Tag: जिन्दगी
आ अब लौट चलें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
सबको एक दिन घर लौटना होता है। भाग्यशाली होते हैं वो लोग, जिन्हें घर के बारे में पता होता है। मैं तो बहुत से लोगों से मिला हूँ, उन्हें पता ही नहीं कि उनका घर कहाँ है। वो हर रात सोते हैं, फिर सुबह होते ही भटकने लगते हैं, अपने घर की तलाश में। वो जिन्दगी जीने की तैयारी में अपने हिस्से की ढेर सारी जिन्दगी जाया कर चुके हैं।
अपराध बोध

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे बेटे को रास्ते में पाँच सौ रुपये का एक नोट गिरा हुआ मिला। उसने उस नोट को उठा कर जेब में रख लिया। लेकिन कुछ दूर जाकर वो वापस लौटा और उसने उस नोट को जेब से निकाल कर वहीं फेंक दिया।
मर्दानगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आज जो कहानी आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो पता नहीं क्यों मुझे लग रहा है कि मैंने पहले भी आपको सुनायी है।
गरम हवाओं ने पूरब की शीतलता में उष्णता भर दी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
“गरम हवाओं ने पूरब की शीतलता में कब और कैसे उष्णता भर दी, हम देखते रह गये…”
मैंने कल यहाँ फेसबुक पर अपनी पोस्ट में लिखा था कि कैसे मैं रेडियो मिर्ची के एक शो में गया, तो रेडियो जॉकी शशि ने मुझे बताया कि एक बुजुर्ग दंपति, जिनके तीनों बच्चे अमेरिका में सेटल हो गये हैं, पटना में अकेले जिन्दगी गुजार रहे हैं।
संयोगों का एक विघटन है जिन्दगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कभी रुक कर सोचिएगा कि जिन्दगी क्या है। जिन्दगी चन्द यादों के सिवा कुछ नहीं। यादें बचपन की, यादें जवानी की, यादें दादी-नानी की कहानियों की और यादें माँ की लोरियों की। यादें अपने जन्म की।
गुणों का कंगाल होता है विलेन

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
हीरो की माँ, बहन और पत्नी या प्रेमिका तीनों खंभे से बंधी हुयी हैं। हीरो कई-कई पहलवानों से घिरा है।
मुश्किल में मित्र की पहचान होती है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जब माँ मुझे और इस संसार को छोड़ कर जा रही थी तब मैं नहीं सोच पाया था कि माँ के चले जाने का मतलब क्या होता है। मेरी नजर में माँ कैंसर की मरीज थी और भयंकर पीड़ा से गुजर रही थी।
अपने कर्मों का भोजन हम स्वयँ बनाते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
चार दोस्त थे।
अब अगर चार की जगह तीन दोस्त भी होते तो वही होता, जो चार के होने पर हुआ।
खैर, संख्या की कोई अहमियत नहीं। न ही ये बहस का विषय हो सकता है।
भावे की हर बात भली, ना भावे तो हर बात बुरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज सोच रहा हूँ कि सु़बह-सु़बह आपसे वो बात बता ही दूँ जिसे इतने दिनों से बतान के लिये मैं बेचन हूँ।