Monday, September 15, 2025
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Tag: अरविंद केजरीवाल

शोशे की सरकार

संदीप त्रिपाठी : 

दिल्ली में गर्मियां शुरू होते ही पानी की किल्लत शुरू हो गयी। मई-जून में क्या होगा, पता नहीं। बिजली-पानी के सवाल पर सरकार बनाने वाले आप नेता अरविंद केजरीवाल ने हाथ खड़े कर दिये हैं।

उल्टे बांस बरेली…

मोहनीश कुमार,  (इंडिया टीवी, वरिष्ठ पत्रकार)

उल्टे बांस बरेली... बचपन से ये मुहावरा सुनते आये हैं... अब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को इस मुहावरे को चरितार्थ करते देख रहे हैं...

दिल पे ना लें

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

आम आदमी पार्टी में कई मित्र हैं, बहुत से मित्र परेशान हैं, कुछ का कहना है कि अब केजरीवाल का पतन शुरू हो जायेगा।

फिर धीरे-धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा…

मोहनीश कुमार, इंडिया टीवी :

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,

यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

दुष्यत कुमार के शब्दों के साथ गाँधी जी की एक कहानी याद आ रही है... बीएचयू के दिनों में... गंगा के किसी घाट पर... कभी साथी विप्लव राही ने सुनाई थी...

आम आदमी पार्टी में कुछ बड़ा होगा

राणा यशवंत :

इस बात के पूरे आसार बन गये हैं कि आप की पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का पत्ता साफ होगा। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के अब मुख्यमंत्री हैं और आम आदमी पार्टी का कनवेनर पद अब भी उन्हीं के पास है। पार्टी के आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास की चिट्ठी जो पिछले हफ्ते आई वो इस बात पर सवाल खड़ा करती है।

केजरीवाल और महत्वाकांक्षा

अभिरंजन कुमार :

अरविंद केजरीवाल ने शपथ ग्रहण के बाद जो भाषण दिया, वह बेहद संतुलित और राजनीतिक रूप से परिपक्व था। पिछली बार की गलतियों से सबक लेने और इस बार कुर्सी पर जमे रहने का संकल्प उनके भाषण में दिखा। लालच और अहंकार से बचने का सबक अच्छा है।

केजरीवाल अगर ऐसे सरकार चलायें, तो….?

क़मर वहीद नक़वी : 

आम आदमी गजब चीज है! किसी को भनक तक नहीं लगने देता कि वह क्या करने जा रहा है। वरना किसे अंदाज था कि सिर्फ नौ महीनों में ही दिल्ली घर घर मोदी से घर घर मफलर में बदल जायेगी!

क्यों शानदार चुटकुला है “पाँच साल केजरीवाल”!

राजीव रंजन झा : 

केजरीवाल हमेशा अपने लिए नयी मंजिलें तय करते आये हैं। उनकी हर मंजिल की एक मियाद होती है। जब तक उसकी अहमियत होती है, तभी तक वहाँ टिकते हैं। नौकरी तब तक की, जब तक थोड़ा रुतबा हासिल करने के लिए जरूरी थी। एनजीओ तब तक चलाया, जब तक उससे एक सामाजिक छवि बन जाये। आंदोलन तब तक चलाया, जब तक राजनीतिक दल बनाने लायक समर्थक जुट जायें।

नैतिकता की ढोल, मन की पोल

रत्नाकर त्रिपाठी : 

"ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं" के सिद्धांत को आदर्श बना के चलने वाले भी नैतिकता के ढोल बजाने लगे हैं।

मोदी मंत्रिमंडल और संघ के लिए भारी केजरीवाल!

राजेश रपरिया :

दिल्ली विधानसभा के चुनावी सर्वेक्षणों में खारिज अरविंद केजरीवाल ‘विजेता’ बन कर उभरे हैं। इन सर्वेक्षणों में केजरीवाल के पक्ष में मतदाताओं का रुझान बढ़ रहा है।

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