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कश्मीरी दोस्तों के नाम एक खुला खत

राजीव रंजन झा :
आपको बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। मानते हैं। आपके जो पड़ोसी थे ना, वे भी बहुत मुश्किल दौर से गुजरे हैं। मालूम है ना आपको? शायद अपनी ही आँखों से देखा भी हो, अगर उनके साथ होने वाले अपराधों में हिस्सेदार नहीं थे तब भी?
जरा नजाकत से सँभालें कश्मीर : कांग्रेस की सलाह

अभिषेक मनु सिंघवी, प्रवक्ता, कांग्रेस :
जहाँ तक हमारे संविधान की सीमाओं का सवाल है, और जहाँ तक भारत की अक्षुण्णता एवं सुरक्षा का सवाल है, उसमें किसी रूप से कोई समझौता नहीं हो सकता है।
घाटी दे दें? पर किसको दे दें?

प्रीत के. एस. बेदी, सामाजिक टिप्पणीकार :
पहले जरा नैतिक प्रश्न की बात कर लेते हैं। विभाजन के बारे में कुछ भी नैतिक नहीं था। दोनों ओर से लाखों लोग मारे गये और इस पूरी कवायद के बाद एक ऐसा देश बना जिसके दो हिस्से थे।
कश्मीर को अमन और विकास चाहिए : नरेंद्र तनेजा

हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में एक बार फिर उबाल दिख रहा है और अमरनाथ यात्रा रुकने जैसे हालात पैदा हो गये हैं। कश्मीर की इस स्थिति और वहाँ की विकराल समस्या को सुलझाने के बारे में भाजपा की सोच क्या है? भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र तनेजा से देश मंथन की एक बातचीत।
कश्मीरी पंडितों की वापसी से कौन डरता है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने को लेकर अलगाववादी संगठनों की जैसी प्रतिक्रियायें हुयी हैं, वे बहुत स्वाभाविक हैं। यह बात साबित करती है कि कश्मीर घाटी में जो कुछ हुआ, उसमें इन अलगाववादियों की भूमिका और समर्थन रहा है।
कश्मीर पर प्रचारक का हठ या नेहरू से आगे मोदी की नीति?

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
वक्त बदल चुका है। वाजपेयी के दौर में 22 जनवरी 2004 को दिल्ली के नॉर्थब्लाक तक हुर्रियत नेता पहुँचे थे और डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की थी। मनमोहन सिंह के दौर में हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान जाने का वीजा दिया गया और अमन सेतु से उरी के रास्ते मुजफ्फराबाद के लिए अलगाववादी निकल पड़े थे।
कश्मीर पर मेरे कहे को पहले समझें तो सही!

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
पहले हाफिज सईद से मेरी मुलाकात पर संसद में हंगामा हुआ और फिर कश्मीर पर मेरे विचारों को लेकर। मुझे दुख है कि हमारे नेताओं ने इन दोनों मुद्दों पर ठंडे दिमाग से क्यों नहीं सोचा?
कश्मीर : आजादी हाँ, अलगाव ना

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
मैं आजकल के जिस टीवी चैनल पर जाता हूँ, कश्मीर का सवाल जरूर उठा दिया जाता है। जब मैं एंकरों और दूसरे साहबान से पूछता हूँ कि आप बताइये कश्मीर का हल क्या है तो उनके पास कोई ठोस, सगुण, साकार जवाब नहीं होता है।