ऐसे ही ‘टाइमपास’ होता रहे!

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क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

विजय माल्या कहाँ है? उनका ट्वीट कहता है कि वह जहाँ कहीं भी हैं, देश छोड़ कर भागे नहीं हैं। वह भगोड़े नहीं हैं, कानून का पालन करनेवाले सांसद हैं! और उनका एक और ट्वीट मीडिया के दिग्गजों के नाम हैं, जिसमें वह कहते हैं कि आप भूल न जायें कि मैंने आपके लिए कब, क्या-क्या किया, क्योंकि मेरे पास सबके दस्तावेजी सबूत हैं! माल्या जी मीडिया की पोल खोलें तो हो सकता है कि बड़ी चटपटी स्टोरी बने, लेकिन असली कहानी तो ‘टाइमपास’ की है, जो बरसों से चल रही है, चलती ही जा रही है। 

वह ‘अच्छे वक्त का राजा’ है। सो ‘अच्छे दिनों’ की बहती बयार में उड़नछू हो गया! अब वह वहाँ मजे से अपने ‘अच्छे दिन’ बितायेंगे। जैसे ललित मोदी बिता रहे हैं! सब पूछ रहे हैं, अरे ये कैसे हो गया? इतना माल गड़प कर माल्या जी कैसे उड़ गये? कैसे उड़ सकते हैं? यह भी कोई पूछने की बात है भला? उड़ना और उड़ाना तो माल्या जी का बड़ा पुराना शगल रहा है। उन्होंने जहाज भी उड़ाये और बैंकों के पैसे भी उड़ाये! जहाज उड़ते रहे, साथ-साथ बैंकों के पैसे भी उड़ते रहे! लोग देखते रहे। बैंक भी पैसों को उड़ते हुए देखते रहे। सरकार भी देखती रही। सब देखते रहे। और पैसे उड़ते रहे, पार्टियों में, शान-शौकत में, मौज में, मस्ती में। उनके कैलेंडर लोगों के होश उड़ाते रहे और वह नीलामी में गाँधी का चश्मा और टीपू सुल्तान की तलवार खरीद कर ‘देश की इज़्जत’ को धूल में उड़ने से बचाते रहे! तो इस बार वह बैंकों की नींद उड़ा कर ‘पूरी इज्जत से’ बाहर उड़ गये!

क्या पहली बार हुआ है ऐसा ‘उड़’ जाना?

और ऐसा ‘उड़’ जाना कोई पहली बार हुआ है? ओत्तावियो क्वात्रोची भी कभी ऐसे ही उड़नछू हो गया था। और भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को तो ‘उड़ जाने के लिए’ खैर हम बाकायदा एअरपोर्ट तक छोड़ कर आये थे। फिर दुबारा न कभी क्वात्रोची तक हमारे हाथ पहुँच पाये और न एंडरसन तक। अदालतें उन्हें भगोड़ा घोषित करती रहीं, अदालतों के टाइपराइटर खड़कते रहे, कानूनी कागजों के घोड़े दौड़ते रहे, सरकारों में लिखा-पढ़ी, चिट्ठी-पत्री चलती रही यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ। सबको मालूम था कि कुछ नहीं होना है, कुछ नहीं हो सकता है। ये सब बस ‘टाइमपास’ है। तो ‘टाइमपास’ होता रहा, दोनों अब स्वर्ग सिधार चुके हैं। न बोफोर्स का रहस्य खुला और न कभी खुलेगा, न भोपाल के गैसपीड़ितों को न्याय मिला और न कभी मिलेगा। किस्सा खत्म! तो अब माल्या को लेकर भी ‘टाइमपास’ करते रहिए!

छोटी मछली, बड़ी मछली!

कोई विजय माल्या अकेले हैं क्या जो ‘उड़नछू’ हो गये। मोटा-मोटा अनुमान है कि बैंकों का जो कर्ज डूबा हुआ या डूब सकनेवाला माना जा रहा है, वह देश की जीडीपी का करीब 6 से 7% है।(Click to Read) लाखों की करोड़ की रकम है यह और सैंकड़ों ऐसे महाधन्नासेठ कर्जदार हैं, जो पैसा लेकर गड़प कर गये। इनमें ऐसे लोगों की लम्बी सूची है, जिन्होंने जानबूझ कर कर्ज नहीं चुकाये क्योंकि वे आश्वस्त हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता, कुछ नहीं बिगड़ेगा। कर्ज किसी काम के लिए लिया, किसी कम्पनी के नाम पर लिया और पैसा कहीं और पहुँच गया। माल्या ख़ुद ही अदालतों में कहते घूम रहे थे कि वह तो ‘बहुत छोटी मछली’ हैं, ‘बड़ी-बड़ी मछलियों’ पर भी निशाना लगाइए। लेकिन सबको मालूम है कि वह निशाना कभी नहीं लगेगा। निशाना तो तभी लगेगा न, जब आप निशाना लगाना चाहें और जब आप कुछ देखना चाहें! आप देख कर मुँह फेर लें तो आपने कुछ देखा ही नहीं। बात खत्म!

ग्रीनपीस की प्रिया पिल्लई विदेश में भाषण न कर पाये, इसलिए उसे बड़ी मुस्तैदी से एअरपोर्ट पर रोक लिया जाता है। लेकिन माल्या जी सात-सात लहीम-शहीम बैगों के साथ चार्टर्ड जेट से ‘उड़’ जाते हैं। खबरें हैं कि इमीग्रेशन ब्यूरो ने सीबीआई को माल्या के देश छोड़ने की बाबत सूचित भी किया था, लेकिन सीबीआई ने यह कह कर उसे ‘अनसुना’ कर दिया कि माल्या की गिरफ्तारी का कोई वारंट नहीं है! तो एक व्यक्ति को आप महज इसलिए विदेश जाने से रोक देते हैं कि वह वहाँ जाकर भाषण न कर पाये और दूसरी तरफ देश का नौ हजार करोड़ रुपये गड़प कर जानेवाले दूसरे व्यक्ति को ‘आराम से उड़ जाने’ देने के लिए आप आँखें फेर लेते हैं! पूरी दुनिया में भद पिटा लेने के बावजूद प्रिया पिल्लई का भाषण तो खैर फिर भी आप नहीं रोक पाये क्योंकि वह वीडियो कान्फ्रेन्सिंग से हो गया, लेकिन माल्या जी के नाम जो कर्ज है, वह तो अब ‘टाइमपास’ के औंधे कुँए में पड़ ही गया, जहाँ से कुछ वापस नहीं लौटता!

अक्लमंद के लिए इशारा काफी!

यकीनन माल्या की यह बात बिलकुल सच है कि वह बहुत छोटी मछली हैं। और माल्या इतनी आसानी से निकल गये तो अरबों रुपये के कर्ज वाली ‘बड़ी मछलियों’ के साथ क्या होगा, अक्लमंद के लिए इशारा काफी!

एनजीटी पर क्यों तरेरी आँखें श्री श्री रविशंकर ने

और जब कुछ न होने का इत्मीनान हो तो फिर किसी को किस बात की परवाह? श्री श्री रविशंकर ने आखिर क्यों एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को आँखें दिखायी और कहा कि हमने कुछ भी गलत नहीं किया, नहीं देंगे पाँच करोड़ का जुर्माना, जेल जाना होगा, चले जायेंगे। आप सत्ता के नजदीक हों तो क्यों किसी की परवाह करेंगे, इसमें हैरानी क्या? खैर चलिए, जब अगले दिन एनजीटी ने फटकार लगायी, तो मान गये कि चार हफ्ते में जुर्माना दे देंगे। एनजीटी ने पहले अपने फैसले में साफ कहा था कि जो भी यमुना तट पर हो रहा है, गलत हो रहा है और सारे सरकारी विभाग इस मामले में अपनी कानूनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे हैं। बहरहाल, अब कानूनी पेंचों में ‘टाइमपास’ कर कानून मान लेने की खानापूरी कर दी जायेगी। बात खत्म! 

(Indian Express की ख़बर के मुताबि NGT ने शुक्रवार 11 मार्च को यह स्पष्ट किया कि पाँच करोड़ की इस रक़म को ‘पर्यावरण मुआवजा’ समझा जाय, न कि ‘नियमों के उल्लंघन का जुर्माना।’ दो दिन पहले यानी बुधवार को इसी एनजीटी ने कहा था कि इसे ‘अन्तरिम जुर्माना’ कहा था और कहा था कि इसे नहीं चुकाया गया तो कानून अपना काम करेगा। तो शब्दों के बदल जाने का अर्थ क्या है, आप आसानी से समझ सकते हैं!) 

कुछ नहीं देखने की कला!

ऐसे हर मामले में सरकारी विभाग इसी तरह मुँह फेर कर कुछ नहीं देखने की कला में पारंगत हो चुके हैं। जो सरकार देखना चाहे, वह देखती है, जो न देखना चाहे, वह नहीं देखती। अब जेएनयू का ही मामला लीजिए। बिना ठोस सबूतों के कन्हैया के खिलाफ देशद्रोह का मामला ठोंक देनेवाली दिल्ली पुलिस ने उन लड़कों को पकड़ने में आज तक कोई भी रुचि क्यों नहीं दिखायी, जिन्होंने सारे देश-विरोधी नारे लगाये थे? जाहिर है कि इसके राजनीतिक कारण हैं, जो सबको पता हैं।

‘टाइमपास’: विजय माल्या से इशरत जहाँ तक

यही मामला इशरत जहाँ का है। कहा जा रहा है कि अब फ़ाइल से वह कागज गायब हो गये हैं, जिन पर पूर्व गृह सचिव जी.एस. पिल्लई और पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम की टिप्पणियाँ दर्ज थीं। आप उन पर आरोप लगाते रहिए, वह आप पर आरोप लगाते रहें, आपकी सरकार हो तो जाँच उधर जाये, उनकी सरकार हो तो जाँच इधर जाये और लोग बैठे सिर धुनते रहें कि आखिर सच क्या था। और बस ऐसे ही ‘टाइमपास’ होता रहे!

(देश मंथन, 16 मार्च 2016)

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