Tuesday, October 28, 2025
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बहन के साथ बिना इजाजत सेल्फी लेने वाले को आप सपोर्ट करेंगे?

अभिरंजन कुमार :

डीएम चंद्रकला ने क्या गलत कहा?

सचमुच इस देश के बुद्धि-विवेक को लकवा मार गया है। अगर हमारे काबिल दोस्त और पत्रकार भूपेंद्र चौबे सन्नी लियोनी से कुछ असहज करने वाले सवाल पूछ दें, तो हम उन्हें महिला की गरिमा के बारे में ज्ञान देने लगते हैं, लेकिन एक 18 साल का लड़का, जिसे नए कानूनों के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में किसी उम्रदराज जितनी ही सजा दी जा सकती है, अगर एक महिला डीएम के साथ बिना उनकी इजाजत सेल्फी बनाने लगे, उनके रोकने पर भी न रुके, फोटो डिलीट करने के लिए कहने पर भी डिलीट न करे और हीरोगीरी दिखाये, तो हम महिलाओं की गरिमा भूल कर उसके समर्थन में उतर आते हैं।

क्या अब कायर और पलायनवादी भी योद्धा कहे जाएँगे!

अभिरंजन कुमार :

रोहित के साथ अगर कुछ गलत हुआ, तो उसकी पड़ताल करो। गुनहगारों को सजा दो। लेकिन प्लीज उसे हीरो मत बनाओ। क्या हम अपने बच्चों और नौजवानों को यह बताना चाहते हैं कि कोई आत्महत्या करके भी हीरो बन सकता है?

सोनिया जी, यह न 1975 है, न 1986, इसलिए कोर्ट का सम्मान करें

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

सोनिया गाँधी सही कह रही हैं कि वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं। वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं, इसीलिए कोर्ट का भी आदर नहीं कर रही हैं। इंदिरा गाँधी ने भी 1975 में अपने निर्वाचन को अवैध करार देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को नहीं माना था और देश में इमरजेंसी लगा दी थी। उस वक्त उन्होंने विपक्ष के साथ जो किया था, राजनीतिक दुर्भावना और दुश्मनी उसे कहते हैं, न कि भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट समन कर दे तो उसे कहते हैं।

आज गोडसे-भक्त कह रहे होंगे – थैंक्यू मीडिया..थैंक्यू कांग्रेस!

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

आज कुछ चैनलों ने बताया कि कुछ लोग महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे का बलिदान दिवस मना रहे हैं। इन्हीं चैनलों ने यह भी बताया कि कार्यक्रम में 50 लोग भी नहीं जुटे। 125 करोड़ लोगों के देश में जिस विचार के लिए 50 लोग भी नहीं जुटे, उसे सारे चैनलों ने दिन भर अपनी प्रमुख हेडलाइंस में जगह दी।

अनपेक्षित नहीं हैं बिहार के नतीजे : महागठबंधन की हर रणनीति कामयाब

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

लालटेन की रोशनी में तीर के सारे निशाने कमल पर सही लगे। यह रिजल्ट अनपेक्षित नहीं था। लोकसभा चुनाव के बाद पिछले साल 10 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजों से ही इसका संकेत मिल गया था। इस चुनाव के लिए भी महागठबंधन की तैयारी हर स्तर पर बीजेपी से बेहतर थी। मोदी और बीजेपी का हर राज जानने वाले प्रशांत किशोर की चाणक्य-बुद्धि भी महागठबंधन के काम आ गयी।

अब फर्जी सेक्युलर सिखाएँगे सहिष्णुता का पाठ

अभिरंजन कुमार :

चीन में यह भी कम्युनिस्ट ही तय करते हैं कि लोग कितने बच्चे पैदा करें। वहाँ की कम्युनिस्ट सरकार ने 36 साल बाद अपने नागरिकों को दो बच्चे पैदा करने की इजाजत दी है। वहाँ पहले एक ही बच्चा पैदा करने की इजाजत थी। दंपति दूसरा बच्चा तभी पैदा कर सकते थे, जब पहली संतान लड़की हो।

बिहार में ‘हवा’ उसकी नहीं, जिसकी जीत होने वाली है!

अभिरंजन कुमार :

बिहार चुनाव एक पहेली की तरह बन गया है। अगड़े, पिछड़े, दलित, महादलित-कई जातियों/समूहों के लोगों से मेरी बात हुई। उनमें से ज्यादातर ने कहा कि उन्होंने बदलाव के लिए वोट दिया, लेकिन साथ ही वे इस आशंका से मायूस भी थे कि बदलाव की संभावना काफी कम है।

नयनतारा से मुनव्वर एक डूबते हुए वंश को बचाने के लिए हुए क्रांतिकारी

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

अब आप इसे सेक्युलरिज्म की लड़ाई कहें, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले के खिलाफ सघर्ष कहें या बढ़ती असहिष्णुता का विरोध... नयनतारा सहगल से लेकर मुनव्वर राणा तक आते-आते यह साफ हो चुका है कि बिहार चुनाव के ठीक बीच लेखकों का “पुरस्कार लौटाओ अभियान” पूर्णतः सियासी है। जिन डिजर्विंग और नॉन-डिजर्विंग लेखकों पर अतीत में अहसान किये गये, आज एक डूबते हुए वंश को बचाने और देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।

बिहार चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए पुरस्कार लौटा रहे हैं लेखक

अभिरंजन कुमार :

किसी दिन पुरस्कार लौटाने के लिए यह जरूरी है कि आज पुरस्कार बटोर लो। पुरस्कार मिले तो भी सुर्खियाँ मिलती हैं। मिला हुआ पुरस्कार लौटा दो तो और अधिक सुर्खियाँ मिलती हैं। समूह में पुरस्कार लौटाना चालू कर दो तो क्रांति आ जाती है। ऐसी महान क्रांति देखकर मन कचोटने लगा है। काश...

बलि के बकरों के लिए किसका काँपता है कलेजा?

अभिरंजन कुमार :

अखलाक को किसी हिन्दू ने नहीं मारा। हिन्दू इतने पागल नहीं होते हैं। उसे भारत की राजनीति ने मारा है, जिसके लिए वह बलि का एक बकरा मात्र था। सियासत कभी किसी हिन्दू को, तो कभी किसी मुस्लिम को बलि का बकरा बनाती रहती है। इसलिए जिन भी लोगों ने इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश की है, वे या तो शातिर हैं या मूर्ख हैं।

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