कश्मीर को अमन और विकास चाहिए : नरेंद्र तनेजा

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हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में एक बार फिर उबाल दिख रहा है और अमरनाथ यात्रा रुकने जैसे हालात पैदा हो गये हैं। कश्मीर की इस स्थिति और वहाँ की विकराल समस्या को सुलझाने के बारे में भाजपा की सोच क्या है? भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र तनेजा से देश मंथन की एक बातचीत। 

– कश्मीर में जो स्थितियाँ हैं, वे तो सबके सामने हैं। पर इन हालात में भाजपा और एनडीए सरकार इसका समाधान किस तरह से देख रही है और उस दिशा में काम क्या हो रहा है?

कश्मीर में जनता ने भारी मात्रा में मतदान किया था पीडीपी और भाजपा को। जनता ने जो मतदान किया था, वह अमन और विकास के लिए था। हम यह मानते हैं कि जनता अमन और विकास ही चाहती है। लेकिन पीडीपी और भाजपा की सरकार पाकिस्तान को पसंद नहीं है। 

– विकास, कमाई और रोजी-रोजगार तो सबको चाहिए। लेकिन भारत के खिलाफ एक भावना तो वहाँ दिखती है ना। 

वहाँ उनकी नाराजगी कुछ मुद्दों को लेकर है, जिसको काफी समय से सरकारों ने उलझाया। लेकिन यह कहना गलत होगा कि वहाँ लोगों के अंदर कोई भारत विरोधी भावना है। कुछ अलगाववादी ताकते हैं वहाँ, जिनको पाकिस्तान से मदद मिलती है। किराये के टट्टू हैं। 

जिस तरह से वहाँ मतदान हुआ और जिस तरह से वहाँ व्यवसाय फिर से फलने-फूलने लगा है, जिस तरह से वहाँ पर्यटन फिर से बढ़ा है, निवेश फिर से आना शुरू हुआ है, वहाँ के बच्चे आईएएस में भी टॉप कर रहे हैं, क्रिकेट में भी दिखाई दे रहे हैं, यह सब तभी संभव होता है जब जमीन पर अनुकूल भावनाएँ हों। 

लेकिन जिस घटना की हम बात कर रहे हैं, उसके बाद कुछ लोग सड़क पर निकल कर आये, यह एक तात्कालिक प्रतिक्रिया है। 

– पर ऐसा किसी एक घटना में ही नहीं होता है। कभी भी कोई वारदात हो जाती है, कहीं भी पत्थरबाजी शुरू हो जाती है। 

किसी चीज पर लोगों ने सड़क पर आकर प्रतिक्रिया जतायी है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे मूलतः इस बात के खिलाफ हैं कि वहाँ पर अमन-चैन हो या वे चाहते हैं कि इस सरकार को फेंक दिया जाये। एक शख्स मारा गया और क्योंकि वह युवा था, उसको लेकर उनकी कुछ भावनाएँ हो सकती हैं। उस पल के आवेश में लोग कुछ करते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वे उस व्यक्ति के विचारों से सहमत हैं। 

– यह तो सामने दिख रही हकीकत को नकारना है। 

नहीं, यह बिल्कुल गलत है। हकीकत वहाँ यह है कि वहाँ लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है जिसको भारी बहुमत मिला। अभी वहाँ की मुख्यमंत्री ने विधानसभा का चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीत कर आयीं। उन्हें काफी ज्यादा मत-प्रतिशत मिला। 

दूसरी बात यह है कि जिस हिसाब से वहाँ निवेश जा रहा है, जिस तरह से विकास हो रहा है, बॉलीवुड वापस जा रहा है, पर्यटक लौट रहे हैं और जिस तरह से उनका स्वागत किया जा रहा है, वहाँ के लोग यह बात समझ चुके हैं कि अमन-चैन ही उनके हित में है। इक्का-दुक्का इधर-उधर बातें हो जाती हैं, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1989 से यह सब चल रहा है। अब काफी हद तक चला गया है, पर कोई चीज जब इतनी बड़ी चीज इतने लंबे समय तक होती है तो वह एक रात में खत्म नहीं हो जाती। 

कश्मीर का अवाम अलगाववादी नहीं है। वह अलगावादी होता तो पीडीपी हो या कोई भी हो… महबूबा ने तो मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा चुनाव लड़ा है, फिर क्यों जीत गयी? भाजपा के साथ गठबंधन के बाद उन्होंने उपचुनाव लड़ा ना? अगर लोग इसके खिलाफ हैं, तो वे कैसे जीत गयीं? अलगाववादियों ने उन्हें हरा क्यों नहीं दिया? वहाँ मुट्ठी भर लोग अलगाववादी हैं। अगर हम मुट्ठी भर लोगों को ही कश्मीर मान लें तो अलग बात है। पर वहाँ का आम अवाम इन लोगों के साथ नहीं है, वह थक चुका है, वह अमन और विकास चाहता है। 

– यह तो मानेंगे कि वहाँ स्थितियाँ जटिल हैं, हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका है और आप कश्मीरी पंडितों को वहाँ फिर बसाना चाह रहे थे, पर उसमें बाधाएँ आ रही हैं। 

कश्मीर में चुनौतियाँ हैं, इससे कौन मना करता है। 

– सवाल यही है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए आगे आप किस रास्ते पर बढ़ रहे हैं? 

रास्ता वही है जिसके लिए वहाँ की जनता ने मतदान किया और जो वहाँ हमारा और पीडीपी का साझा न्यूनतम कार्यक्रम है। 

– पर अभी इस साझा कार्यक्रम में कश्मीरी पंडितों की वापसी तो शामिल नहीं हो पायी है ना? 

वह सब कुछ भी आयेगा। आपको पता है कि उसके लिए प्रयास चल रहे हैं। योजनाएँ बन रही हैं। एक घाव इतना बड़ा है और इतने सालों का है। वहाँ यह अपने-आप में एक बड़ी बात है कि पीडीपी और भाजपा की सरकार चल रही है, काम कर रही है। एक स्पष्ट जनादेश है कि जनता सिर्फ अमन और विकास चाहती है। वह चाहती है कि रोजगार मिले, रोजगार कश्मीर में मिले और भारत के अन्य हिस्सों में मिले। वह चाहती है कि निवेश आये, उनकी दुकानें खुलें, उनकी चीजें पूरी दुनिया भर में जायें, उनके लोगों को तालीम हासिल हो। आम कश्मीरी यही चाहता है। लेकिन यह बात पाकिस्तान को और घाटी में उसके गुर्गों को बर्दाश्त नहीं हो रही है, इसीलिए इस तरह की इक्का-दुक्का घटनाएँ दिखती हैं। आप यह क्यों नहीं देखते हैं कि आज जहाज के जहाज भर कर जा रहे हैं पर्यटकों और व्यवसायियों के? अगर दो लोग सड़क पर निकल कर आ रहे हैं तो आप यह क्यों भूल रहे हैं कि रोजाना पूरे हिंदुस्तान से पर्यटक वहाँ पहुँच रहे हैं। 

– दो लोग सड़क पर निकल आ रहे हैं, यह कहना तो वहाँ की स्थिति को बहुत छोटा करके बताने वाली बात है। 

नहीं, जब आपके आसपास ऐसी कोई घटना हो जाती है तो उस समय लोग तमाम कारणों से निकल कर सड़क पर उनके साथ आ जाते हैं। इसका मतलब यह नहीं होता कि वे उस व्यक्ति के विचार या उसकी गतिविधि में शामिल हो जाते हैं। कश्मीर की जो स्थिति है, उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना पड़ेगा। आतंकवादियों के पक्ष में सहानुभूति है, ऐसा कहना सही नहीं होगा। हो सकता है कि कुछ लोगों की, अलगाववादी तत्वों की सहानुभूति हो और पाकिस्तान समर्थित लोगों की सहानुभूति हो। लेकिन आम कश्मीरी की सहानुभूति अलगाववादियों के साथ होने की बात गलत है। ऐसा होता तो वहाँ न चुनाव हो पाते, न सरकार बन पाती, और न सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री दोबारा चुनाव जीत पातीं। वहाँ के चुनाव पर किसी एक व्यक्ति ने प्रश्न नहीं उठाया। 

ये जो कुछ लोग चुनौती दे रहे हैं, और पाकिस्तान की शह पर तमाशा कर रहे हैं, वह इसीलिए है कि उन्हें यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है। उन्हें लग रहा है कि अगर पीडीपी-भाजपा की सरकार कश्मीर में सफल हो गयी तो फिर उनका क्या होगा? अगर यह सरकार अमन और विकास लाने में सफल हो गयी, फिर वे तो खत्म हो गये। कश्मीर की जनता उनको हरायेगी, आप थोड़ा इंतजार कीजिए। 

इसीलिए भाजपा का मुख्य ध्यान वहाँ तीन चीजों पर है। एक तो वहाँ अमन लाना, पीडीपी के साथ मिल कर। दूसरे, वहाँ तेजी से विकास करना। तीसरे, कश्मीर को मुख्यधारा में लाना। मुख्यधारा में लाने का मतलब यह कि वहाँ के लोग पूरे भारत में जायें और अवसरों का लाभ ले सकें, शेष भारत के लोग वहाँ जायें। वहाँ के विकास के लिए जो भी विशेष ध्यान देने की जरूरत हो, वैसा सरकार कर ही रही है। 

– पर इन्हीं सबके बीच हम देखते हैं कि एनआईटी जैसी कोई घटना हो जाती है। 

अगर 100 अच्छी बातें हो रही हैं, उनके मुकाबले दो घटनाएँ ऐसी हो जाती हैं तो उनको लेकर यह नहीं कहा जा सकता कि 98 प्रतिशत काम नहीं हुआ। मीडिया किसी घटना को उछाल कर दिखा देता है, वह वहाँ वास्तव में स्थिति उतनी खराब होती तो रोज खबर आ रही होती। इसका मतलब यही है कि वह एक दिन का बुलबुला था। 

आज कश्मीर के बच्चे आईएएस और दूसरी परीक्षाओं में चमक रहे हैं। हम चाहते हैं कि वहाँ के बच्चे मुख्यधारा में चमकें। यह उनका देश है। कश्मीर हमारा है और भारत उनका है। इतने समय से कश्मीर में स्थितियों को ठीक से नहीं सँभाला गया है, और जहाँ पहले इतना व्यापक भ्रष्टाचार भी होता था, अब उसको ठीक करने में थोड़ा समय तो लगेगा।

(देश मंथन, 10 जुलाई 2014)

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