कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
मोदी 2.1 पर तो खूब बहस हो चुकी। बहस अभी और भी होगी। सरकार का पहला साल कैसा बीता, मोदी सरकार अपनी कहेगी, विरोधी अपनी कहेंगे, समीक्षक-विश्लेषक अपनी कहेंगे, बाल की खाल निकलेगी। लेकिन क्या उससे काम की कोई बात निकलेगी? मोदी सरकार के पहले साल पर यानी मोदी 2.1 पर हमें जो कहना था, हम पहले ही कह चुके। अब आगे बढ़ते हैं।
यह डिजिटल जमाना है। हर ऐप्प आजकल महीनों में नहीं, अकसर दिनों में अपने आपको अपडेट करता है। तो 26 मई 2015 के बाद ‘ऐप्प मोदी’ 2.2 क्या अपने आपको अपडेट करेगा या वैसे ही चलेगा, जैसे अभी तक चल रहा है!
क्या उम्मीद करें मोदी 2.2 से?
इसलिए अब सवाल है कि मोदी 2.2 से हम क्या उम्मीद करें? मोदी को इतिहास ने एक दुर्लभ मौका दिया है। वह इसे बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी। राजनीतिक स्थिति उनके एकदम पक्ष में है। अच्छा बहुमत है, विपक्ष बहुत कमजोर है। राहुल गाँधी ने कुछ हाथ-पैर तो चलाने शुरू किये हैं, लेकिन अगर यूपीए-2 की तरह ख़ुद मोदी ही अपने आपको हराने के लिए काम न करने लगें, तो आम तौर पर 2019 में भी उनके सामने कोई चुनौती होगी, इसके आसार कम हैं। इसलिए मोदी का रास्ता तो काफी साफ है।
मोदी 2.0 में हमने उस मोदी को देखा, जो मुख्य मन्त्री की कुरसी छोड़ प्रधान मन्त्री के सिंहासन का दावेदार था। जिसने अपने चुनाव-प्रचार में ख्वाबों के खूबसूरत सिलसिले सजाये और दूर तक निगाहों में करिश्मों के गुल खिला दिये। और मोदी 2.1 की शुरुआत भी उतनी ही करिश्माई, उतनी ही धमाकेदार हुई जब अपने शपथ ग्रहण समारोह में नरेन्द्र मोदी ने सार्क प्रमुखों को मेहमान बना लिया। फिर लोगों ने मोदी के विदेशी दौरों की रफ्तार देखी, विदेश नीति की नयी धार देखी, मन की बात देखी, नयी स्टाइल देखी, कुछ नये आइडिया भी देखे, लेकिन सब कुछ के बावजूद मोदी 2.1 से लोगों की वह उम्मीदें नहीं पूरी हुईं, जो उन्होंने लगायी थीं। अब कहा जा रहा है कि लोगों ने कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा ली थीं। यह सच नहीं है। ये सारी उम्मीदें लोगों ने लगायी नहीं थीं, बल्कि मोदी ने खुद बोल-बोल कर जगायी थीं। आज ज्यादातर देशी-विदेशी समीक्षक इसी बात पर हैरान हैं कि घरेलू मोर्चे पर मोदी की रफ्तार अकसर कदमताल जैसी क्यों रही?
पाँच ‘टी’ का टैलेंट कहाँ है?
तो मोदी 2.1 के पहले साल से सीख कर मोदी 2.2 में क्या अपडेट होने चाहिए? पहली बात यही कि ‘ब्रांड इंडिया’ बनाने के मोदी के मशहूर पाँच ‘टी’ सूत्रों में से एक टैलेंट भी था। लेकिन मोदी के अपने मन्त्रिमंडल में ही कुछ गिने-चुने नामों को छोड़ कर इसकी भारी कमी दिखती है। टैलेंट की खोज तो मोदी को सबसे पहले यहीं करनी चाहिए। हालाँकि मनोहर परिक्कर औ सुरेश प्रभु को लाकर उन्होंने यह कमी पूरी करने की कोशिश तो की है, लेकिन जिस करिश्माई प्रदर्शन का वादा उन्होंने किया था, उसके लिए तो औसत से ऊपर का टैलेंट चाहिए, औसत से नीचे का नहीं! फिर मन्त्रियों को काम करने की आजादी हो, यह भी जरूरी है।
आर्थिक मोर्चे पर मोदी 2.2 को यह तय करना होगा कि उसे औद्योगिक विकास और लोक कल्याण में कैसे सन्तुलन साधना है? देश के आर्थिक इन्जन को कैसा ईँधन चाहिए, क्या दिशा देनी है, इस बारे में मोदी 2.2 को कोई नया आइडिया ढूँढ कर निकालना ही होगा। ठीक वैसे ही जैसे 1991 में नरसिंहराव सरकार में वित्त मन्त्री मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था का गियर बदला था।
नयी औद्योगिक संस्कृति चाहिए
सब जानते हैं कि औद्योगिक विकास के बिना आज विकास का कोई खाका बन नहीं सकता। औद्योगीकरण की रफ्तार तेज हो, उद्योग और कारपोरेट जगत को फलने-फूलने का अच्छा माहौल मिले, इससे आज किसे इनकार हो सकता है। लेकिन यह जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी यह भी है कि देश में एक नयी औद्योगिक संस्कृति गढ़ी जाये, जिसमें उद्योग भी विकसित हों और जनता के हितों का भी उतना ही खयाल रखा जाये। विकास के नाम पर सारी मलाई उद्योग खायें और जनता ठगी जाती रहे, यह कौन-से विकास का माडल है? इसीलिए भूमि अधिग्रहण क़ानून और रियल एस्टेट रेगुलेटर बिल पर सरकार की मिट्टी पलीद हुई। किसानों की कीमत पर कॉरपोरेट और आम मध्यम वर्ग की कीमत पर बिल्डरों के हितों की चिन्ता सरकार को होने लगे, तो दो ही बातें हो सकती हैं। या तो यह विकास को लेकर सरकार का हड़बोंगपना है या फिर उसकी नीयत में कोई खोट है!
इसी तरह शिक्षा और स्वास्थ्य भी दो बड़े महत्त्वपूर्ण लेकिन विकट क्षेत्र हैं। दोनों में सरकारी प्रयासों की बुरी गति है और निजीकरण के बाद दोनों को बेलगाम मुनाफाखोरी की दीमक बुरी तरह चाट गयी है। फीस महँगी और पढ़ाई बिलकुल कागजी! अगर पढ़ाई काम लायक नहीं हुई तो रोजगार न देश में मिलेगा और न विदेश में। यह समस्या भविष्य में बड़ी गम्भीर होने वाली है। और विडम्बना यह कि शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों में ही मोदी 2.1 ने बजट में भारी कटौती की है। और शिक्षा में सुधार के नाम पर क्या हो रहा है? आधुनिक वैज्ञानिक चिन्तन को आगे बढ़ाने के बजाय उसे संघ की प्रयोगशाला में बदला जा रहा है! इसीलिए दीनानाथ बतरा आजकल मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की तारीफ करते नहीं अघाते!
कृषि के लिए क्या योजना है
कृषि के लिए सरकार की क्या योजना है? फसल का मूल्य तय करने के बारे में चुनाव के पहले किसानों से जो वादा किया गया था, वह पूरा हो पायेगा या नहीं, हो सकता है या नहीं, इस पर बात साफ हो। देश की आधी से ज़्यादा आबादी अपने रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है। मोदी 2.2 में कृषि के लिए स्पष्ट योजना होनी चाहिए।
मोदी 2.2 का एक बड़ा एजेंडा यह भी होना चाहिए कि सरकार का कोई मन्त्री, पार्टी का कोई नेता और संघ परिवार के कुछ सनकी तत्व कुछ अनाप-शनाप न बोलें। पिछले साल ऐसे बोलों ने मोदी की छवि बड़ी खराब की। और इन पर वह लम्बे समय तक चुप रहे, उससे लोग और हैरान हुए। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि पार्टी इन बयानों से सहमत नहीं है। फिर भी ऐसे बयान आते रहते हैं! कौन यह मानेगा कि पार्टी और परिवार में अमित शाह और नरेन्द्र मोदी जैसे कद्दावर नेताओं की भी नहीं चलती? मोदी 2.2 ऐसा निरीह न दिखे, तो अच्छा है। या फिर मोदी 2.2 बेबाकी से स्पष्ट करे कि उसका एजेंडा क्या है विकास या हिन्दुत्व या फिर विकास के रैपर में हिन्दुत्व?
अपना ‘बग’ भी ‘फिक्स’ कीजिए!
और बोलने की बात आयी तो मोदी 2.2 को अपना ‘बग’ भी ‘फिक्स’ करना चाहिए। भूकम्प की जानकारी नेपाली प्रधान मन्त्री को देने जैसे ट्वीट ने पहले कमाई गयी साख बट्टे में मिला दी! कभी लोग भारत में पैदा होना अभिशाप समझते थे, ऐसे बयान भी लोगों को अच्छे नहीं लगते, यह भी मोदी को अब तक पता चल ही गया होगा! फिर एक प्रधान मन्त्री विदेश में जा कर विपक्ष की आलोचना करे, यह कतई शोभा नहीं देता। जो राजनीति करना हो यहीं कीजिए, विदेश में सिर्फ कूटनीति कीजिए, राजनीति नहीं!
मोदी 2.2 को समझना चाहिए कि नागरिक समूहों, सांविधानिक संस्थाओं, न्यायपालिका को वह जितनी स्वायत्तता देंगे, जितना खुला माहौल देंगे, उतना ही उनके लिए अच्छा है। ये लोकतन्त्र के अनिवार्य उपकरण हैं और यह सत्ता को फिसलने से रोकते हैं। ऐसे दुराग्रहों से न देश का फायदा होगा और न मोदी का कि किसी एनजीओ ने एक कॉरपोरेट घराने के किसी प्रोजेक्ट का जोरदार विरोध कर दिया या कोई और विदेशी संगठन गुजरात के दंगा पीड़ितों की आर्थिक मदद करता है, तो उस पर शिकंजा कस दो! यह सब बातें आज नहीं तो कल, लोगों को पता चल जाती हैं। ऐसी हरकतों से किसी सरकार की छवि नहीं बनती! ऐसे ही किसी डाक्यूमेंटरी पर रोक लगा देने जैसे बचकाने विवादों से सरकार का कोई भला नहीं होता।
आत्ममुग्धता का सिंड्रोम
और अन्त में हम उम्मीद करते हैं कि मोदी 2.2 आत्ममुग्धता के सिंड्रोम से भी मुक्त होगा। अब सारी दुनिया जानती है कि नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधान मन्त्री हैं, वह क्या कर रहे हैं, कैसे कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं और उसका क्या नतीजा हो रहा है, यह सारी दुनिया का मीडिया रात-दिन रिपोर्ट कर रहा है, सबको सब पता है। अगर आप कुछ अच्छा कर रहे हैं, तो वह दूसरों को ही बताने दीजिए। और वह बता ही रहे हैं, बताते ही रहेंगे क्योंकि सारी दुनिया की निगाहें आप पर लगी हैं यह देखने के लिए इतिहास ने आपको जो मौका दिया है, उसका आप क्या करते हैं?
(देश मंथन, 23 मई 2015)