सौ दिनों के विफल कार्यकाल’ पर युवक काँग्रेस के लोग दिल्ली में इतनी भीड़ भी नहीं जुटा सकें कि वहाँ राहुल गाँधी आ कर बोल पायें!
ऊपर से तुर्रा यह कि कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह अब राहुल गाँधी को सलाह दे रहे हैं कि उन्हें अपने चाचा संजय गाँधी की आक्रामक शैली अपनानी चाहिए और धरने-प्रदर्शन कर, लाठी-डंडे खा कर, जेलें भर कर मोदी का राजनीतिक मुक़ाबला करना चाहिए. गिनती के आदमी तो आप जुटा नहीं पाते और कहाँ जेलें भरने की बात? और फिर किस बात को लेकर जेलें भरने निकलेंगे आप? काँग्रेस के लोगों को अब तक इस बात का एहसास ही नहीं हो सका कि मोदी किन नये हथियारों से राजनीति कर रहे हैं! इसलिए उन्होंने इनकी काट तलाशने की भी कोशिश कभी की नहीं!
मोदी आइडिया युद्ध, मुहावरा युद्ध, प्रतीक युद्ध, संवाद युद्ध कर रहे हैं, लगातार कर रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं. लेकिन इस मोर्चे पर उनके सारे विरोधी या तो बिलकुल कंगाल हैं, या बहुत भाग्यवादी! क्योंकि बहुत-से मोदी-विरोधियों का मानना है कि मोदी सिर्फ़ बातें करते हैं, काम उन्होंने कुछ किया नहीं है और एक दिन बातों की सारी पोल-पट्टी खुल जायेगी. यानी बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जायेगा! आज ऐसे भाग्यवादी आलस्य का ज़माना नहीं. ख़ास कर तब, जबकि सामने मोदी जैसा प्रचार-वीर हो! अब मोदी अमेरिका में भी नवरात्र के उपवास पर रहेंगे. कहा जा रहा है कि वह चालीस साल से यह उपवास करते आये हैं. अब चाहे नवरात्र में अमेरिका की यात्रा होना महज़ एक संयोग ही हो, लेकिन मोदी की ‘आध्यात्मिकता’ की यह कहानी आज घर-घर में कही और सुनी जा रही है. ये तमाम कहानियाँ चाहे सच्ची हों या झूठीं, ये अपना काम बख़ूबी कर रही हैं! क्या विपक्ष में किसी के पास कहीं ऐसी कहानियाँ हैं? (raagdesh.com)
(देश मंथन, 28 सितंबर 2014)