Saturday, March 15, 2025
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Tag: संजय सिन्हा

मेहनत से शहद बनाया तो खुद खायें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

ओह! आपको बताना ही भूल गया कि मैं अपने नये मकान में शिफ्ट कर गया हूँ। दो महीने की लंबी कवायद के बाद आखिर मैं पिछले हफ्ते अपने नये मकान में चला आया और यहाँ आते ही दो पार्टियाँ भी कर चुका हूँ।

मन के विश्वास को जिन्दा करें, आपका हर काम बनेगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक महिला ने मुझे बिलखते हुए फोन किया कि उसकी जिन्दगी में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा, क्या मैं उसे अपने चैनल पर भविष्य बताने वाले पंडित का नंबर दे सकता हूँ?

अपने पँखों पर भरोसा रखिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक नौजवान हाथ में शीशे की गिलास लेकर लोगों से पूछ रहा था कि क्या मुझे कोई बता सकता है कि इसे किसने बनाया? लोग उसके सवाल को नहीं समझ पा रहे थे कि वो ऐसा क्यों पूछ रहा है। पर किसी ने कहा कि इसे आदमी ने बनाया है। नौजवान हँसा और फिर उसने पूछा कि आपने जो कपड़े पहन रखे हैं, क्या आप जानते हैं उन्हें किसने बनाया है? 

यमराज के चंपू से लोहा लें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कल मैंने नोएडा के एक मॉल में खाना खाते हुए उत्तराखंड के एक आईएएस अधिकारी की हृदयघात से मौत की कहानी लिखी थी। मैंने आपसे अनुरोध किया था कि आप मेरी इस कहानी को जितने लोगों तक पहुँचा सकें, पहुँचा दें।

सावित्री आसन है हृदयघात से बचाव

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी आज की पोस्ट को बहुत ध्यान से पढ़िएगा। आप इसे और लोगों से साझा भी कीजिएगा। आज की पोस्ट सिर्फ पोस्ट नहीं, बल्कि एक ऐसी जानकारी है जिसे हम सबको जानना और समझना चाहिए।

पैसा अधिक आने से नयी पीढ़ी पर असर

 संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कभी-कभी ऐसा कुछ होता है कि आप सामने वाले से सिर्फ इतना ही कह पाते हैं, ‘वेरी गुड’। बहुत अच्छा किया आपने।
मेरी पहली दो लाइनों को पढ़ कर आप मन ही मन सोचेंगे कि संजय सिन्हा सुबह-सुबह पहली क्यों बुझा रहे हो, सीधे-सीधे मुद्दे पर क्यों नहीं आते।
सही बात है, सीधी बात का कोई मुकाबला नहीं होता।

जिनके पास भावनाएँ हैं, वही जिन्दगी के मर्म को समझता हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरा एक दोस्त बहुत व्यस्त रहता है। सारा दिन काम में डूबा रहता है। उसके फोन की घंटियाँ थमने का नाम नहीं लेतीं। सारा दिन फोन कान पर ऐसे चिपका रहता है मानो फोन का अविष्कार नहीं हुआ होता तो वो जिन्दगी में कुछ कर ही नहीं पाता।

भीतर से ही उड़ान संभव

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बहुत दिनों बाद उड़ने वाले गुब्बारे की याद आयी। याद क्या आयी, समझ लीजिए कि मैं सावन में लगने वाले मेले में पहुँच गया। मुझे याद आने लगा कि माँ मुझे एक रुपया देती थी, सोमवारी मेले में जाने के लिए। मैं मिट्टी के खिलौने खरीदता, आलू टिक्की खाता, और आखिर में दस पैसे का गुब्बारा खरीदता। गुब्बारे को अपनी साइकिल की हैंडिल पर बांधता और दनदनाता हुआ घर पहुँचता।

रिश्तों को दस्तक दीजिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कोई 60 साल पुरानी बात है, एक लड़की की बहुत धूम-धाम से शादी हुई। शादी के बाद लड़की के पाँच बच्चे हुए। चार बेटियाँ, एक बेटा। पूरा परिवार खुश।
पहले बेटियों की शादी हुई, फिर बेटे की। कुछ दिनों बाद पति का निधन हो गया। बेटियाँ ससुराल में सेटल हो चुकी थीं, बेटा अमेरिका में सेटल हो गया था। रह गयी थी माँ।

जहाँ प्रेम, वही संसार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

प्रेम में बहुत शक्ति है।
मेरी एक परिचित मुझसे जब भी मिलती हैं, वो ‘राधे-राधे’ कह कर बात की शुरुआत करती हैं।

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