जिन्दगी उठ कर गिरने और गिर कर उठने का नाम है

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोगों ने धान की बोआई और फिर उसकी रोपाई देखी है।

मुझे ये भी नहीं पता कि आप में से कितने लोगों ने किसी पूजा में धान की पूजा होते देखी है। 

अगर धर्म को फिजिक्स की तरह पढ़ाया गया होता और लोगों पर इसे आँखें बन्द कर मानने का दबाव न डाला गया होता, तो मेरा यकीन कीजिए आज जिसे हम कर्मकान्ड और अंधविश्वास कहते हैं, वो जीवन का सबसे बड़ा विज्ञान साबित होता। हमारे पूर्वज पता नहीं क्यों धर्म को तर्क के सहारे समझाने की जगह अंधविश्वास के भरोसे समझने के लिए मजबूर करते गये, और यही वजह है कि धर्म आज सबकी जिन्दगी का सबसे अहम हिस्सा होते हुये भी तर्क की कसौटी पर कसे जाने का मुहताज है। कोई भी आता-जाता कह जाता है कि ये सब आडंबर है, अंधविश्वास है। ईश्वर की सत्ता को चैलेंज करना आधुनिकता का सबब बन गया है। 

मेरी माँ मुझे हमेशा धर्म को समझने के लिए उकसाती थी। कहती थी कि इसे तुम अंधविश्वास की जगह हमेशा विज्ञान की तरह समझना। इसे अपनी जिन्दगी में प्रयोग की तरह इस्तेमाल करना। तुम्हारे साथ जब कभी कोई ऐसा व्यवहार करे, जो तुम्हें पसन्द न हो, तो तुम ये सोचने की जहमत उठाना कि कहीं तुम्हें अपने व्यवहार में किसी परिवर्तन की जरूरत तो नहीं। माँ कहती थी कि तुम्हारी जिन्दगी में अच्छे या बुरे जो लोग भी आते हैं, उनके आने का एक मकसद होता है। वो अपने तरीके से तुम्हें कुछ समझाना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि उनकी अच्छाई और उनकी बुराई देख कर तुम खुद में बदलाव लाओ। 

तुम उनके कर्मों के फल और अपनी सोच से सीख सको कि सही क्या है, गलत क्या है। 

माँ जब इन बातों को यूँ ही बिस्तर पर लेटे-लेटे मुझसे कहा करती थी, तब मैं शायद छोटा था, उन बातों को समझने के लिए। लेकिन आज जब मैं जिन्दगी के विषय में मुड़ कर देखने की कोशिश करता हूँ तो सारा कुछ शीशे की तरह साफ होता नजर आता है। 

माँ कहती थी कि हमारे धर्म में पूजा में धान की पूजा का खास विधान है। 

मैं पूछता कि माँ धान ही क्यों? कोई और फसल क्यों नहीं?

माँ मुस्कुराती, कहती कि मुझे पता था कि मेरा प्यारा सन्जू मुझसे सवाल जरूर पूछेगा। 

जब तक मैं सवाल पूछ नहीं लेता, माँ मेरी ओर टकटकी लगाये देखती और इधर-उधर की कई कहानियाँ सुनाती रहती। पर जैसे ही मुद्दे पर आता, माँ का चेहरा खिल उठता। वो समझ जाती कि उसका बेटा सारी बातें बहुत ध्यान से सुन रहा है। 

“माँ, तुमने कहा कि धान की पूजा की अपनी अहमियत है। क्या है वो अहमियत?”

“सुनो बेटा। अगली बार जब बारिश के मौसम में तुम गाँव जाना तो तुम देखना कि धान की बोआई कैसे होती है। फिर उसकी रोपाई कैसे होती है। मैं आँखें चौड़ी कर पूछता, “माँ बोआई और रोपाई में क्या फर्क है। तुम बार-बार धान की पैदाइश के लिए दो अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल क्यों कर रही हो?”

माँ समझ जाती कि अब मेरा ध्यान उसकी बातों के उस मर्म पर है, जिसे वो मुझे दिल से समझाना चाहती है। 

“बेटा, धान एक ऐसी फसल है, जिसे पहले बोया जाता है। फिर जब उसकी फसल में जड़ पैदा हो जाती है, तो उसे उखाड़ कर दुबारा लगाया जाता है। यही है बोआई और रोपाई । सुनने में ये शब्द जरा देहाती लगेंगे, लेकिन हकीकत में मैं तुम्हें ये बताना चाहती हूँ कि धान को इस तरह बो कर फिर उखाड़ कर दुबारा लगाए जाने का संबंध जिन्दगी से है। 

धान अपनी बोआई और फिर रोपाई के चक्र में हमें सन्देश देता है कि एक जगह से उखड़ कर दुबारा फिर से जम जाने का जिसमें दम होता है, वही कुछ अलग कर सकते हैं। उन्ही की पूजा की जाती है। 

चरैवेती, चरैवेती अर्थात चलते रहो, चलते रहो की कल्पना शायद धान की खेती से पहली बार हुई होगी। धान के माध्यम से हम ये समझते हैं कि जो उखड़ने का अफसोस नहीं करते, वही फिर अपनी जड़ें जमा पाते हैं। 

मैं अगली बार बारिशों में गाँव गया तो मैंने धान की बोआई और रोपाई को बहुत करीब से देखा। देखा कि कैसे धान की फसल को जमीन की कोख से पैदा करके फिर से उसे दुबारा जमीन में लगा कर पूरी फसल की पीढ़ी तैयार कर दी जाती है। धान पहले जमता है, फिर उखड़ जाता है। न उसे पाने की खुशी है, न खोने का गम। 

यही तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था कि जब दुख तुम्हें दुखी नहीं करेगा, सुख तुम्हें सुखी नहीं करेगा…तब तुम सन्तुष्ट जीवन को जी पाओगे। 

आप में से जिन लोगों ने धान की बोआई और रोपाई देखी है, वो तो जिन्दगी के सबसे बड़े फलसफे को समझ चुके हैं। बाकी लोगों के पास मौका है, अबकी बारिश में जिन्दगी को समझ लेने का।

जब आप धान की खेती होते देखेंगे, तब समझ जायेंगे कि क्यों जिन्दगी उठ कर गिरने और गिर कर उठने का ही नाम है। तब आप ये भी समझ जायेंगे कि क्यों जीवन के साथ मृत्यु और मृत्यु के साथ जीवन की कल्पना धर्म में की गई है।

(देश मंथन 09 जून 2015)

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