सलमान खुर्शीद क्या पाकिस्तान के एजेंट हैं?

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अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

सलमान खुर्शीद ने पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान जाकर भारत विरोधी बयान दिया था। कहा था कि “भारत ने पाकिस्तान के अमन के पैगाम का उचित जवाब नहीं दिया। मोदी अभी नये हैं और स्टैट्समैन कैसे बना जाता है, यह उन्हें सीखना है।“ यानी मोदी से अदावत की आड़ में सलमान खुर्शीद ने अपने वतन भारत को ही अमन का दुश्मन और गुनहगार बना डाला।

और जरा यह भी याद कर लीजिए कि भारत ने पाकिस्तान के अमन के पैगाम का क्या उचित जवाब नहीं दिया था। दरअसल शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के दौरान ऊफा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ ने एक समझौते पर हस्ताक्षर करके आतंकवाद से लड़ने की प्रतिबद्धता जताई थी। इसके बाद 23 अगस्त 2015 को दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मुलाकात तय की गयी।

लेकिन इस मुलाकात से ठीक पहले पाकिस्तान आतंकवाद पर बातचीत से मुकर गया और कश्मीर मामले को लेकर पैंतरेबाजी करने लगा, जिसमें हुर्रियत नेताओँ से मुलाकात की शर्त भी शामिल थी। भारत सरकार ने इसपर कहा कि चूँकि बातचीत आतंकवाद पर है और भारत एवं पाकिस्तान के बीच है, इसलिए इसमें हुर्रियत का कोई काम नहीं। इसके बाद पाकिस्तान ने बातचीत तोड़ दी थी।

साफ है कि आतंकवाद पर बातचीत से मुकरने वाला, भारत में लगातार आतंकवाद की सप्लाई करने वाला और बार-बार सीजफायर का उल्लंघन कर सीमा पर युद्ध जैसे हालात बनाये रखने वाला पाकिस्तान सलमान खुर्शीद को अमन का कबूतर नजर आता है, जबकि सीमा-पार आतंकवाद का शिकार और कश्मीर में हर रोज पाकिस्तानी घुसपैठ और हिंसा झेलने को विवश भारत उन्हें अमन का दुश्मन नजर आता है।

…और अब एक बार फिर उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से बलूचिस्तान का मुद्दा उठाए जाने की यह कहते हुए आलोचना की है कि इससे पीओके में भारत का केस कमजोर हो जाएगा। जैसे कि कांग्रेस पार्टी ने तो पिछले 70 साल में पीओके पर भारत का दावा बेहद मजबूत बना दिया था और अब पीएम मोदी के बयान से वह दावा अचानक बेहद कमजोर हो गया है।

दरअसल, सलमान खुर्शीद की यह हैसियत तो है नहीं कि वह पीओके पर भारत के दावे पर कोई नकारात्मक टिप्पणी करें, क्योंकि देश की संसद ने भी दो बार प्रस्ताव पारित करके समूचे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताया है और उनकी पार्टी कांग्रेस भी पीओके पर भारत के दावे को छोड़ने का सियासी जोखिम नहीं उठा सकती। इसलिए बलूचिस्तान की आड़ में उन्होंने यह कहने की कोशिश की है कि पीओके पर भारत का दावा कमजोर है।

सलमान खुर्शीद कुछ दिन भारत के विदेश मंत्री क्या रह लिए, शायद उन्हें ज्यादा अक्ल आ गयी होगी, या फिर विदेश नीति वे कुछ ज्यादा ही समझने लगे होंगे। लेकिन हम जानना चाहते हैं कि यह कैसी विदेश नीति होती है कि आप दूसरे मुल्कों में जा कर अपने मुल्क की बेइज्जती करें या फिर संवेदनशील मामलों में इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी करें। मुझे याद नही आता कि सलमान खुर्शीद ने कभी पाकिस्तान पर कोई तल्ख टिप्पणी की हो, इसके बावजूद कि वह लगातार हमारे देश में आतंकवादियों का सप्लायर बना हुआ है और हजारों बेगुनाहों के कत्लेआम का जिम्मेदार है।

क्या सलमान खुर्शीद बताएँगे कि बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाने से भारत का पीओके पर दावा कैसे कमजोर हो जाता है? हमने 70 साल तक बलूचिस्तान का मुद्दा नहीं उठाया, फिर पाकिस्तान क्यों रोज-ब-रोज कश्मीर में टाँग अड़ाता रहा? अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर क्यों बार-बार कश्मीर का मुद्दा उछालता रहा? कब उसने पीओके पर भारत के दावे पर नरमी दिखाई? क्यों उसने बार-बार युद्ध छेड़ा? क्यों उसने आतंकवादी भेजकर कश्मीरी पंडितों पर जुल्म कराए और उन्हें विस्थापित कराया? क्यों उसने हमारी संसद और लाल किले से लेकर मुंबई तक पर हमले कराए? क्यों उसने हाफिज सईद और मसूद अजहर से लेकर दाऊद इब्राहिम तक को अपना दामाद बना रखा है?

क्या सलमान खुर्शीद बताएँगे कि एक आतंकवादी देश को बेनकाब करना किस लिहाज से कमज़ोर कूटनीति होती है? क्या सलमान खुर्शीद बताएँगे कि मानवाधिकार हनन के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा खलनायक जब आतंकवादियों को शहीद बताए, तो हमें क्या करना चाहिए? क्या सलमान खुर्शीद बताएँगे कि टू नेशन थ्योरी पर पैदा हुआ मुल्क जब हमारे देश में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव के माहौल को बिगाड़ने की साज़िशें रचे, तो हम क्या एक बार फिर से देश का बंटवारा होने दें? क्या सलमान खुर्शीद बताएँगे कि पाकिस्तान के लगातार हमलों का जवाब क्या बचाव की मुद्रा में खड़े हो जाना है?

कांग्रेस पार्टी पर भी मेरा आरोप है कि अपीजमेंट पॉलिटिक्स के चलते वह कश्मीर मुद्दे पर दोहरा गेम खेल रही है। चूँकि सार्वजनिक रूप से वह कश्मीर मुद्दे पर देश के स्टैंड के खिलाफ नहीं जा सकती, इसलिए वह सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर जैसे संदिग्ध नेताओं की जुबान से पाकिस्तान को सहलाने का काम करती है। जेएनयू में तो स्वयं राहुल गाँधी ने छात्रों की आवाज के नाम पर बंदूक के सहारे भारत से कश्मीर छीनने की कसमें खाने वाले देशद्रोहियों का साथ दिया था। इतना ही नहीं, इशरत जहाँ और बाटला हाउस के आतंकवादियों से लेकर संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरू और मुंबई पर हमले के गुनहगार याकूब मेमन तक के लिए उसकी तरफ से आँसू बहाए गये हैं।

शायद कांग्रेस पार्टी को यह भ्रम हो कि पाकिस्तान और आतंकवादियों को सहलाने से भारत का मुसलमान उससे खुश रहेगा। शायद उसे लगता हो कि हमारे मुस्लिम भाइयों-बहनों के दिल में हिन्दुस्तान नहीं, पाकिस्तान बसा है, वरना ऐसी देश-विरोधी सियासत की जरूरत उसे नहीं पड़ती, न ही एक भी दिन वह सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं को पार्टी में बर्दाश्त करती, न विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बिठाती।

बहरहाल, मुझे सलमान खुर्शीद पर पाकिस्तानी एजेंट होने का शक हो रहा है। सरकार को उनकी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए और गंभीरता से उनकी जाँच करानी चाहिए।

(देश मंथन 19 अगस्त 2016)

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