Saturday, March 15, 2025
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मार्गदर्शक बनें, रिंग मास्टर नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

हमारी बारहवीं की परीक्षा खत्म हो चुकी थी और आखिरी पेपर के बाद हम ढेर सारे बच्चे सिनेमा देखने गये थे। शाम को घर आये तो पिताजी ने कहा था कि अब तो तुम्हारी कई दिनों की छुट्टियाँ है, तुम बुआ के घर चले जाओ, वहाँ तुम्हारा मन लगेगा। 

दुख दर्द पर फोकस करें डिग्री पर नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरा नाम संजय सिन्हा है। 

मेरे पिताजी का नाम सुशील कुमार सिन्हा था। 

मेरे दादाजी का नाम कृष्ण गोविंद नारायण था। 

रोम-रोम में बसी है माँ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

स्कूल में जब सारे बच्चे बात-बात पर विद्या कसम खा लेते थे, तब भी मैं विद्या कसम नहीं खाता था।

ईश्वर के यहाँ कुछ नहीं छिपता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज मैं जो कुछ लिखने जा रहा हूँ, उस पर मुझे पहले से पूरा यकीन था, लेकिन मैं तब तक इस पर कुछ कह नहीं सकता था, जब तक कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार मेरे पास उपलब्ध नहीं होता। आज मेरे पास वैज्ञानिक आधार उपलब्ध है।

सबसे खतरनाक, सपनों को मराना

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

सुबह नींद खुल गयी थी और कम्यूटर को ऑन करने जा ही रहा था कि दरवाजे पर घंटी बजी। 

चंद्रवती मत बनें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

पटना में था तो घर में काम करने वाली महिला को हम 'दाई' बुलाते थे। भोपाल गया तो वहाँ घर पर काम करने वाली को 'बाई' बुलाने लगे। वैसे तो दिल्ली मुझ जैसे जहीन इंसान के लिए रत्ती भर मुफीद जगह नहीं है, जहाँ बात-बात पर माँ-बहन को घसीट लिया जाता है, पर यहाँ घर में काम करने वाली महिला को 'माई' बुलाने का रिवाज है और यह रिवाज मुझे बहुत अच्छा लगता है। 

चंद्रवती

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी पत्नी की छोटी बहन का नाम है आभा। ईश्वर की ओर से मुझे बतौर साली वो मिली है। है तो पूरी अंग्रेजी वाली और मुझे नहीं लगता कि उसने अपनी जिन्दगी में हिंदी की कोई किताब पूरी पढ़ी होगी। प्रेमचंद का नाम सुना है, पर मेरा दावा है कि उनकी एक भी कहानी उसने किताब में आँखें गड़ा कर नहीं पढ़ी होगी। दो चार कहानियाँ मेरे मुँह से सुन कर ही हिंदी साहित्य का उसका भरा-पूरा ज्ञान हम सबके सामने है। 

मन क्या है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आपके पास एक ऐसी चीज है जो हमेशा साथ है लेकिन आप उसे जान कर भी पहचानते नहीं । आप दिन में सौ बार उसकी चर्चा करते हैं, सौ बार उससे बातें करते हैं, सौ बार उसकी सुनते हैं, सौ बार उसकी अनदेखी कर देते हैं पर उसी की तलाश में आप पूरी जिन्दगी भटकते रह जाते हैं। 

मन क्या है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आपके पास एक ऐसी चीज है जो हमेशा साथ है लेकिन आप उसे जान कर भी पहचानते नहीं । आप दिन में सौ बार उसकी चर्चा करते हैं, सौ बार उससे बातें करते हैं, सौ बार उसकी सुनते हैं, सौ बार उसकी अनदेखी कर देते हैं पर उसी की तलाश में आप पूरी जिन्दगी भटकते रह जाते हैं। 

अकेलेपन में रिश्तों के प्यार का रस डालिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक राजा था। वो अक्सर वेश बदल कर देर रात महल से निकलता और आम लोगों के बीच बैठ कर राजकाज की चर्चा छेड़ देता। 

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