Sunday, September 14, 2025
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‘मदारी’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

फिल्म ‘मदारी’ देख ली?

नहीं देखी तो कोई बात नहीं। पर मैंने देख ली। मैं अमूनन हर फिल्म देख लेता हूँ। अब आप इसे शौक कह लीजिए या मजबूरी। फिल्म कैसी है, इस पर मैं कतई टिप्पणी नहीं करूंगा और न ही मेरा काम है फिल्मों की समीक्षा लिखना। पर फिल्म में एक सीन की चर्चा मैं आज कर रहा हूँ, सिर्फ अपनी कल की पोस्ट को आगे बढ़ाने के लिए।

गौवंश की रक्षा की योजना बतायें मोदी

संदीप त्रिपाठी :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा कि 80% गौरक्षक फर्जी हैं। हो सकता है, उनकी बात सही हो। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह देखा गया कि तमाम ऐसे तत्वों, जिनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा या हिंदूवादी विचारधारा से कोई संबंध नहीं था, न ही वे कभी मोदी समर्थक रहे, ने छोटे-छोटे संगठन बना लिये जिनके नाम में हिंदू या गाय शब्द जोड़ लिये। इन संगठनों के नाम में हिंदू प्रतीकों की आड़ में ये तत्व अनाप-शनाप कार्य करने लगे, जिनकी हवा न मोदी को थी, न भाजपा को, न संघ को। लेकिन इन संगठनों के कार्यों से ये लोग बदनाम होते रहे। दिलचस्प यह कि ऐसे कई संगठनों के कर्ता-धर्ता ऐसे लोग पाये गये जो भाजपा विरोधी संगठनों के पदाधिकारी रहे।

क्या विजय रुपानी को मिलेगा जन्मदिन का तोहफा?

राणा यशवंत, प्रबंध संपादक, इंडिया न्यूज :

आनंदी बेन ने पद छोड़ने की इच्छा फेसबुक पर ज़ाहिर की, यह अपनी तरह की पहली घटना है। गुजरात में भाजपा कई सवालों में है और अगर अगले साल वह गुजरात हारती है तो प्रधानमंत्री मोदी के लिए उनके पाँच साल के कार्यकाल की (मैं अगले ढाई साल भी जोड़ ले रहा हूँ) यह सबसे बड़ी हार होगी। और, 2019 की मोदी की लड़ाई को बहुत कमजोर भी करेगी।

उत्तर प्रदेश में दाँव पर प्रशांत किशोर की साख

संदीप त्रिपाठी :

उत्तर प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव किसके लिए वाटरलू साबित होगा?, यह सवाल बड़ा मौजू है। सामान्य तौर पर देखा जाये तो सबसे बड़ा दाँव मायावती की बहुजन समाज पार्टी और नरेंद्र मोदी-अमित शाह की भारतीय जनता पार्टी का है। समाजवादी पार्टी सरकार में होने के कारण बचाव की मुद्रा में है तो कांग्रेस अभी तक कहीं लड़ाई में नहीं आयी है। लेकिन इस विधानसभा में इन चारों दलों से बड़ा दाँव चुनाव रणनीतिकार और प्रबंधक के रूप में ख्यात प्रशांत किशोर का लगा है।

अफ्रीका जा कर चीन को घेरने की रणनीति

संदीप त्रिपाठी :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफ्रीकी महाद्वीप की यात्रा पर निकले हैं। इस यात्रा के कई मायने होंगे, अलग-अलग विशेषज्ञ अलग-अलग पहलुओं पर बतायेंगे। लेकिन इस यात्रा के तीन मुख्य मंतव्य दिख रहें हैं। यह है भारत के आर्थिक लाभ, चीन के आर्थिक लाभों को सीमित करना और तीसरा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में चीन और पाकिस्तान को कमजोर करना। मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या की मोदी की यात्रा से यही तस्वीर निकल कर सामने आती है।

बौद्धिक वर्ग से रिश्ते सुधारे मोदी सरकार

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

अपने कार्यकाल के दो साल पूरे करने के बाद नरेंद्र मोदी आज भी देश के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक ब्रांड बने हुए हैं। उनसे नफरत करने वाली टोली को छोड़ दें तो देश के आम लोगों की उम्मीदें अभी टूटी नहीं हैं और वे आज भी मोदी को परिणाम देने वाला नायक मानते हैं।

दुख दर्द पर फोकस करें डिग्री पर नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरा नाम संजय सिन्हा है। 

मेरे पिताजी का नाम सुशील कुमार सिन्हा था। 

मेरे दादाजी का नाम कृष्ण गोविंद नारायण था। 

अदालत में तार्किक अंजाम तक पहुँचे डिग्री विवाद

राजीव रंजन झा : 

चाहे प्रधानमंत्री बनना हो या दिल्ली के आधे-अधूरे राज्य की विधानसभा का सदस्य बनना, उसके लिए कोई डिग्री आवश्यक नहीं है। लेकिन यदि कोई चुनावी प्रक्रिया में झूठा शपथपत्र दाखिल करे तो यह एक गंभीर मसला हो जाता है।

राजीव थे भारत के सबसे सांप्रदायिक प्रधानमंत्री!

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

मानसिक और वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुके जिन लोगों को 1984 के दंगों में 3 दिन के भीतर 3,000 लोगों का मार दिया जाना भीड़ के उन्माद की सामान्य घटना नजर आती है, उन्हीं लोगों ने, गुजरात दंगे तो छोड़िए, उन्मादी भीड़ द्वारा दादरी में सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या को देश में असहिष्णुता का महा-विस्फोट करार दिया था।

देश में संघ से बड़ा राष्ट्र भक्त कौन है

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का देश की राजधानी में हुआ एकता सम्मेलन और कुछ नहीं अपने दुश्मन नंबर एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी विचारधारा के ध्वज वाहक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिलाफत का मंच था, जहाँ इस संगठन के सदर मदनी साहब ने पानी पी-पी कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के नाम पर सरकार को कोसा तो एकता के नाम पर देश तोड़ने वाली हरकतों के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया। 

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