संयोगों का एक विघटन है जिन्दगी

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कभी रुक कर सोचिएगा कि जिन्दगी क्या है। जिन्दगी चन्द यादों के सिवा कुछ नहीं। यादें बचपन की, यादें जवानी की, यादें दादी-नानी की कहानियों की और यादें माँ की लोरियों की। यादें अपने जन्म की। 

आज मैं अपनी जन्मभूमि की यादों से जुड़ने जा रहा हूँ। 

कुरुक्षेत्र के मैदान पर जंगी हाथियों के बीच घिरे अर्जुन में मोह में पड़ कर अपने सारथी श्रीकृष्ण से यही तो पूछा था जिन्दगी क्या है? 

मोह ग्रस्त अर्जुन से श्रीकृष्ण ने इतना भर कहा था, “तुम कुछ नहीं हो। तुम बस एक निमित्त मात्र हो। जो करना है, वो मुझे करना है। यानी कर्ता मैं हूँ। जिन्दगी संयोगों का एक विघटन भर है। निमित्त को कभी कभी गुमान हो जाता है कि कहीं वही कर्ता तो नहीं  और आज अर्जुन तुम इसी भ्रम में घिर गये हो। सोचो अर्जुन तुम्हारा अपना क्या है, चन्द यादों के सिवा। किसी का भी अपना क्या होता है, चन्द बीती हुई यादों के सिवा। क्या तुम अपना भविष्य जानते हो? क्या कोई अपना भविष्य जानता है? नहीं जानता, क्योंकि उसका रचयिता कोई और है। तुम शब्द हो, कागज पर उकेरे हुए शब्द। तुम लेखक नहीं हो सकते, वो कोई और है। इसलिए तुम खुद को इस सवाल मे मत घेरो कि तुम क्या हो। तुम ये भी मत सोचो कि तुम क्यों हो। तुम सिर्फ इतना भर सोचो कि जो हो रहा है, वही होना है। तुम सिर्फ अपने निमित्त होने फर्ज भर निभाओ। तुम खुद को अपने रचयिता के हाथों में सौंप दो और समझ लो कि तुम्हारे पास जो आँखें हैं, उनसे तुम सिर्फ उस अतीत को देख सकते हो, जो घट चुका है। तुम उस संत्राष को जीने की कोशिश ही मत करो, जिन पर तुम्हारा अख्तियार नहीं। मुझे ही देखो, सारा संसार मुझे ईश्वर कहता है, लेकिन तुम्हारे इस मृत्युलोक में मेरा ही किन परिस्थितियों पर वश चला? जिस देवकी को मुझे पाने के लिए आठ शिशुओं के जन्म का इतजार करना पड़ा, मैं उसकी ही गोद में क्षण भर न रह सका। मेरी नियती देखो।”

आज मैं पटना जा रहा हूँ। आज वहाँ आप सबकी पुस्तक ‘जिन्दगी’ का विमोचन है। एक समारोह में शाम छह बजे गाँधी मैदान के पास श्रीकृष्णा मेमोरियल हॉल में राज्य के मुख्य मन्त्री नीतीश कुमार किताब का विमोचन करेंगे। आप में से जो लोग पटना में हैं, मैं उन्हें वहाँ सादर आमंत्रित करता हूँ। हालाँकि ये कार्यक्रम मेरी ओर से आयोजित नहीं है, मैं स्वयँ वहाँ निमित्त मात्र हूँ। 

मैंने सोचा था कि फेसबुक से जुड़ी मेरी दूसरी किताब का विमोचन नवंबर में मेरे फेसबुक परिजनों के हाथों कृष्ण की नगरी मथुरा में होगा। लेकिन जैसा कि मैंने कहा है कि मैं निमित्त मात्र हूँ, ये सबकुछ होता चला गया। पटना मेरी जन्मभूमि है। पटना के साथ मेरा भी रिश्ता ‘मोह’ का रहा है। लेकिन मुझे अपनी जिन्दगी में पटना में रहने का ही सबसे कम अवसर मिला। मेरी जिन्दगी की यादों का सफर दिल्ली, मुंबई, मध्यप्रदेश, रूस, अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड से जितना जुड़ा है, उससे बहुत कम पटना से जुड़ा है। लेकिन पटना से जितना भी जुड़ा है, वो सारी यादों के ऊपर है। मेरा जन्म ही पटना में हुआ है। 

माँ ने मेरे जन्म की जिन यादों को मेरे मन में बसाया है, वो अगस्त का महीना, काली घटाएँ और घरनघोर बारिश के बीच मेरे जन्म की यादें हैं। 

मैं कभी कुछ नहीं भूलता। मुझे अपने जन्म की एक-एक घटना याद है। मुझे पटना की हर वो सड़क याद है, जिनसे मैं कभी गुजरा हूँ। पिछले दिनों नीतीश कुमार जी को अपनी किताब विमोचन से पहले देने के लिए मैं उनसे मिलने मुख्य मन्त्री निवास में गया था तो मुझे याद था कि उनके घर से आगे जाकर गवर्नर हाउस के सामने वाले गोल चौक पर बैठ कर हम चार दोस्त कैसे जिन्दगी की तैयारी करते थे। 

पटना मेरी यादों का शहर है। पटना मेरे लिए लोरियों का शहर है। पटना मेरा वजूद है। 

आज बस इतना ही। लेकिन अपनी ओर से इतना जरूर कहता चलूँगा कि जिन्दगी कई विसंगतियों को संगति देने का नाम भी है।

(देश मंथन 12 जून 2015)

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