Tag: ईश्वर
ईश्वर के यहाँ कुछ नहीं छिपता
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मैं जो कुछ लिखने जा रहा हूँ, उस पर मुझे पहले से पूरा यकीन था, लेकिन मैं तब तक इस पर कुछ कह नहीं सकता था, जब तक कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार मेरे पास उपलब्ध नहीं होता। आज मेरे पास वैज्ञानिक आधार उपलब्ध है।
मन क्या है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आपके पास एक ऐसी चीज है जो हमेशा साथ है लेकिन आप उसे जान कर भी पहचानते नहीं । आप दिन में सौ बार उसकी चर्चा करते हैं, सौ बार उससे बातें करते हैं, सौ बार उसकी सुनते हैं, सौ बार उसकी अनदेखी कर देते हैं पर उसी की तलाश में आप पूरी जिन्दगी भटकते रह जाते हैं।
मन क्या है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आपके पास एक ऐसी चीज है जो हमेशा साथ है लेकिन आप उसे जान कर भी पहचानते नहीं । आप दिन में सौ बार उसकी चर्चा करते हैं, सौ बार उससे बातें करते हैं, सौ बार उसकी सुनते हैं, सौ बार उसकी अनदेखी कर देते हैं पर उसी की तलाश में आप पूरी जिन्दगी भटकते रह जाते हैं।
महिलाओं में ईश्वर का निवास है
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जाती हुई सर्दी बहुत बुरी होती है। जाते-जाते छाती से चिपक गयी है।
जहाँ उम्मीद, वहीं जिन्दगी
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
यह तो आप जानते ही हैं कि सबसे ज्यादा खुशी और सबसे ज्यादा दुख, दोनों अपने ही देते हैं।
बासी भात में खुदा का साझा
प्रेमचंद :
शाम को जब दीनानाथ ने घर आकर गौरी से कहा, कि मुझे एक कार्यालय में पचास रुपये की नौकरी मिल गई है, तो गौरी खिल उठी। देवताओं में उसकी आस्था और भी दृढ़ हो गयी। इधर एक साल से बुरा हाल था। न कोई रोजी न रोजगार। घर में जो थोड़े-बहुत गहने थे, वह बिक चुके थे। मकान का किराया सिर पर चढ़ा हुआ था। जिन मित्रों से कर्ज मिल सकता था, सबसे ले चुके थे। साल-भर का बच्चा दूध के लिए बिलख रहा था। एक वक्त का भोजन मिलता, तो दूसरे जून की चिन्ता होती। तकाजों के मारे बेचारे दीनानाथ को घर से निकलना मुश्किल था।
अकबर को क्या जरूरत पूजा करने की!
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कुछ दिन पहले मैं अमिताभ बच्चन से मिलने उनके दिल्ली वाले घर में गया था। पहले भी कई बार जा चुका हूँ, लेकिन इस बार जब मैं उनसे मिलने गया तो मुझे उनके साथ कहीं जाना था। मैं ड्राइंग रूम में बैठ कर चाय पी रहा था, अमिताभ बच्चन तैयार हो रहे थे।