Friday, November 22, 2024
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Tag: जिन्दगी

प्रेम एक विश्वास और भरोसा है

‪‎संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी समझ में आज तक ये बात नहीं आयी कि क्यों मेरी कुछ पोस्ट को तीन हजार लाइक मिलते हैं, और कुछ पोस्ट को सिर्फ पाँच सौ लाइक। 

उनसे मिलें जो निराश हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मैं जिन दिनों जनसत्ता में काम करता था, मैंने वहाँ काम करने वाले बड़े-बड़े लोगों को प्रधान संपादक प्रभाष जोशी के पाँव छूते देखा था। शुरू में मैं बहुत हैरान होता था कि दफ्तर में पाँव छूने का ये कैसा रिवाज है। लेकिन जल्दी ही मैं समझने लगा कि लोगों की निगाह में प्रभाष जोशी का कद इतना बड़ा है कि लोग उनके पाँव छू कर उनसे आशीर्वाद लेना चाहते हैं। हालाँकि तब मैं कभी ऐसा नहीं कर पाया। 

जहाँ उम्मीद, वहीं जिन्दगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

यह तो आप जानते ही हैं कि सबसे ज्यादा खुशी और सबसे ज्यादा दुख, दोनों अपने ही देते हैं।

जिन्दगी को फुल मस्ती में जीते हैं सरदार

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक ट्रेन में दो दोस्त यात्रा कर रहे थे। दोनों दोस्त एक दूसरे को चुटकुले सुना रहे थे, और हँसते हुए चले जा रहे थे। उनके सामने वाली सीट पर क्योंकि एक सरदार जी यात्रा कर रहे थे, इसलिए दोनों दोस्त संता सिंह और बंता सिंह वाले चुटकुलों में से सरदार शब्द हटा देते और खुशी से चुटकुले सुनाते, हँसते, खिलखिलाते।

हर महिला में माँ छुपी होती है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

छोटा था तो मेरे स्कूल जाने से पहले माँ जाग जाती थी। चाहे रात को सोने में उसे कितनी भी देर हुई हो, पर वो मुझसे पहले उठ कर मेरे लिए नाश्ता तैयार करती, लंच बॉक्स सजाती, मेरी यूनिफॉर्म प्रेस करती और फिर मुझे प्यार से ऐसे जगाती कि कहीं अगर मैं कोई सपना देख रहा होऊँ तो उसमें भी खलल न पड़ जाए। मैं जागता, रजाई मुँह के ऊपर नीचे करता, फिर सोचता कि रोज सुबह क्यों होती है, रोज स्कूल क्यों जाना पड़ता है, रोज भरत मास्टर को वही-वही पाठ पढ़ कर क्यों सुनाना पड़ता है। मुझे लगता था कि स्कूल को मंदिर की तरह होना चाहिए, जिसकी जब श्रद्धा हो चला जाए। 

बहू भी सास बनेगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

जब भी मैं सास-बहू की कहानी लिखता हूँ और उसमें लिखता हूँ कि बहू ने सास को सताया, सास को किसी आश्रम में जाना पड़ा, तो मेरे पास ढेर सारे संदेश आने शुरू हो जाते हैं। ज्यादातर संदेश बहुओं के होते हैं। सबकी शिकायत करीब-करीब एक सी होती है। 

कर्मों की कमाई

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

जब हम छोटे बच्चे थे, तब दशहरा के मौके पर मोहल्ले में छोटा सा स्टेज बना कर नाटक किया करते थे। मोहल्ले के सारे लोग वहाँ जुट जाते और हम 'रसगुल्ला-गुलाब जामुन' वाला नाटक करते। करने को तो हम 'कलुआ की माई वाला नाटक' भी करते, पर मेरा पसंदीदा नाटक 'रसगुल्ला-गुलाब जामुन' हुआ करता था। 

अभी जिन्दगी जीओ

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मैंने एक नयी साइकिल खरीदी है। गियर वाली साइकिल मैंने दुकान में देखी और खरीद ली। हालाँकि पत्नी ने मुझे साइकिल खरीदते देखकर टोका भी था कि क्या करोगे? मैंने उसकी तरफ गंभीर नजरों से देखा और कहा कि तुम्ही तो कहती हो कि वजन बढ़ रहा है, तो अब साइकिल खरीद लूँगा और इसे चलाऊँगा। अब यह मत पूछना कि साइकिल चलाने से वजन कम होता है क्या? 

जीवन में बैलेंस बनाए

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे एक जानने वाले कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले हैं। उनकी चिंता यह नहीं है कि वो रिटायर होने के बाद क्या करेंगे। उनका दुख यह है कि उन्होंने अपनी जिन्दगी का इतना बड़ा वक्त सिर्फ जीने की तैयारी में गुजार दिया। अब जब जीने की घड़ी आयी, तो उन्हें याद आ रहा है कि उनकी जिन्दगी तो निकल चुकी है। उन्होंने बरसों बाद खुद को आइने में देखा और पाया कि सिर से आधे बाल उड़ चुके हैं, बाकी जो बचे हैं, वो सफेद हो गये हैं। 

पानी बचाएँ तभी बचेगी जिन्दगी और बचेंगे परिंदे

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

कुदरत ने इंसान के ढेर सारी खूबियाँ बक्शी हैं पर उसे उड़ने का इल्म नहीं दिया। जिन पक्षियों को उड़ने को इल्म दिया है उन्हें प्रकृति से समन्वय बनाने की ताकत भी दी है। बदलते मौसम की मार से खुद को बचाए रखने के लिए पक्षी साल में कई महीने स्थान परिवर्तन करते हैं। ये परिवर्तन न सिर्फ मौसम से अनुकूलन के लिए होता है बल्कि प्रजनन के लिए भी होता है।

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