Tuesday, December 3, 2024
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कहीं आपके बच्चे को निगल न जाये ऑनलाइन नीली व्हेल

संदीप त्रिपाठी :

यदि आप किशोरवय के बच्चों के अभिभावक या शिक्षक हैं तो आपके लिए पूरी तरह सतर्क हो जाने का समय है।

माँ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :  आज मेरी कहानी सुनने से पहले आप अपनी आँखें पोंछ लीजिए। मन को मजबूत कर लीजिए। और इसी वक्त...

जिन्दगी में कुछ ऐसा करें जिससे संतोष मिले

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैंने तो पहले ही बता दिया था कि दो दिन पहले जब मथुरा से Pavan Chaturvedi भैया मेरे घर आए थे, तो उन्होंने मुझे कई कहानियाँ सुनाई थीं। एक नहीं, दो नहीं, तीन या चार भी नहीं, ढेरों कहानियाँ। मैंने उसी में से एक चिड़िया की कहानी आपको परसों सुनाई थी।

गाड़ी सायरन बजाते गुजरे तो मानव धर्म का निर्वाह करें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैं अमेरिका के डेनवर शहर में था। वही डेनवर शहर, जहाँ शादी के बाद अपनी धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित भी रहती थीं।

माधुरी दीक्षित बेशक वहीं रहती थीं, पर आज मैं कहानी माधुरी दीक्षित की नहीं सुनाने जा रहा। आज मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ, उसे सुन कर आप सोचने लगेंगे कि क्या सचमुच ऐसा होता है? पर क्योंकि मैं इस कहानी का चश्मदीद हूँ, इसलिए आप मेरी बात पर यकीन कीजिएगा कि मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ, उसका एक-एक अक्षर सत्य है। क्योंकि यह कहानी आदमी की जिन्दगी से जुड़ी है, इसलिए आप इसे अधिक से अधिक लोगों तक साझा कीजिएगा। जितने लोगों को ये कहानी पता चलेगी, उतना फायदा हम सबका होगा।

रक्त दान : लोगों में जागरूकता की कमी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बच्चे को बहुत चोट लगी थी। खून बहुत बह गया था। बच्चे को लेकर कर माँ-बाप सरकारी अस्पताल पहुँचे थे। माँ दोनों हाथ जोड़ कर डॉक्टर के आगे गुहार लगा रही थी कि डॉक्टर साहब आप भगवान हो, किसी तरह मेरे बच्चे को बचा लो। 

अपने बच्चों को आदमी बनाइए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आप मोनू भैया को नहीं जानते।

वो मेरे पिछले मुहल्ले में रहते हैं और मेरी उनसे मुलाकात होती रहती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आज मैं सुबह-सुबह मोनू भैया की कहानी क्यों लेकर आपके पास आ गया हूँ।

बच्चे के मन को पहचानें, धन को नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

माँ की सुनाई तमाम कहानियों में से ये वाली कहानी मुझे हमेशा ऐसे वक्त में याद आती है, जब इसकी सबसे अधिक जरूरत पड़ती है।
कुछ दिन पहले मुझसे कोई कह रहा था कि उनका बेटा ठीक से पढ़ाई नहीं करता। उसके नंबर हमेशा कम आते हैं और सबसे दुख की बात ये है कि पति-पत्नी दोनों बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाते।

बीमारी को पहचान लेना ही आधा इलाज है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक 

उफक एक लड़की का नाम है। वो पढ़ना चाहती थी। तरक्की करना चाहती थी। पर उसकी शादी हो गयी। शादी के बाद पति भी उसे पढ़ाना चाहता था, पर सास ऐसा नहीं चाहती थी। सास ने षडयंत्र करना शुरू किया। बेटे के कान भरने लगी कि तुम्हारी बीवी पागल है। उसे इलाज की जरूरत है। घर में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करने लगी, जिससे धीरे-धीरे उफक और उसके शौहर के बीच कटुता पैदा होने लगी। और आखिर में उसके शौहर को लगने लगा कि उफक सचमुच पागल है। उसने उफक को छोड़ दिया, दूसरी लड़की से शादी कर ली।

अच्छाई में भी कमियाँ दिखेंगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बच्चा पार्क में खेलने जा रहा था। 

दादी घर में अकेली थी। दादी ने बच्चे को रोका और कहा कि क्या तू दिन भर खेलता रहता है। कभी अपनी दादी के पास भी बैठा कर। बातें किया कर। 

बेटा, जी लो जिन्दगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

यह कहानी किसी की आप बीती हो सकती है।

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