Thursday, September 19, 2024
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मनमोह लेती डलहौजी की आबोहवा

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

डलहौजी की आबोहवा ऐसी है जो लोगों को पसंद आती है। हमें सुभाष चौक पर एक अवकाशप्राप्त दंपति मिले जो एक महीने से आ कर डलहौजी में पड़े हैं। कमरा किराये पर ले लिया है। यहाँ से जाना नहीं चाहते। सुभाष प्रतिमा के पास दोपहर में मीठी धूप के मजे ले रहे हैं। 

गेटवे ऑफ चंबा – बनीखेत

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

बनीखेत में ठहरने के कई कारण थे। पहला की बनीखेत डलहौजी से छह किलोमीटर पहले है, जो लोग पहाड़ों की चकरघिन्नी वाले रास्ते पर लंबा सफर नहीं करना चाहते उन्हें जल्दी ब्रेक मिल जाता है। दूसरा अगर डलहौजी घूमना है बनीखेत में रूक कर भी घूमा जा सकता है। बनीखेत से डलहौजी महज 6 किलोमीटर है। 10 मिनट में किसी भी बस से पहुँच जाइए। ठहरने के लिए बनीखेत में भी कई होटल और गेस्ट हाउस हैं। बनीखेत में होटल डलहौजी की तुलना में किफायती है। 

परमपावन धाम श्री सिद्धबली हनुमान मंदिर – कोटद्वार

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

कोटद्वार शहर के बाहर पहाड़ की तलहटी में खोह नदी के किनारे स्थित है सिद्धबली हनुमान मंदिर। यह स्थान तीन तरफ से वनों से ढका हुआ बड़ा रमणीक है। सड़क से मंदिर तक पहुँचने के लिए खोह नदी पर पुल बना हुआ है। गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार कस्बे से कोटद्वार-पौड़ी राजमार्ग पर लगभग तीन किलोमीटर आगे लगभग 40 मीटर ऊँचे टीले पर स्थित है गढ़वाल प्रसिद्ध देवस्थल सिद्धबली मन्दिर। यह हनुमान जी का एक पौराणिक मन्दिर है। इस मंदिर में आने वाले साधकों को अप्रतिम शांति की अनुभूति होती है।

दिल्ली से लैंसडाउन – एक शांत हिल स्टेशन

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

दिल्ली से 300 किलोमीटर से कम दूरी पर किसी हिल स्टेशन पर जाना चाह रहे हों तो उसमें लैंसडाउन विकल्प हो सकता है। हालाँकि लैंसडाउन शिमला या मसूरी की तरह रौनक वाली जगह तो नहीं है पर यह एक शांत हिल स्टेशन है काफी कुछ डलहौजी की तरह। साम्यता यह है कि यहाँ भी कैंटोनमेट बोर्ड है।

इंडिया गेट- अमर जवानों की याद

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

दिल्ली का इंडिया गेट। इसे दिल्ली का दिल कहा जाए तो गलत नहीं होगा। पूरी दिल्ली के मानचित्र में दिल्ली के बीचों बीच स्थित है। न सिर्फ बाहर से आने वाले लोगों के बीच बल्कि दिल्ली के स्थानीय लोगों के भी घूमने की सबसे प्रिय जगह है। हालाँकि इंडिया गेट नाम के मुताबिक यह कोई भारत का प्रवेश द्वार नहीं है। बल्कि यह अमर जवानों की यादगारी है। यह 43 मीटर ऊंचा विशाल दरवाजा है। आजादी से पहले इसे किंग्सवे कहा जाता था। दिल्ली के वास्तुकार सर एडवर्ड लुटियन ने ही इसका भी डिजाइन तैयार किया था।

पुराना किला – कई अफसाने हैं दफन

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार  :

दिल्ली को जानना है तो पुराना किला गये बिना बात अधूरी रह जानी है। पुराना किला के साथ कई पुरानी यादें जुड़ी हैं। लोग तो कहते हैं कि यह पांडव कालीन है। पर किले के साथ मुगलकाल की कई स्मृतियां जुड़ी हैं।

ये तीस जनवरी मार्ग है….

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

ये तीस जनवरी मार्ग है। एक सड़क का नाम है। पर ऐसी सड़क जो एक एतिहासिक घटना की गवाह बन गयी। एक महान आत्मा की यात्रा जो गुजरात के शहर पोरबंदर से शुरू हुई थी यहाँ आकर खत्म होती है। वह 30 जनवरी 1948 का दिन था जब 79 साल की एक महान आत्मा हे राम के शब्द के साथ इस दुनिया से कूच कर गयी। हालाँकि बापू तो आत्मशक्ति से 125 साल जीना चाहते थे। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था।

राजघाट में सो रहा है दुनिया का सबसे बड़ा फकीर

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

नाम राजघाट है पर यहाँ सो रहा है सदी का सबसे बड़ा फकीर। एक ऐसा फकीर जिसे नमन करने दुनिया भर के लोग आते हैं। शायद पूरी दुनिया में बापू ऐसे पहले आजादी की लड़ाई के अगुवा रहे होंगे जिन्होंने आजादी मिल जाने के बाद कोई सत्ता नहीं ग्रहण की। सरकार में कोई पद नहीं लिया। महलों में रहने नहीं गए।

नंदूजी का मूंगदाल का गोलगप्पा

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

गोलगप्पा, पानी पुरी, फोकचा, घुपचुप। अगल-अलग देश के हिस्सों में अलग नाम से जाना जाता है। वैसे तो गोलगप्पा बचपन से ही आप फुटपाथ पर गोलगप्पे वाले स्टाल पर खाते आये होंगे।

दूर दूर तक हैं बालाजी की इमरती के दीवाने

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

ये इमरती कुछ खास है। 20 साल से तो मैं इसका स्वाद ले रहा हूँ। पूर्वी  दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में विजय चौक से ठीक पहले है बालाजी इमरती वाले की दुकान। बालाजी की खासियत है मिठाइयाँ थोड़ी महँगी हों पर गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं। अगर आप इमरती खाने के शौकीन हैं तो एक बार बाला जी की इमरती खा लेंगे तो स्वाद के मुरीद जरूर हो जाएंगे।

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