Saturday, August 9, 2025
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जीवन का मंदिर

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

दुनिया भर के धर्म प्रचारकों, अपने दुश्मनों को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए व्याकुल वीर पुरुषों, अपने-अपने मजहब के लिए दूसरों के सिर कलम कर देने का दम दिखाने वालों, चंद रुपयों के लिए किसी के दिल पर नश्तर चला देने वाले महान मनुष्यों, आओ, मेरे साथ तुम जिन्दगी के उस सत्य को देखो, जिसे देख कर हजारों साल पहले सिद्धार्थ नामक एक राजकुमार सबकुछ छोड़ कर संन्यासी बन गया था।

जहाँ आकर मौत भी मुस्काराती है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज मैं आपको जबलपुर में बैठ कर अनिता की कहानी सुनाऊँगा। फिर सुनाऊँगा फेसबुक पर किसी की भेजी वो कहानी जिसका रिश्ता सीधे-सीधे अनिता की कहानी से जुड़ा है। 

रिश्तों की तलाश

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज आपको बहुत से सवालों के जवाब मिल जाएँगे। 

जीने का संकल्प

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

“जब विकल्प की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, तब मानव संकल्प का उदय होता है।”

अपनी विचारधारा के बारे में दो टूक

अभिरंजन कुमार :

मैं जब सड़क पर पैदल चलता हूँ या साइकिल चलाता हूँ, तो बाएँ चलता हूँ, ताकि आती-जाती गाड़ियों से अपनी रक्षा कर सकूँ। जब कार चलाता हूँ, तो दाएँ चलता हूँ, ताकि आते-जाते पैदल या साइकिल यात्रियों को मेरी वजह से परेशानी न हो। जहाँ कहीं दाएँ या बाएँ मोड़ हो और मुझे सीधा जाना हो, तो गाड़ी बीच की लेन पर ले आता हूँ।

‘पात्र’ को बड़ा करें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे एकदम ठीक से याद है कि पड़ोस वाली बेबी दीदी शादी के बाद घर लौट आयी थीं। 

नरक का मार्ग

प्रेमचंद :

रात 'भक्तमाल' पढ़ते-पढ़ते न जाने कब नींद आ गयी। कैसे-कैसे महात्मा थे जिनके लिए भगवत्-प्रेम ही सबकुछ था, इसी में मग्न रहते थे। ऐसी भक्ति बड़ी तपस्या से मिलती है। क्या मैं यह तपस्या नहीं कर सकती? इस जीवन में और कौन-सा सुख रखा है? आभूषणों से जिसे प्रेम हो वह जाने, यहाँ तो इनको देखकर आँखें फूटती हैं; धन-दौलत पर जो प्राण देता हो वह जाने, यहाँ तो इसका नाम सुनकर ज्वर-सा चढ़ आता है। कल पगली सुशीला ने कितनी उमंगों से मेरा शृंगार किया था, कितने प्रेम से बालों में फूल गूँथे थे। कितना मना करती रही, न मानी।

मिस पद्मा

प्रेमचंद :

कानून में अच्छी सफलता प्राप्त कर लेने के बाद मिस पद्मा को एक नया अनुभव हुआ, वह था जीवन का सूनापन। विवाह को उसने एक अप्राकृतिक बंधन समझा था और निश्चय कर लिया था कि स्वतन्त्र रहकर जीवन का उपभोग करूँगी। एम.ए. की डिग्री ली, फिर कानून पास किया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। रूपवती थी, युवती थी, मृदुभाषिणी थी और प्रतिभाशालिनी भी थी। मार्ग में कोई बाधा न थी। देखते-देखते वह अपने साथी नौजवान मर्द वकीलों को पीछे छोड़कर आगे निकल गयी और अब उसकी आमदनी कभी-कभी एक हज़ार से भी ऊपर बढ़ जाती।

जिन्दगी उठ कर गिरने और गिर कर उठने का नाम है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोगों ने धान की बोआई और फिर उसकी रोपाई देखी है।

आजमाये हुए को दुबारा नहीं आजमाना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

ये संसार बुराइयों से भरा पड़ा है। ये संसार अच्छाइयों से भी भरा पड़ा है।

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