संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मैं जो कुछ लिखने जा रहा हूँ, उस पर मुझे पहले से पूरा यकीन था, लेकिन मैं तब तक इस पर कुछ कह नहीं सकता था, जब तक कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार मेरे पास उपलब्ध नहीं होता। आज मेरे पास वैज्ञानिक आधार उपलब्ध है।
आज मैं उस महिला के सच को स्वीकार करने को तैयार हूँ जिसने करीब तीस साल पहले इसी दिल्ली शहर के आरके पुरम इलाके में माँ बनने के बाद अपने परिवार को सिर्फ इसलिए खो दिया था क्योंकि उसके बेटे का चेहरा एक अफ्रीकी बच्चे की तरह था। स्किन कलर वही, बालों का घुंघरालापन वही। मतलब, देखते ही बच्चा अलग नजर आ रहा था।
तब मैं अपने मामा के घर दिल्ली के आरके पुरम इलाके में रहता था।
महिला के सास-ससुर, उसका पति, उसके देवर, सब के सब हैरान रह गये थे उस दिन। मुझे एकदम ठीक से याद है, हम लोग भी उनके घर बधाई देने गये थे, पर घर का माहौल ऐसा था मानो मातम मन रहा हो।
वो महिला बार-बार रो-रो कर कहती रही कि ये बच्चा उसके पति से ही है। उसने कोई गलत काम नहीं किया।
मैं इतना बड़ा हो चुका था कि समझ पा रहा था कि ‘गलत काम’ का मतलब क्या होता है। पर मैंने उस महिला की आँखों में देखा था, उसमें एक सच तो छिपा ही था कि वो बच्चा उसके पति से ही था। पर ऐसा हुआ कैसे, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था। डॉक्टर तक हैरान थे। मुझे नहीं पता कि उन दिनों डीएनए टेस्ट जैसी कोई चीज होती थी या नहीं, पर पति के मन में शक का बीज नहीं, पूरा का पूरा वृक्ष खड़ा था।
उनके घर से रोज रोने की आवाज आती रही। फिर एक दिन मैंने सुना कि वो महिला अपने पिता के घर लौट गयी।
मेरे मन में हमेशा ये बात थी कि अगर एक पल को मान भी लिया जाए कि वो बच्चा उसके पति का नहीं था, तब भी उस घड़ी में उस महिला पर इतने जुल्म की दरकार नहीं थी। मातृत्व मेरे लिए हमेशा ईश्वर का एक ऐसा वरदान है, जिसे किसी भी परिस्थिति में हाथ जोड़ कर स्वीकार कर लेना चाहिए। उस पर जब महिला बिलख-बिलख कर कह रही थी कि ये बच्चा उसके पति का ही है, तो फिर उन्हें ये मान लेना चाहिए था।
पर नहीं।
सबूत कुछ नहीं था, पर दृश्य इतना प्रबल था कि पति खुद को उस बच्चे का पिता मानने को तैयार ही नहीं था।
एक शाम मैं अपने एक मित्र से मिलने आईआईटी के ज्वालामुखी हॉस्टल गया और जब मैंने उससे पूरी घटना की चर्चा की, तो वो हँस पड़ा।
“संजय, अगर अगर उस महिला को कुछ करना भी था, तो ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए था, जिससे सबकुछ इतना साफ नज़र आए।”
“क्या मतलब है तुम्हारा?”
“यकीनन वो बच्चा किसी और का है। महिला झूठ बोल रही है।”
मेरा दोस्त आईआईटी में विज्ञान पढ़ रहा था, मैं कला का विद्यार्थी था। वो विज्ञान की भाषा समझता था, मैं जिन्दगी की भाषा समझता था। वो प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता था, मैं अप्रत्यक्ष पर भरोसा करता था।
वो कहता था ईश्वर नहीं है। मैं कहता था वही नियंता है।
हमारी बहस चली। खूब चली। मैंने उससे कहा कि उस महिला की आँखों में मैंने झाँका है, वो झूठ तो बोल ही नहीं रही। मैं ये मानने को तैयार था कि इसने कहीं प्यार-व्यार किया होगा, पर ये मानने को तैयार नहीं था कि बच्चे के मामले में वो झूठ बोल रही है। अगर कहीं कोई गड़बड़ी है तो वो जेनेटिक दोष हो सकता है।
मेरा दोस्त कह रहा था कि नहीं, महिला 100% झूठ बोल रही है। उसने अपने पति के साथ बेवफाई की है।
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मुझे नहीं पता कि आज वो महिला कहाँ है। कैसी है। उसका क्या हुआ। उसके बच्चे का क्या हुआ। पर दो दिन पहले मैं न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट पढ़ते हुए ठिठक गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी भी महिला का संबंध अगर किसी और व्यक्ति से पहले कभी रहा हो, तो उसका असर अलग पुरुष के साथ पैदा हुए बच्चे पर दिख सकता है।
वैज्ञानिकों ने शोध करके बताया है कि एक महिला किसी पुरुष के साथ जब पहली बार आंतरिक संबंध बनाती है, तो उस वक्त महिला के अपरिपक्व अंडे शुक्राणु के कछ अणुओं को अवशोषित कर लेते हैं। और इसका प्रभाव बाद में दिखता है।
महिला का बच्चा भले दूसरे से हो, लेकिन वो पहले पार्टनर के रूप-रंग से प्रभावित हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने इस शोध को इकोलॉजी जर्नल में छापा है और उनका मानना है कि इससे आदमी के जेनेटिक विकास पर कई और शोध संभव हैं।
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ये तो हुई विज्ञान की बात।
मुझे नहीं पता कि उस महिला का सच क्या था, पर आज मुझे यकीन है कि मैं जो तब सोच रहा था, वही सही था। मुमकिन है उस महिला का पहले किसी ऐसे पुरुष से रिश्ता रहा हो, पर शादी के बाद बच्चे के मामले में वो बिल्कुल सच बोल रही थी।
शादी के पहले के रिश्तों के मामले में मुमकिन है उसने झूठ बोला हो, पर बाद के विषय में उसकी आँखें सिर्फ सच ही बयाँ कर रही थीं।
मैंने कई लोगों से इस घटना की चर्चा की थी।
लोग सुनते, हँस देते। कोई कहता कि ईश्वर के यहाँ किसी का पाप नहीं छिपता।
पर आज मैं, संजय सिन्हा, यह कह सकता हूँ कि ईश्वर के यहाँ प्यार भी नहीं छिपता। ये अलग बात है कि आप प्यार किससे और कितना करते हैं।
(देश मंथन, 09 मई 2016)